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लता मंगेशकरः आंख यूं ही नम नहीं होती...

रातोंरात कोई गायक या गायिका नहीं हो जाता. बरसों लगते हैं. रियाज की कसौटी कसती जाती है. लेकिन कभी फिर कोई आवाज ऐसी आती है, जिसे सुन कर लगता है कि उसके कंठ में वाग्देवी का वास है. लता मंगेशकर वही थीं. ईश्वरप्रदत्त प्रतिभा के साथ. कोकिल कंठी. स्वर साम्राज्ञी. लता से पहले और उनके दौर में भी अनेक मीठी-सुरीली-मखमली आवाजें हुईं मगर लता जैसी दूसरी आवाज नहीं थी. क्या भविष्य में होगी. फिल्म संगीत की वर्तमान मुर्दा स्थिति को देख करते हुए कहा जा सकता है कि शायद सदियां लग जाएं. फिर भी दूसरी लता नहीं हो पाएगी.

लता की आवाज देश-दुनिया के करोड़ों लोगों की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा है. कोई पल शायद ही होता होगा, जब दुनिया के किसी न किसी कोने में लता मंगेशकर का कोई न कोई गीत बज न रहा हो. सुबह के भजनों से लेकर रात को सोते हुए तकिये के पास रखे मोबाइल में बजते ओल्ड इज गोल्ड गाने. लता मंगेशकर गुजरने के बाद भी अपनी आवाज के साथ हमारे बीच बनी रहेंगी. लता सरहदों से परे थीं. उन्हें सिर्फ भारत के करोड़ों संगीत-प्रेमियों ने नहीं खोया है. पूरी दुनिया में जहां-जहां हिंदी का गीत-संगीत है, वहां-वहां लता थीं और अपनी आवाज के साथ रहेंगी.

लता मंगेशकर के करिअर की तरह उनका जीवन भी कई मायनों में बेहद उल्लेखनीय है. पिता दीनानाथ मंगेशकर (1900-1942) की नाटक मंडली थी और रंगमंच पेशा था. पिता ने लता को अभिनय के साथ-साथ गीत-संगीत में भी तैयार किया. लेकिन पिता का साया बहुत कम में उनके सिर से उठ गया. मां समेत चार भाई-बहनों की जिम्मेदारी सबसे बड़ी, मात्र 13 साल की लता पर आ गई. यहां से आप उनके जीवन में जिम्मेदारी, समझ, स्नेह, करुणा, ममता और निस्वार्थ सेवा को देखते हैं. उन्होंने जीविका के लिए, परिवार के पालन-पोषण के लिए संघर्ष किया. पिता से जो विरासत मिली थी, उसे ही लेकर वह आगे बढ़ीं और सिनेमा में मौके तलाशे. कुछ अभिनय. कुछ गीत. आसान कुछ नहीं था. उस पर परिवार को संभालना और भाई-बहनों का जीवन संवारना. लता निरंतर लगी रहीं. यह उनके जीवन की तपस्या थी.
लता मंगेशकरः आंख यूं ही नम नहीं होती...

आज पूरा मंगेशकर परिवार समृद्ध है और लगभग सभी एक ही जगह पर रहते हैं. लता उनके लिए वट-वृक्ष बन गईं. एक समय वह भी था जब फिल्म महल (1949) के गाने, आएगा आने वाला... की रिकॉर्डिंग के लिए लता स्लीपर पहन कर स्टूडियो गई थीं और एक समय यह भी है कि अपने पीछे वह तीन सौ करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति छोड़ गई हैं. लता अपने भाई-बहनों से लेकर पूरी फिल्म इंडस्ट्री और जाने-पहचाने-अनजाने लोगों के लिए दीदी बन गईं. उनकी मातृभाषा मराठी में, लता ताई. उन्होंने अपने हर मिलने-जुलने वाले को किसी बड़ी बहन के जैसा स्नेह और आशीर्वाद दिया. लता का जीवन देखें तो सचमुच वह बड़ी बहन होने का कर्तव्य निभाती रहीं.

अगर रामायण में आपको बड़े भाई का आदर्श, त्याग और छोटों के प्रति स्नेह भगवान राम में दिखता है तो बड़ी बहन के रूप में वही आदर्श, त्याग और छोटों के प्रति स्नेह कैसा हो सकता है, वह आप लता दीदी के जीवन में देख सकते हैं. छोटे भाई-बहनों को बनाने-संवारने के झंझावातों के बीच उन्हें शायद पता ही नहीं चला कि उनके जीवन में कभी बसंत आया या नहीं. हालांकि बसंत की आहट मिली भी होगी तो निश्चित ही उन्होंने अपने भाई-बहनों तथा उनके परिवार के लिए उसे अनदेखा कर दिया होगा.

लता मंगेशकर ने अनेक भाषाओं में हजारों गीत गाए, लेकिन एक गाना ऐसा भी है, जो अगर वह नहीं गातीं तो शायद उसका वह असर नहीं पैदा होता, जो समय की नदी के निरंतर बहते हुए आज तक बरकरार है. कवि प्रदीप ने निश्चित ही जो लिखा कि ऐ मेरे वतन के लोगों... वह बेहतरीन है. इस गीत का कोई जोड़ नहीं. कवि प्रदीप की लेखनी की कोई तुलना नहीं. मगर लता ने अपनी आवाज में जिन भावनाओं में डूब कर इस गीत को गाया, उसे सुन कर ही महसूस किया जा सकता है. सैकड़ों बार सुन चुकने के बाद भी आप जब फिर इस गाने को सुनें और इससे जुड़ जाएं तो आंखें अपने आप नम हो जाती हैं. तय है कि कुछ है इस आवाज में, आंखें यूं ही नम नहीं होतीं.
लता मंगेशकरः आंख यूं ही नम नहीं होती...

लता मंगेशकर अपनी गायकी के साथ तो हमारे बीच सदा रहेंगी ही, लेकिन लोगों के साथ अपने व्यवहार के लिए भी वह सदा याद रखी जाएंगी. 70 से अधिक वर्ष सार्वजनिक जीवन में बिताने, करोड़ों-करोड़ फैन्स के साथ मिलने-जुलने और लाखों स्टेज शो करने के बावजूद उनका व्यवहार सदा शालीन रहा. उनके चेहरे पर सदा मुस्कान और विनम्रता रही. उनका सार्वजनिक जीवन एक आदर्श है. आज के दौर में अगर किसी कलाकार लोगों का इतना प्यार मिले तो आप जानते हैं कि वह रात-दिन विज्ञापन फिल्में करके पैसे कमाने की मशीन बन जाएगा. घमंड में चूर होकर, उसके पैर जमीन पर नहीं रह जाएंगे. मगर लता आदर्श थीं. अपनी कला हो या फिर जीवन में आया ऐश्वर्य, उसका भौंडा प्रदर्शन उन्होंने कभी नहीं किया. किसी से कभी ऊंची आवाज में बात नहीं की. अपने आलोचकों से भी नहीं. अपनी मिमिक्री कर चुटकुले बनाने वालों से भी नहीं.

सब कुछ होकर भी अंत में वह सबकी दीदी थीं. उनके व्यवहार में बड़प्पन झलकता था. उनकी विनम्रता और शालीनता सदा याद रहेगी. उन्हें भारत रत्न दिया गया तो वह सचमुच वैसी थीं. अपनी सादगी से उन्होंने फिल्म, खेल और राजनीति की दुनिया में दोस्त बनाए और निभाए. वह जब भी विदेश जाती थीं तो अपने दोस्तों-परिचितों के लिए तोहफे खरीद कर लाती थीं. ऐसा करना उन्हें अच्छा लगता था. मिलने-जुलने वाले उनके घर से खाली हाथ नहीं लौटते थे. लता मंगेशकर के गुजर जाने से सुरों की दुनिया में एक सन्नाटा पैदा हो गया है. लेकिन महानायक अमिताभ बच्चन ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपने ब्लॉग में सही लिखा है कि उनकी आवाज अब स्वर्ग में गूंजेगी.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

 

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