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बीयर बार्स में हम सेफ नहीं तो फिर हम आखिर सेफ कहां हैं

बदलाव की ठंडी हवा चल रही है, तो थोथे रिवाजों के गुम मौसम में कुछ भला सा लग रहा है. अभी ख़बर आई है कि केरल में बार्स और बीयर पार्लरों में लड़कियों के काम करने पर जो बैन लगा हुआ था, सरकार उसे हटाने की सोच रही है. यह बैन कई दूसरे राज्यों में भी है. कई राज्यों में ऐसा नहीं है और लड़कियां बारटेंडर के तौर पर मजे से काम कर रही हैं. यूं नैतिकता की बहस छोड़कर हम यह भी कह सकते हैं कि इससे किसी को क्या फायदा होने वाला है. कोई यह भी कह सकता है कि इससे लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराध बढ़ सकते हैं. दारुबाजों के बीच औरतें कहां सेफ हैं? पब में जाओगी तो रेप का शिकार होगी ही, ऐसा कहने वाले भी बहुत हैं. पर कहने वालों को आप कैसे रोकेंगे...आरएसएस लीडर इंद्रेश कुमार तो यहां तक कह चुके हैं कि वेलेंटाइन डे के सेलिब्रेशन ही हमारे यहां रेप, तलाक, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं. तो- कहीं प्रेम पर ही पाबंदी न लग जाए, इससे पहले एकाध इश्क कर लीजिए. खैर, केरल में लड़कियां बीयर पार्लरों और बार्स में काम कर सकें, इसके लिए केरल सरकार को 2002 के आबकारी शॉप डिजपोजल रूल्स और 1953 के फॉरेन लिकर रूल्स में संशोधन करना होगा जिनके तहत औरतों को बार्स में काम करने से प्रतिबंधित किया गया है. जिन राज्यों में इससे छूट है, वहां लड़कियां धड़ल्ले से मिक्सोलॉजी सीखती हैं और इस अनकन्वेंशनल प्रोफेशन को अपनाती हैं. बहुत से लोग यह जानते भी नहीं होंगे कि इस पेशे में आपको सिर्फ शक्ल या अक्ल देखकर काम करने का मौका नहीं मिलता. इसके लिए बकायदा एक से तीन साल की ट्रेनिंग होती है- इसे सिखाने वाले स्कूल होते हैं और इसमें ड्रिंक्स की केमिस्ट्री भी पढ़ाई जाती है. क्योंकि हमारे यहां बहुत से राज्यों, जैसे पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, वगैरह में लड़कियों के बार्स में काम करने पर पाबंदी है, इसलिए हम इसके बारे में ज्यादा जानते नहीं. महाराष्ट्र जैसी जगहों पर जहां लड़कियों के काम करने पर बैन नहीं है, वहां भी वे एक तय समय यानी रात साढ़े आठ बजे तक ही काम कर सकती हैं. उनके देर रात तक काम करने पर पाबंदी है. वैसे पाबंदी न हो तो भी बहुत से इंप्लॉयीज लड़कियों से देर रात तक यह काम नहीं करवाना चाहते क्योंकि रात को उन्हें लड़कियों के लिए ट्रांसपोर्ट की सुविधा जुटानी पड़ती है. फिर उनकी सेफ्टी को खतरा न हो, इसका भी ध्यान रखना पड़ता है. लड़कियों का ध्यान रखना हमारा काम है. हम उनके खुदा जो हैं. इसी सेफ्टी का तकाजा था कि कुछ महीने पहले कर्नाटक एसेंबली की ज्वाइंट हाउस कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि आईटी और बायो टेक्नोलॉजी सेक्टर में लड़कियों को नाइट शिफ्ट में काम नहीं करवाना चाहिए क्योंकि इससे वे असुरक्षित होंगी. तब एक कांग्रेसी विधायक एन ए हैरिस ने यहां तक कह डाला था कि प्रिवेंशन इज बेटर देन क्योर. हमें यह समझना चाहिए कि रात को काम करने वाली औरतों पर भावी पीढ़ी को ग्रूम करने की नैतिक जिम्मेदारी होती है और आदमियों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह होती है कि महिलाओं की सुरक्षा की जाए. पर मर्द तो जबरन यह जिम्मेदारी उठाने को तत्पर नजर आ रहे हैं. आखिर, जिसकी जिम्मेदारी उठाने का दावा किया जा रहा है, उससे भी तो पूछ लिया जाए कि तुम्हें इसकी जरूरत है कि नहीं? उससे पूछना इसलिए नहीं है क्योंकि वह तो सिर्फ आपका लट्टू है. आप चाहो तो उसकी फिरको लो, चाहे धूल में फेंक दो. धूल में फेंकोगे भी तुम, उठाओगे भी तुम. पर लड़कियां अब आपकी लट्टू बनने को तैयार नहीं हैं. वह चाहती हैं कि उन्हें जिम्मेदारी न समझा जाए. जिम्मेदारी एक बाध्यता होती है. किसी की ड्यूटी. ड्यूटी यह है कि लड़कियों की उनके अधिकार दिए जाएं. यह उनका अधिकार है कि काम करने की जगहें किसी भी तरह के शोषण से मुक्त हों. प्रशासन और उनका इंप्लॉयी उन्हें ट्रांसपोर्ट मुहैय्या कराए. उनके लिए रात के क्रेश हों जहां बच्चों की देखभाल की जाए. हाइजिनिक टॉयलेट्स हों. ऐसी उम्मीद कारखाना संशोधन विधेयक, 2014 में भी की गई है. यह विधेयक कहता है कि अगर राज्य यह सुनिश्चित करें कि औरतों की तमाम सुविधाओं का ध्यान रखा जाएगा तो मजदूर संगठनों और नियोक्ता संगठनों के प्रतिनिधियों की सलाह से उन्हें रात की पाली में काम करने की इजाजत दे सकते हैं. फिलहाल यह विधेयक लंबित यानी संसद की मंजूरी के लिए पेंडिंग पड़ा है. बारटेंडिंग एक अलग तरह का प्रोफेशन है- सरकार इसमें लड़कियों के काम करने को आसान बनाएगी, यह बाद की बात है. लेकिन हमारे यहां जिन क्षेत्रों में औरतें पहले से मौजूद हैं, वहां उनका काम करना कौन सा आसान है. मैन्यूफैक्चरिंग, खासकर गारमेंट सेक्टर तो औरतों पर टिका हुआ है, वहां आपने कौन सा सुविधाओं का अंबार लगाया है? पिछले साल बेंगलूर में जब बीस हजार के करीब कपड़ा मजदूर औरतें सड़कों पर उतरीं, तो पता चला कि उनमें से बहुतों को 4,000 रुपए से भी कम के वेतन पर काम करना पड़ता है. जिन स्थितियों में और लंबे घंटों तक उन्हें काम करना पड़ता है, उनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा होता है. रात की पाली में न सही, देर रात तक काम करने को तो मजबूर किया ही जाता है- वह भी ट्रांसपोर्ट की सुविधा के बिना. ऐसी औरतें अक्सर पुरुष सहकर्मियों या परिवार के पुरुष सदस्यों की दया पर ही निर्भर रहती हैं. वो ले जाएंगे साथ- लेने आ जाएंगे तो हम घर पहुंच जाएंगे. इसी दया से हमें ऐतराज है. केरल के नए बदलाव में इस दया के लिए कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए, तभी माना जाएगा कि मजदूरों की सरकार वहां कायम है. हां, जिन लोगों को औरतों के नाइट शिफ्ट में काम करने पर उनकी सुरक्षा की चिंता है, वे जान लें कि यौन अपराध दिन की रोशनी में भी उतने ही आत्मविश्वास से किए जाते हैं. पिछले दिनों रामपुर के एक गांव में 14 लड़कों ने जब दो लड़कियों को मॉलेस्ट किया था, तब दिन का उजाला था. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो जब यह कहता है कि सेक्सुअल हैरेसमेंट के 90 परसेंट केसेज में लड़की का जानकार इन्वॉल्व होता है तो आप समझ सकते हैं कि यह घटनाएं सिर्फ नाइट शिफ्ट में काम करने वाली लड़कियों के साथ नहीं घटतीं. ये घर में, काम करने की जगह पर, किसी भी समय- मुंह अंधेरे, भरी दोपहरी, अलसाई शाम, देर रात कभी भी हो सकती हैं. तो औरतों की सेफ्टी हर जगह, हर समय खतरे में है- इसका बार में काम करने, न करने से कोई ताल्लुक नहीं है. पर लड़कियां इस खतरे से डरती नहीं. वह सीना ताने बाहर निकलती हैं. पढ़ाई करती हैं- नौकरियां करती हैं. मौज-मजा भी करती हैं. कई बार संगियों के साथ-कई बार अकेले. वैसे लड़कियां हर जगह नजर आनी चाहिए. हर शहर में, हर गली-मुहल्ले, हर स्कूल-कॉलेज में, हर सेक्टर में काम करती हुई. एक सही माहौल तभी तैयार होगा. इस बार बीयर पार्लर्स के नो इंट्री जोन को उनके लिए खोला जा रहा है. इसका स्वागत है.
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