एक्सप्लोरर

विश्व कप की बेकरारी, बेताबी वाला खूबसूरत सा पागलपन फीफा

कतर में विश्व कप को शुरू हुए एक हफ्ते से भी कम का वक्त बीता है. इतने कम वक्त में ही इसकी खुमारी दुनिया पर छा गई है. ओह माय गॉड! इसका जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है. इसके अलावा जिंदगी में और भला क्या है जो  विश्व कप के बेताबी, बेकरारी और लगभग बयां न कर पाने वाले खूबसूरत पागलपन का मुकाबला कर पाए ? वास्तव में देखा जाए तो विश्व कप केवल एक ही है. भले ही दुनिया के देश सभी खेलों के लिए विश्व कप देते हो, लेकिन फुटबॉल का फीफा ही असली विश्व कप है. क्रिकेट के विश्व कप को भी ये नाम देना बेमानी सा लगता है.

दरअसल क्रिकेट के खेल में देर से दाखिल होने वाले नीदरलैंड को छोड़कर ब्रितानी हुकूमत के उपनिवेश रहे चुके भारत और कुछ अन्य देशों को ये खेल इंग्लैंड से विरासत में मिला है. हाल ही में नीदरलैंड सहित इन सभी देशों ने आईसीसी टी-20 विश्व कप खेला. इसी तरह का आईसीसी वन डे इंटरनेशनल संस्करण भी है. अमेरिका अपने बेसबॉल फाइनल को "वर्ल्ड सीरीज़" और इसी तरह नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) नाम देता है. जबकि ये मैच केवल संयुक्त राज्य अमेरिका तक ही सीमित हैं. कनाडा में भले ही इन मैचों को खेलने की थोड़ी सी मंजूरी हो, लेकिन इन्हें वर्ल्ड सीरीज का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. 

ये बात भी गौर करने लायक है कि कुछ दशक पहले तक मुश्किल से कोई भी यूएस से बाहर का खिलाड़ी इसमें खेला हो, लेकिन इन मैचों के फाइनल के विजेताओं को अमेरिका "विश्व चैंपियन" ही कहता है. ये अमेरिका हिम्मत और हौसला है कि वो इन मुकाबलों को वर्ल्ड कप का नाम देता है. दरअसल इस सच से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि सभी खेलों में इस तरह की संकुचित या ओछी मानसिकता एक प्रथा सी बन गई है जिसमें हर खेल से जुड़े आयोजन को विश्व कप कहा जा रहा है. जबकि  विश्व कप का दर्जा या ओहदा पाने का इकलौता हकदार फुटबॉल में वर्चस्व साबित करने का वैश्विक मुकाबला ही है. 

हमारे वक्त में जैसा कि कुछ वक्त से होता आ रहा है कि राष्ट्रवाद को खेलों से अलग करना बेहद मुश्किल है. इस साल क्वालीफाइंग राउंड से गुज़र चुकी 32 टीमें कतर में चैंपियन ट्रॉफी के लिए मुकाबला कर रही हैं. 2026 में टीम को मैदान में उतारने वाले देशों की संख्या बढ़कर 48 हो जाने वाली है. इन मुकाबलों को देखने आने वाले फैंस अपने -अपने देशों के रंग में रंगे हुए आते हैं. जब उनका देश स्कोर करता है तो उनके पूरे शरीर में जो रोमांच होता है, वो उन्हें बेकाबू खुशी के दौरे सा एहसास कराता है. यह असल में परमानंद जैसा है.  और जिसे  ब्राजीलियाई "खूबसूरत गेम" कहते हैं उसकी खासियत है कि राष्ट्रवाद अक्सर उतना ही आगे बढ़ता है जितना कि इसे मजबूत किया जाता है. लेकिन आइए इस मामले पर हम खुद से आगे न बढ़ते हुए फीफा के नशे में डूब जाएं.

वो क्या है जो दुनिया में हलचल ला देता है, वो क्या है जो लोगों को उत्साहित करता है और वो कैसा जुनून है जो दुनियाभर के मर्दों को अपनी प्यारी टीम के लिए अपनी जिंदगी भर की कमाई को दांव पर लगा हजारों मील का सफर करने के लिए उकसाता है, इसकी एक झलक पाने के लिए हर किसी को  फुटबॉल विश्व कप देखना चाहिए. इस खेल की दीवानगी ही ऐसी है यह अनोखा है किसी अन्य तरह के मुकाबलों से बिल्कुल अलग है. कई लोग मानते हैं कि ओलंपिक का वैभव विश्व कप के मैच से कहीं अधिक है, लेकिन यह पूरी तरह से गलत नजरिया है. ओलंपिक के बारे में काफी संजीदा और आधिकारिक बात है कि ये सुस्त, व्यवस्थित और नियंत्रित तरीके से ताकत का प्रदर्शन करता है. 

हालांकि ओलंपिक के लिए ये बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि इसमें बीच-बीच में यूसेन बोल्ट जैसा एथलीट आकर अपने प्रदर्शन से लोगों को अचंभित होने पर मजबूर कर देते हैं. इसी तरह से महिला जिमनास्ट और गोताखोर पानी में डुबकी लगाने से पहले अपनी लयबद्ध चाल से लोगों को प्रभावित करते हैं. इससे ये अपना नाम ही नहीं बनाते बल्कि जिन देशों का ये प्रतिनिधित्व करते हैं उसके लिए सांस्कृतिक पूंजी (Cultural Capital) भी कमाते हैं. इन एथलीट्स का ये हुनर से इनके देशों को भी फायदा पहुंचाता है. बावजूद इसके जो डायोनिशियन यानी जिस्मानी खुशी, उन्माद, कामुकता, भावनात्मक, मादकता जैसे एहसास विश्व कप की खासियत हैं, वो ओलंपिक से गायब हैं.

यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि पिछले दो दशकों में संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा चीन ने ओलंपिक पदकों की सूची में टॉप पर अपनी जगह बनाई है, लेकिन विश्व कप में इस देश की गैर मौजूदगी है, क्योंकि उबाऊ बदसूरती वाली  चीनी कम्युनिस्ट पार्टी विश्व कप की अधिकता और उन्माद के समंदर में  खो जाएगी. चीन इसकी लय में कदम मिलाकर नहीं चल पाएगा. 

कतर में इस बार के  विश्व कप के संस्करण का घोटालों, कहानियों और आश्चर्यों अपना हिस्सा रहा है और यह आयोजन अभी अपनी शुरुआती अवस्था में है. ब्राजील को अभी अपना शुरुआती खेल खेलना है. ऐसी अफवाहें हैं कि कतरियों ने फीफा का आयोजक बनने के लिए इसके अधिकारियों को रिश्वत से नवाजा है. हालांकि यूरोपीय जिनसे बाकी दुनिया ने जातिवाद, उपनिवेशवाद और नरसंहार जैसे कई घिनौने काम सीखे हैं, उनका ये दिखावा करना कि ये बेहद बेइज्जती वाली बात है. ये वैसे ही जैसे पॉट कॉलिंग द केटल ब्लैक (The Pot Calling Kettle Black) कहावत है. मतलब खुद में कमी होने के बाद आप दूसरों को बुरा कह रहे होते हैं. ये यूरोपीय देशों का पाखंड है. 

आमतौर फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन गर्मियों में ही किया जाता है, लेकिन कतर में इस वक्त बहुत गर्मी पड़ती है. इस वजह से इसे यहां नवंबर-दिसंबर 2022 में आयोजित किया जा रहा है. ये वो वक्त है जब इस देश में साल के अन्य महीनों की तुलना में कम गर्मी पड़ती है. बावजूद इसके शायद दुनिया के सबसे मशहूर खेल के आयोजन का ये मुफीद वक्त यूरोपीय लोगों के लिए असुविधाजनक है, लेकिन अब वो  वक्त आ पहुंचा है कि यूरोप यह जाने और समझे कि वो अब दुनिया का केंद्र नहीं रह गया है. दरअसल यूरोप को किसी भी अन्य महाद्वीप की तुलना में इस तरह के आयोजनों के लिए अधिक स्लॉट यानी अवसर मिलते रहे हैं.   

इस बात को लेकर भी बहुत हो हल्ला मच रहा है कि क़तर प्रशंसकों को आर्मबैंड पहनने की मंजूरी नहीं दे रहा है जो एलजीबीटीक्यू प्लस (LGBTQ+) हकों के लिए समर्थन दिखाता है और वहीं यूरोपीय फैंस में इस बात को लेकर नाराजगी है कि विश्व कप स्टेडियमों में बीयर की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. मैं कहूंगा कि अगर किसी को बुराई करनी ही है तो कहीं अधिक मुनासिब ये होगा कि उन कई सौ प्रवासी मजदूरों के बुरे हालातों पर बात की जाए, जो कतर में विश्व कप स्टेडियमों का निर्माण करते हुए मारे गए हैं. जिनकी कहानी मैं एक अलग लेख में बताऊंगा. उनकी मौतों को सामान्य बोझिल से डिस्क्लेमर में दफन कर दिया जाएगा. उनकी मौतों से इंकार कर दिया जाएगा "यही दुनिया का तरीका है यही रीत है." जबकि  विश्व कप का आयोजन करने वाले अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल संघ फीफा के पास 5 बिलियन डॉलर का राजस्व आता है और कई खिलाड़ी खुद सालाना लाखों डॉलर कमाते हैं. 

फिर भी वो कहते हैं न कि जब तक हम ये नहीं सोचते हैं कि खूबसूरती का एक बदसूरत पहलू भी होता है, किसी भी चीज की अहमियत नहीं आंकी जा सकती है. ये विश्व कप पहले ही प्रतिभा का एक आनंदमय विस्फोट रहा है, जो एक बेकरारी वाली उत्तेजना पैदा करता है और इस खेल से प्यार करने वालों को चकित कर देता है. अपने चरम पर पहुंचने पर ये खेल बेहद सम्मोहक होता है. यही है वो पल है जो फीफा को फीफा बनाता है. 

ऐसे बेहतरीन आश्चर्य में डालने वाले सम्मोहक पलों में से एक पल स्पेन का कोस्टा रिका को 6-0 से करारी शिकस्त देना रहा, भले ही कई बार ऐसा लगा कि वह केवल अभ्यास मैच खेल रहा है. वहीं अपने देश में हिजाब के विरोध प्रदर्शनों का सामना कर रहे है ईरान की यहां एक अलग कहानी है. इसे दुनिया को बेहद ध्यान से देखना चाहिए. ईरान को मैदान में एक अलग तरह की करारी शिकस्त झेलनी पड़ी, जब इंग्लैंड ने इसे 6-2 से आसानी से हरा डाला. फ्रांस की शुरुआत शानदार रही और उसने ऑस्ट्रेलिया को 4-1 के स्कोर से हरा दिया. इस सबके के साथ अगर विश्व कप  में पूर्वानुमानों, अप्रत्याशितता, तर्कों और अंधविश्वासों, दुनियावी बातों और असाधारण, अनोखी घटनाओं की मिलावट नहीं तो फिर ये कुछ भी नहीं है, और वो कहते है न कि जो सोचा न हो यानी अप्रत्याशित हो वो हमेशा अधिक उम्मीद देने वाला होता है. 

फीफा के मैदान पर कुछ ऐसा ही अप्रत्याशित घटा. क्या किसी ने सोचा होगा कि जापान फुटबॉल के पावर हाउस जर्मनी को बदहाली की तरफ धकेल देगा? दो जापानी स्ट्राइकरों के दो गोल पेनल्टी से एक गोल करने वाले जर्मनों को बेअसर और काबू में करने के लिए काफी रहे थे. ऐसा कहा जा रहा था कि जापान की जीत की भविष्यवाणी पहले ही की जा चुकी थी. जब मैच से एक दिन पहले ही एक्वेरियम में ताइयो नाम के एक नदी ऊदबिलाव ने जापानी झंडे से सजी नीली बाल्टी में एक छोटी फुटबॉल को रखा था. उसने यहां जर्मनी के झंडे से सजी लाल बाल्टी के साथ मैच के ड्रा को दिखाने वाली पीली बाल्टी दोनों की अनदेखी कर दी थी. पहले की पीढ़ी में, यूरोपीय लोग इस कहानी पर हंसे होंगे और इसे "ओरिएंटल अंधविश्वास" यानी एशियाई अंधविश्वास कहते होंगे, लेकिन अब दुनिया जर्मनों पर हंस रही है. 

इस जीत पर जापानी अपनी सरकार से नेशनल हॉलीडे का ऐलान करने की मांग कर रहे.और इस तरह वो सऊदी अरब की नकल कर रहे हैं, जो हमें इस विश्व कप में, या वास्तव में अंतरराष्ट्रीय खेलों में अब तक के सबसे विस्मयकारी अचंभे में डालता है. दरअसल जापान में बगैर छुट्टी के काम करने का चलन रहा है. ऐसा ही कुछ सऊदी अरब के मामले में भी है. शायद ही इस खेल को लेकर सऊदी अरब से किसी ने कुछ अधिक उम्मीद पाली हो. आम कल्पना में ये तेल समृद्ध देश है जो किसी काम का नहीं है. माना जाता है कि इसकी समृद्धि न तो श्रम से और न ही अपने नागरिकों के कौशल या बुद्धि से आई है. भले ही बाकी दुनिया को तेल पर निर्भर बनाते हुए इस देश ने हरित अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में कई कदम उठाए हों. ये देश दुनिया भर में सख्त शासन से लेकर महिलाओं को कार चलाने से मना करना (कुछ महीने पहले तक) जैसे कई अन्य बेढंगे नियम-कायदों  के लिए जाना जाता है.

बाज़बाजी (Falconry) के शगल को छोड़कर सऊदी अरब की मुश्किल से ही अंतरराष्ट्रीय खेल परिदृश्य पर मौजूदगी है. इसकी फ़ुटबॉल टीम अंतरराष्ट्रीय मैचों में कम अनुभव के साथ घरेलू स्तर पर ही पनपी है. इनका शुरुआती मैच अर्जेंटीना के साथ था- एक ऐसा देश जो ब्राजील की तरह फुटबॉल का ख्वाब देखता है. दक्षिण अमेरिका में फुटबॉल वर्चस्व स्थापित करने वाली चैम्पियनशिप, सीओपीए 2021 (COPA 2021) में ब्राज़ील पर अपनी जीत से अर्जेंटीना विश्व कप में नए सिरे से उभरा था. सऊदी अरब के नेता, मोहम्मद बिन सलमान (आमतौर पर एमबीएस के तौर पर जाने जाते हैं) ने पहले ही खिलाड़ियों को साफ तौर से कह दिया था कि वे जाकर आनंद लें, और जीतने के बारे में न सोचें. सऊदी फुटबॉलरों ने खुद से ज्यादा इस खेल का आनंद लिया; उन्होंने एमबीएस की बात नहीं मानी और अर्जेंटीना पर शानदार जीत हासिल की, उनकी ये एक जीत और भी शानदार रही क्योंकि यह अल दवसारी के एक असाधारण गोल, बेहद शानदार हुनर के प्रदर्शन और खालिस खुशी की उड़ान थी. फिर क्या था अर्जेंटीना पर अपने खिलाड़ियों की जीत पर एमबीएस ने अगले दिन सऊदी अरब में नेशनल हॉलीडे का ऐलान कर दिया. 

इस विश्व कप में सऊदी अरब कितना आगे जाएगा, इसका अंदाजा सभी लगा सकते हैं. एक दशक पहले दुनिया की राजनीति पर सबसे अधिक अहम और असर डालने वाले अरब वसंत (Arab Spring)का दौर आया था. जब अरब देशों में दशकों से सत्ता पर काबिज सरकारों को सत्ता से बाहर करने का माद्दा दिखाया गया था.  हालांकि यह बहुत लंबा नहीं चला; कुछ लोग कहेंगे कि यह आखिरकार अराजकता और उथल-पुथल की वजह बना, यहां तक ​​कि मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल सीसी जैसे निरंकुश नेताओं के उदय को जिसने आसान बनाया, जिन्होंने पूरी तरह से लोगों को काबू कर शासन किया. इस सबसे परे अर्जेंटीना पर सऊदी अरब की जीत को एक चमत्कार के तौर पर लिया जा रहा है. एक तरह से  लगभग अरब दुनिया के जागरण के तौर पर. इससे पता चलता है कि फुटबॉल का भी लोकतांत्रीकरण किया जा रहा है. अब वह दिन बहुत दूर नहीं है जब न तो कोई दक्षिण अमेरिकी और न ही यूरोपीय टीम विश्व कप जीतेगी, फुटबॉल की दुनिया में अफ्रीकी, एशियाई और मध्य पूर्वी देशों का उदय एक प्यारा विचार है.  

लेकिन इस जीत को भी खट्टे- मीठे दोनों तरह से लिया जा सकता है, ये सुखद होने के साथ ही दुख अफसोस भी समेटे है. एमबीएस ने साल 2018 में इस्तांबुल में शाही खानदान का विरोध करने वाले पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की निर्मम हत्या का आदेश दिया था. कम से कम अमेरिका और यूरोपीय देशों ने निजी तौर पर बोलचाल की भाषा में कहे तो इसे एमबीएस का एक घिनौना काम माना था. एमबीएस  इस आरोप से उबारने के तरीकों की तलाश कर रहे हैं और कोई भी इस बात को पक्के तौर पर कह सकता है कि वो अब कई अन्य निरंकुश "नेताओं" की तरह ही अर्जेंटीना पर सऊदी राष्ट्रीय फुटबॉल टीम की जीत का इस्तेमाल खुद को एक ईमानदार और सच्चे नेता के तौर पर दिखाने के लिए करेंगे. ऐसे जैसे कि वो एक दूरदर्शी है जो अपने देश को पश्चिमी देशों के लिए खोल रहे हैं और खिलाड़ियों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित और उत्साहित कर रहे हैं. ये बात भी दीगर है कि विश्व कप कभी भी केवल फुटबॉल के बारे में नहीं रहा है. ताकत, राजनीति और राष्ट्रवाद इस खेल में स्वाभाविक तौर पर शामिल होते रहे हैं. इस सबके बावजूद भी सलेम अल दवसारी की नेट में फुटबॉल की उस डिलीवरी की कलात्मकता और भव्यता यादगार बन गई, जिसने दुनिया को हैरान कर के रख दिया. यही सब कुछ है जो विश्व कप के खूबसूरत, खुमारी भरे पागलपन को बनाता है. 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

Lok Sabha Election 2024: 'जो कश्मीर-बिहार में होता था, अब बंगाल में होता है', अग्निमित्र पॉल का CM ममता बनर्जी पर बड़ा आरोप
'जो कश्मीर-बिहार में होता था, अब बंगाल में होता है', अग्निमित्र पॉल का CM ममता बनर्जी पर बड़ा आरोप
Exclusive: 'मुसलमानों पर लादा जा रहा UCC', पहले चरण की वोटिंग के बीच ऐसा क्यों बोले मौलाना मदनी? जानें
Exclusive: 'मुसलमानों पर लादा जा रहा UCC', पहले चरण की वोटिंग के बीच ऐसा क्यों बोले मौलाना मदनी?
LSD 2 Box Office Day 1: पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई 'एलएसडी 2', प्रचार की अलग स्ट्रैटजी भी फेल होती दिख रही
पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई एकता कपूर की फिल्म 'एलएसडी 2'
दिल की बीमारी में ज्यादा मीठा खाना हो सकता है नुकसानदायक? जानिए हेल्थ एक्सपर्ट की राय...
दिल की बीमारी में ज्यादा मीठा खाना हो सकता है नुकसानदायक? जानिए हेल्थ एक्सपर्ट की राय...
for smartphones
and tablets

वीडियोज

Phase 1 Election Voting: 24 का पहला 'चक्रव्यूह' लोकतंत्र का महापर्व...हर किसी को गर्व | ABP NewsPropaganda फिल्म बनाने के बाद क्यों जूझ रहे हैं Producer और उनकी Family?, The Diary Of West BengalMaulana Arshad Madani EXCLUSIVE: मदनी के बयान से बवाल ! 'वोट का बंटवारा ना होना भी एक मसला' | ABPLoksabha Election 2024: ABP News पर राजस्थान के CM Bhajan Lal Sharma Exclusive | ABP News | Breaking

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
Lok Sabha Election 2024: 'जो कश्मीर-बिहार में होता था, अब बंगाल में होता है', अग्निमित्र पॉल का CM ममता बनर्जी पर बड़ा आरोप
'जो कश्मीर-बिहार में होता था, अब बंगाल में होता है', अग्निमित्र पॉल का CM ममता बनर्जी पर बड़ा आरोप
Exclusive: 'मुसलमानों पर लादा जा रहा UCC', पहले चरण की वोटिंग के बीच ऐसा क्यों बोले मौलाना मदनी? जानें
Exclusive: 'मुसलमानों पर लादा जा रहा UCC', पहले चरण की वोटिंग के बीच ऐसा क्यों बोले मौलाना मदनी?
LSD 2 Box Office Day 1: पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई 'एलएसडी 2', प्रचार की अलग स्ट्रैटजी भी फेल होती दिख रही
पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर फुस्स हुई एकता कपूर की फिल्म 'एलएसडी 2'
दिल की बीमारी में ज्यादा मीठा खाना हो सकता है नुकसानदायक? जानिए हेल्थ एक्सपर्ट की राय...
दिल की बीमारी में ज्यादा मीठा खाना हो सकता है नुकसानदायक? जानिए हेल्थ एक्सपर्ट की राय...
'CM केजरीवाल नवरात्र में अंडा नहीं खाते', आतिशी बोलीं- डाइट चार्ट बदला गया
'CM केजरीवाल नवरात्र में अंडा नहीं खाते', आतिशी का BJP पर पलटवार
Maharashtra LS Election: अजित पवार गुट के नेता छगन भुजबल का बड़ा ऐलान, शिंदे गुट के लिए राहत?
अजित पवार गुट के छगन भुजबल का बड़ा ऐलान, शिंदे गुट के लिए राहत?
गर्मी में बरते कुछ खास सावधानी, नहीं तो हो जाएंगे ब्रेन स्ट्रोक का शिकार...ऐसे करें बचाव
गर्मी में बरते कुछ खास सावधानी, नहीं तो हो जाएंगे ब्रेन स्ट्रोक का शिकार...ऐसे करें बचाव
Ajit Isaac: कौन हैं अजीत ईसाक, जिन्होंने अपने नाम कर ली बेंगलुरु की सबसे महंगी प्रॉपर्टी  
कौन हैं अजीत ईसाक, जिन्होंने अपने नाम कर ली बेंगलुरु की सबसे महंगी प्रॉपर्टी  
Embed widget