यूनिफॉर्म सिविल कोड : सवाल धर्म का नहीं, महिलाओं के समान अधिकारों का है
गोआ के बाद उत्तराखंड जल्द ही समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का दूसरा और आजादी के बाद यूसीसी लागू करने वाला देश का पहला राज्य हो जाएगा. गोआ में लागू समान नागरिक संहिता पुर्तगाल सरकार ने ही लागू की थी. वर्ष 1961 में गोआ सरकार इस सिविल कोड के साथ ही बनी थी. वहां सभी धर्मों के लोगों के लिए एक समान कानून है. गोआ में शादी या तलाक कोर्ट या रजिस्ट्रेशन द्वारा ही कानूनी तौर पर मान्य होता है. 6 फरवरी को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता से जुड़े विधेयक को विधानसभा में पेश किया. मई 2022 में उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक समिति गठित की. इसे समान नागरिक संहिता पर ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से करीब 20 लाख सुझाव मिले. समिति ने लगभग ढाई लाख लोगों से सीधे मिलकर इस मुद्दे पर उनकी राय जानी. समिति ने इस प्रक्रिया से 13 महीने से अधिक में बैठकों, परामर्शों, क्षेत्र के दौरे और विशेषज्ञों और जनता के साथ बातचीत के बाद मसौदा तैयार किया.
क्या है समान नागरिक संहिता
समान नागरिक संहिता का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम होगा. इसे ऐसे भी समझें कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के एक ही नियम होंगे. भारत में अब तक सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं हैं. समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 से उपजा है जो संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है, इसमें सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. इसका उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. समान नागरिक संहिता का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. 19वीं शताब्दी में शासकों ने अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबंधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरूपता की आवश्यकता पर बल दिया था. हालांकि, तब हिंदुओं और मुसलमानों के व्यक्तिगत कानूनों को इस तरह के कानून से बाहर रखा गया था. आजादी के बाद समान नागरिक संहिता पर चर्चा हुई थी, संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी के चेयरमैन डॉक्टर बीआर आंबेडकर ने संविधान सभा की बैठक में समान नागरिक संहिता के पक्ष में जोरदार दलीलें दी थीं. तब संविधान सभा में समान नागरिक संहिता को अपनाने की बात पर मुस्लिम सदस्यों ने तीखा विरोध दर्ज किया था.
वहीं, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी आजादी के बाद समान नागरिक संहिता के पक्ष में थे. हालांकि, नेहरू को लगता था कि बंटवारे के बाद हुई हिंसा के चलते समान नागरिक सहिंता को लागू करने से भारत में रुके रह गए मुस्लिमों में असुरक्षा पैदा होगी. हिंदू कानून को कोडिफाई करने में तो उन्हें कामयाबी मिल गई थी, लेकिन, मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार कर पाने में उनकी सरकार कदम नहीं उठा पाई.
सुप्रीम कोर्ट और समान नागरिक संहिता
सुप्रीम कोर्ट और देश के अलग-अलग हाई कोर्ट ने कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया है. 23 अप्रैल 1985 को तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में शाह बानो के पति को उन्हें हर महीने 179.20 रुपये भरण-पोषण के लिए देने का आदेश दिया था. हालांकि, बाद में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया.
प्रस्तावित कानून के प्रावधान
इस कानून में उत्तराखंड की 4% जनजातियों को क़ानून से बाहर रखने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा इसके प्रावधान निम्नलिखित हैं-
1) प्रस्तावित कानून में मुस्लिम धर्म समेत सभी धर्मों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होगी.
2) प्रस्तावित कानून में बहु-विवाह पर रोक का प्रावधान है.
3) पुरुष-महिला को तलाक देने के समान अधिकार मिलेगा.
4) लिव इन रिलेशनशिप रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर छह महीने का कारावास और 25 हजार का दंड या दोनों हो सकते हैं.
5) लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में समान अधिकार है.
6) महिला के दोबारा विवाह में कोई शर्त नहीं है.
7) पति या पत्नी के जीवित रहते और बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं हो सकती है.
8) शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी बिना रजिस्ट्रेशन सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा.
9) बिल में सभी धर्मों लड़कियों को भी लड़कों के बराबर ही विरासत का अधिकार देने का प्रस्ताव है जो कि अभी कई धर्मों में अलग-अलग है.
10) मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार देने का प्रस्ताव बिल में है.
11) मुस्लिम समुदाय के भीतर हलाला और इद्दत पर रोक लगाने का प्रस्ताव बिल में रखा गया है.
12) पति की मृत्यु पर पत्नी ने दोबारा शादी की, तो मुआवज़े में माता-पिता का भी हक़ होने का प्रस्ताव भी बिल में रखा गया है.
13). पत्नी की मृत्यु होने पर उसके मां-बाप की ज़िम्मेदारी पति पर होगी.
14) पति-पत्नी के बीच विवाद हुआ, तो बच्चों की कस्टडी दादा-दादी को देने का प्रस्ताव भी कानून में रखा गया है.
क्यों हो रहा है यूसीसी का विरोध
उत्तराखंड में पेश किए गए समान नागरिक संहिता बिल को मुस्लिम संगठनों ने इसे अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन माना है. ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने तर्क दिया है कि समान नागरिक संहिता से भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन होगा. जमीयत उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि समान नागरिक संहिता हिंदू- मुस्लिम एकता को नुकसान पहुंचाएगी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद भी समान नागरिक संहिता के खिलाफ मुखर रहा है. प्रस्तावित बिल के अनुसार मुस्लिम भी बिना तलाक दिए एक से ज्यादा शादी नहीं कर सकेंगे. अब तक शरीयत के मुताबिक मुस्लिम कई शादियां कर सकते हैं. शरीयत के मुताबिक लड़की की शादी की उम्र माहवारी की शुरुआत को माना जाता है, लेकिन समान नागरिक संहिता में लड़की की शादी की उम्र 18 साल है. अभी तक कोई भी मुस्लिम शख्स बच्चे को गोद ले सकता था, लेकिन समान नागरिक संहिता में इसे लेकर भी बदलाव किया गया है. समान नागरिक संहिता बिल में तलाक को लेकर स्थिति साफ की गई है. तलाक के लिए पति और पत्नी दोनों को समान अधिकार दिया गया है. मुस्लिमों में तीन तलाक, हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं पर इस कानून के लागू होने के बाद पूरी तरह से रोक लग जाएगी. समान नागरिक संहिता का सिखों की सबसे बड़ी संस्था एसजीपीसी यानी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने भी विरोध किया है. एसजीपीसी का कहना है कि इससे देश में अल्पसंख्यक समुदायों की विशिष्ट पहचान को नुकसान पहुंचेगा.
इन देशों में लागू है समान नागरिक संहिता
इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है. यहां तक कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी समान नागरिक संहिता लागू हैं. इन दोनों देशों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है. यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. आजादी के बाद पहले जनसंघ और अब बीजेपी के मुख्य तीन एजेंडा रहे हैं. इनमें पहला जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को हटाना था. दूसरा, अयोध्या में राममंदिर का निर्माण कराना और तीसरा पूरे देश में समान नागरिक संहिता लागू कराना है. बीजेपी सत्ता में आने पर समान नागरिक संहिता को लागू करने का वादा करने वाली पहली पार्टी थी और तीनों मुद्दे उसके 2019 के लोकसभा चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा थे. मगर संख्या बल के कारण ये पूरे नहीं हो पाए थे. इसके बाद 1996 में बीजेपी ने 13 दिन के लिए सरकार बनाई. 1998 में बीजेपी ने 13 महीने सरकार चलाई. 1999 में बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ बहुमत से सरकार बनाई. तब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. इस बीच बीजेपी के ये मुद्दे रह रह कर उछाले जाते रहे. 2014 में मोदी सरकार ने लिया एक्शन: इसके बाद साल 2014 में पहली बार बीजेपी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई और केंद्र में मोदी सरकार आई. मोदी सरकार ने पूरे जोर-शोर से अपने चुनावी वादों पर काम करना शुरू किया. पहले दो एजेंडे पर काम खत्म हो चुका है. अब बारी यूनिफॉर्म सिविल कोड की है. इसकी शुरुआत उत्तराखंड से हो चुकी है.
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