BLOG: 31 फीसदी में बनेगी सरकार, किसकी मोदी, मायावती या अखिलेश की?
नेताओं के दिल की धड़कनें भी तेज हो गई हैं. कोई कहता है कि अखिलेश का पलड़ा भारी है तो कोई कहता है कि अब बीजेपी का पारा चढ़ रहा है. फिर एक आवाज आती है कि मायावती को हल्के में नहीं लेना चाहिए. जितनी मुंह उतनी बातें. वाकई ये खेल आसान नहीं है. राजनीति भी शेयर मार्केट, खेल, मौसम, जीडीपी और टीआरपी रेटिंग की तरह है कब किधर पलटी मार जाए कहना मुश्किल होता है. अब सवाल यह है कि नतीजे के दिन किसके चेहरे खिलेंगे और कौन मुरझाएगा लेकिन संकेत यही है कि तीनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर है.
वैसे इस बार का चुनाव बेहद रोचक है. हर बार चार पार्टियों के बीच टक्कर होती थी इस बार सपा-कांग्रेस के हाथ मिलाने से तीन पार्टियों के बीच टक्कर हो रही है. इसीलए ये चुनाव और रोमांचक और रोचक हो गया है. कहने को तो ये चुनाव त्रिकोणीय है लेकिन छोटी पार्टियां और बगावती नेताओं के मैदान में उतर जाने से चुनाव चतुष्कोणीय हो गया है. इससे भी आकलन आसान नहीं रह गया है
वैसे एक चमत्कार का कयास तो आसानी से लगाया जा सकता है जो भी भी पार्टी इस बार 31 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करेगी, उसे बहुमत आसानी से मिल सकता है. जिस तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी 31 फीसदी वोट हासिल करके देश के प्रधानमंत्री बन गये उसी तरह की स्थिति उत्तरप्रदेश की राजनीति में बन गई है.
पहले चतुष्कोणीय मुकाबले में 28-29 फीसदी वोट हासिल करने पर ही सत्ता मिल जाती थी लेकिन त्रिकोणीय होने की वजह से जीत का मुकाम अब 31 फीसदी पर हासिल हो सकता है. कुछ चुनाव विश्लेषक कहते हैं कि एक फीसदी वोट के नफा-नुकसान से 25-30 सीटों का अंतर पड़ता है लेकिन बहुकोणीय संघर्ष होने पर मतों के अंतर और सीट के रिश्ते दम तोड़ देते हैं. मसलन 2012 में भी यही हुआ बीएसपी और सपा के बीच 3 फीसदी मतों का फासला था लेकिन सपा और बीएसपी के बीच 144 सीटों का फासला हो गया. यही नहीं 2007 में सपा को 2002 के मुकाबले में ज्यादा वोट मिले थे लेकिन 47 सीटें घट गईं. 1989 में जनता दल और कांग्रेस के बीच सिर्फ दो फीसदी मतों का फासला था. जनता दल को 29.7 फीसदी मत में ही 208 सीटें मिल गई जबकि कांग्रेस को 27.9 फीसदी वोटों के बावजूद 94 सीटों ही पा सकी थी. 1999 के लोकसभा चुनाव में सपा और बीजेपी को 25-25 सीटें मिली थी लेकिन वोटों में तीन फीसदी का फासला था. बीजेपी 27 फीसदी हासिल करके 25 सीटें जीतीं थी जबकि सपा 24.6 फीसदी वोट लेकर ही इतनी सीटें जीती थीं.
कौन है 31 फीसदी के करीब ?
यूपी में अगर किसी पार्टी को 28 फीसदी के करीब वोट आता है और दूसरी पार्टियों के बीच कम का फासला होता है तो विधानसभा त्रिशंकु भी हो सकता है लेकिन जिस पार्टी में ज्यादा कुव्वत होती है वो जंग में ज्यादा देर तक टिक सकती है. वैसे स्पष्ट बहुमत हासिल करने के लिए 31 फीसदी जादुई आंकड़ा हो सकता है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि कौन पार्टी 31 फीसदी की मंजिल को छू पाएगी.
सच यही है कि हर पार्टी में इस जादुई आंकड़ा को छूने की शक्ति है लेकिन अभी तक बीजेपी को छोड़कर कोई पार्टी 31 फीसदी के लक्ष्मण रेखा को पार नहीं कर पाई है. वैसे राजनीति इतिहास से नहीं चलता है बल्कि चुनाव खुद व खुद इतिहास बनाता है.
मसलन 2014 के लोकसभा चुनाव मे बीजेपी पहली बार यूपी मे 42 फीसदी वोट हासिल की. जिस तरह बीजेपी ने इतना वोट हासिल की उसी तरफ दूसरी पार्टियां भी हासिल कर सकती है लेकिन कभी कभी ज्यादा उम्मीद भी अरमानों पर पानी फेर देता है जैसे 2004 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हुआ था
बहरहाल, सबकी नजर इस पर है कि उत्तरप्रदेश में किसकी जीत होगी. कहा जा रहा है कि अखिलेश का काम बेहतर है, छवि अच्छी है, गठबंधन भी किया है, सरकार के खिलाफ नाराजगी भी नहीं है लेकिन कई बार ऐसा होता है कि खराब काम करके भी चुनाव जीता जाता है तो कभी अच्छा काम करके भी हारा जाता है. सबसे बड़ी बात ये है कि अगर जमकर मुस्लिम वोट अखिलेश को मिल जाए तो अखिलेश जीत सकते हैं. क्योंकि अखिलेश के पास एकमुश्त वोट यादव के हैं जिनकी आबादी 11 फीसदी है वहीं मुस्लिम वोट 19 फीसदी और अन्य के 5 फीसदी वोट मिल गये तो आंकड़ा 35 का हो सकता है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या ज्यादातर मुस्लिम मतदाता अखिलेश को वोट देंगे. वैसे सपा अभी तक 20 फीसदी से लेकर 30 फीसदी के बीच ही घूमती रही है.
अब बात मायावती की. सपा कभी 30 फीसदी के लक्ष्मण रेखा को पार नहीं कर पाई है वही बीएसपी 2007 विधानसभा में 30.4 फीसदी हासिल की थी जो अभी तक रिकॉर्ड है. यूपी में अगर कोई मजबूत पार्टी है तो वो बीएसपी ही है जिसका जनाधार वोट यानि दलित वोट 21 फीसदी है. अगर मुस्लिम बीएसपी पर मेहरबान हो जाए तो यूपी में राजनीति तूफान आ सकता है वैसे मायावती ने इस बार सबसे ज्यादा मुस्लिम को टिकट देकर मुस्लिम वोटरों को लुभावने की कोशिश की है वहीं ब्राह्मण मतदाताओं पर उनकी खास नजर है इसीलिए मुस्लिम और ब्राह्मण उम्मीदवार को दिल खोलकर टिकट बांटी है लेकिन बीएसपी के लिए वही सवाल है कभी 31 फीसदी पार नहीं कर पाई है वहीं मुस्लिम मतदाताओं को कितना लुभा पाती है वो समय ही बता पाएगा.
अब बात बीजेपी की. इकलौती पाटी है जो कभी फर्श से अर्श तक पहुंच जाती है तो कभी नीचे गिरकर लहूलूहान भी जाती है. बीजेपी ऐसी पार्टी है तो कई बार 31 फीसदी के आंकड़ें को लांघ चुकी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 42 फीसदी वोट हासिल करके 71 सीटें जीती थी. यूपी के 50 फीसदी वोटरों को बीजेपी से लगाव नहीं है वहीं 50 फीसदी वोटरों पर लगाव है.
अगर इन जातियों के 62 फीसदी वोटरों का मत हासिल कर लेती है तो जीत आसान हो सकता है लेकिन एक ही सवाल है कि सपा-बीएसपी की तरफ बीजेपी के पास चेहरा नहीं है. मोदी के भरोसे बीजेपी नैय्या पार करना चाहती है. बीजेपी की दलील है कि लोकसभा चुनाव के मुकाबले अगर 11 फीसदी वोट गिर भी जाए तो 31 फीसदी वोट पार्टी हासिल कर सकती है .
ऐसे में यूपी के चुनाव में मोदी का चमत्कार कितना रंग लाता है और मुस्लिम वोटर मायावती और अखिलेश में किसे चुनते हैं. ये सारे सवाल हैं इसका एक ही जवाब है इसके लिए अब 11 मार्च का ही इंजतार करना होगा.
धर्मेन्द्र कुमार सिंह, चुनाव विश्लेषक और ब्रांड मोदी का तिलिस्म के लेखक हैं. इनसे ट्विटर पर जुड़ने के लिए @dharmendra135 पर क्लिक करें. फेसबुक पर जुड़ने के लिए इसपर क्लिक करें. https://www.facebook.com/dharmendra.singh.98434
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