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शरद पवार के इस्तीफे में कुछ भी नहीं है 'अचानक', रणनीति के तहत राष्ट्रीय राजनीति में बनाएंगे 'तीसरा मोर्चा'

महाराष्ट्र में जारी सियासी हलचल के बीच अब एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने मंगलवार यानी 2 मई को बड़ा एलान किया. उन्होंने 24 वर्षों तक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी का अध्यक्ष रहने के बाद इस्तीफा दे दिया है. हालांकि, शरद पवार के पार्टी का अध्यक्ष पद छोड़ने के ऐलान पर विरोध जताते हुए एनसीपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उनसे फैसले को वापस लेने की मांग की है. 82 वर्षीय मराठा क्षत्रप के इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति के साथ अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया है. 

पवार की राजनीति बेहद सधी हुई

राजनीति में अचानक कुछ नहीं होता है और शरद पवार का इस्तीफा भी अचानक नहीं है. यह शरद पवार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसे वह काफी समय से पका रहे थे. पिछले साल जिस तरह महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल हुई थी, अटकलें तो तभी से लग रही थीं कि पवार भी कुछ ही महीनों में एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देंगे. तो, यह कुछ भी अचानक नहीं है, सब सोचकर किया गया है. एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना तो पवार को इसलिए भी जरूरी था कि कहीं न कहीं अंदरूनी कलह पार्टी में बढ़ रही थी. वह एक मुख्य कारण है. पवार का व्यक्तित्व इस तरह का नहीं है कि वह कुछ भी बिना सोचे-समझे कर दें, वह बहुत शांत और स्थिर राजनेता हैं, इसलिए इस्तीफे के पीछे गहरा चिंतन है. यह तय है कि शरद पवार बीजेपी की तरफ नहीं जाएंगे. वह तीसरा मोर्चा खोलेंगे. इसका कारण यह है कि शरद पवार की छाप है, उनकी राष्ट्रीय राजनीति में पहचान है. आप अगर नीतीश कुमार और केसीआर को तीसरा मोर्चा बनानेवाले के तौर पर देखेंगे, तो उसके अंतर को भी समझना होगा. नीतीश कुमार का अपना एजेंडा है. उनको पीएम पद की आस है. केसीआर तो अपना तेलंगाना बचाने में लगे हैं. उनको कहीं न कहीं से भनक लग गई है कि तेलंगाना उनके हाथ से जा रहा है. पवार सीजन्ड पॉलिटिशियन हैं, सोच-समझकर रणनीति बनाएंगे और अभी तक की उनकी सारी रणनीति तो थर्ड फ्रंट बनाने वाली ही लग रही है. 

उद्धव ने चाहा अलग चलना, हो गए असफल

महाराष्ट्र की राजनीति को अगर बालासाहेब ठाकरे के समय से देखें, तो पाएंगे कि उन्होंने हिंदुत्व की राजनीति की. उद्धव ने कुछ अलग करने की कोशिश की. वह सफल नहीं हुए. इतने असफल हुए कि उनको कुर्सी ही गंवानी पड़ी. एकनाथ शिंदे बीजेपी की तरफ चले गए. वैसे, महाराष्ट्र की जो राजनीति दिख रही है, उसमें सारे आसार हैं कि उद्धव ठाकरे ही बहुत जल्द बीजेपी के साथ हाथ मिलाएंगे. इसलिए मिलाएंगे कि उनको अपने बेटे की राजनीति को बचाना भी है और बढ़ाना भी है. जब महाअघाड़ी की सरकार थी तो उद्धव ठाकरे ने बहुत कुछ लीक से हटकर करने का प्रयास किया. वह बहुत हद तक हिंदुत्व की छवि से निकल भी रहे थे, कुछ लिबरल छवि भी बना रहे थे. उनको अपने बेटे को अब स्थापित करना है और वह बहुत जल्दी ही कंप्रोमाइज करेंगे. 

बीजेपी ने मुख्यमंत्री बदलने के कोई संकेत नहीं दिए हैं, क्योंकि वही बहुत जल्द महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा फेरबदल करनेवाली है. जानने वाले जानते हैं कि एकनाथ शिंदे केवल एक कठपुतली हैं और बीजेपी ने उन्हें बस इसलिए बिठाया है कि वह किंगमेकर की भूमिका में रह सके. नामों का कयास लगाने या बताने का अभी कोई फायदा नहीं, लेकिन वह समय दूर भी नहीं है. महाराष्ट्र की राजनीति बदलेगी और शरद पवार राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होंगे. शरद पवार ऐसे व्यक्ति हैं, जिनको पक्ष हो या विपक्ष, सभी बहुत सम्मान के साथ देखते हैं. उनका तीसरा मोर्चा बनाना मतलब विपक्ष का एकजुट होना ही होगा. अगर बात नीतीश कुमार और केसीआर की सक्रियता की है, तो शरद पवार ऐसे छाता हैं, जिनके नीचे सभी आ जाएंगे. ममता बनर्जी हों या अखिलेश यादव, उन्होंने नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद के लिए तो समर्थन दिया नहीं है. बीजेपी का विरोध करना सारा एजेंडा है और यह मानी हुई बात जान लीजिए कि जो असली तीसरा मोर्चा बनेगा, वह शरद पवार के ही नेतृत्व में बनेगा और वही राष्ट्रीय राजनीति को दिशा देंगे. 

बीजेपी को बने रहना है किंगमेकर

बीजेपी की इन सब बातों में केवल एक बात में रुचि है कि महाराष्ट्र की सत्ता की चाबी उसके पास रहे. वह 'किंगमेकर' की ही भूमिका में रहेंगे, 'किंग' नहीं बनेंगे. पिछली बार का उदाहरण हमारे पास है. वह चाहते तो पिछली बार ही अपना मुख्यमंत्री बना लेते. उन्होने नहीं बनाया, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति को सीएम बना दिया, जिसे कोई ढंग से जानता भी नहीं था. बालासाहेब के पीछे वह घूमते थे और उनको महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया, भाग्य-विधाता बना दिया. बीजेपी इसी मोड में रहेगी.

जहां तक एनसीपी का सवाल है, तो उसका बोझ अजीत पवार के कंधों पर ही डाला जाएगा. वैसे, नाम तो दो हैं. या तो अजीत पवार या फिर सुप्रिया सुले, इन दोनों में से किसी एक को एनसीपी का मुखिया बनाया जाएगा. अब चूंकि पवार परिवार में अंदरूनी कलह चल रही थी, इसी कारण शरद पवार ने इस्तीफा दिया और उन्होंने अजीत पवार को कमान सौंपने का मन बना लिया है. 

(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है) 

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