सियासी बदहाली झेल रहे पाकिस्तान में क्या जल्द लगने वाला है मार्शल लॉ?
बेतहाशा आर्थिक संकट से गुजर रहे पाकिस्तान में इमरान खान के लॉन्ग मार्च से मुल्क में ऐसी सियासी अराजकता पैदा हो गई है कि अब वहां सेना मार्शल लॉ लगाने के मौके की तलाश में है. मार्शल लॉ का मतलब है कि अगर सेना को लगता है कि कोई राजनीतिक ताकत देश को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है, तो वह चुनी हुई सरकार का तख्तापलट करके मुल्क की कमान अपने हाथ में ले लेती है.
हालांकि पाकिस्तान के अवाम ने पहले भी कई बार सैन्य शासन की संगीनों तले कई दशक बिताये हैं. लेकिन फिलहाल वहाँ के हालात पूरी तरह से उलट गये हैं. साल 2018 में सेना की मदद से मुल्क की सत्ता में आने वाले इमरान खान ने अब उसी सेना के ख़िलाफ़ सीधा मोर्चा खोल दिया है. दोनों के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है और 4 नवंबर को इस्लामाबाद पहुंचने वाले इस लॉन्ग मार्च के दौरान अगर हिंसा भड़कती है, तो ये आशंका जताई जा रही है कि इमरान खान और उनकी पार्टी के प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार करके मार्शल लॉ लगाने की नौबत आ सकती है.
पाकिस्तान के कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इमरान खान अपने भाषणों में सरकार के अलावा सेना पर जिस तीखी भाषा में हमले करते हुए उसे कठघरे में खड़ा कर रहे हैं, वह सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई को नागवार गुजर रहा है. एक तरह से इमरान खान सेना को अपने खिलाफ कार्रवाई करने के लिए उकसा रहे हैं, इसलिये हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस्लामाबाद में घुसने से पहले ही उनके लांग मार्च को कुचल दिया जाए.
पाकिस्तान में सियासी अराजकता का जो माहौल बन गया है, उसका विश्लेषण करते हुए भारतीय सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश जस्टिस काटजू ने भी पाकिस्तान के साप्ताहिक अखबार 'द फ्राइडे टाइम्स' में एक लेख लिखा है. इसमें ये आशंका जताई गई है कि पाकिस्तान अगले छह महीने में मार्शल लॉ के अधीन हो जाएगा. पाकिस्तान की सियासी उथल-पुथल और आर्थिक स्थिरता पर नजर रखने वाले जस्टिस काटजू ने अपने तर्क के समर्थन में कुछ तथ्य रखे हैं.
उनके मुताबिक मुल्क की जिस आर्थिक अराजकता के कारण इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की सरकार को अविश्वास मत से बाहर कर दिया गया था, उस हालात में अब भी कोई बदलाव नहीं आया है. इमरान के बाद पाकिस्तान की सत्ता में आई पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट यानी पीडीएम भी अभी तक स्थिति में कोई सुधार नहीं कर पाई है. मौजूदा गठबंधन सरकार भी उसी महंगाई और आर्थिक समस्याओं की चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिस पर इमरान सरकार गिरी थी.
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पैसे मांगने के लिए दुनिया के कई देशों में भीख का कटोरा लेकर घूम रहे हैं. लेकिन तथ्य ये है कि जनता का आम समर्थन अब भी इमरान खान के पास है और वहां हाल में हुए उपचुनावों के नतीजों ने इसे साबित भी कर दिखाया. गौरतलब है कि इमरान की पार्टी पीटीआई ने आठ में से छह सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि सत्तारुढ़ पीडीएम को महज दो सीटें ही मिलीं.
इमरान खान को एक योद्धा बताते हुए लेखक का विश्लेषण है कि कभी-कभी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब अराजकता (Anarchy) और सेना (Army) के शासन के बीच एकमात्र विकल्प सिर्फ मार्शल लॉ ही बचा होता है और ऐतिहासिक अनुभव से पता चलता है कि इस स्थिति में सेना कदम रखती है. हालांकि मार्शल लॉ को लेकर उनका आकलन है कि यह जल्द नहीं होगा लेकिन अगले छह महीने या उससे भी कम समय में ऐसा होना तय है.
लेकिन ये भी समझना होगा कि पाकिस्तान में मार्शल लॉ जल्द लगने की नौबत क्यों आ सकती है और इस बारे में वहां के सेना प्रमुख के हाल ही में दिए बयान को याद रखना होगा. दरअसल, इस महीने की शुरुआत में जब इमरान खान ने जल्द चुनाव कराए जाने की मांग को लेकर लाहौर से लांग मार्च निकालने और इस्लामाबाद को घेरने का ऐलान किया था, तो उसके बाद 8 अक्टूबर को सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने इमरान को सीधी चेतावनी दी थी.
जनरल बाजवा ने कहा कि अगर पाकिस्तान को किसी समूह या ताकत ने अस्थिर करने की कोशिश की तो पाकिस्तानी सेना उसे कुचल देगी. " उन्होंने तब ये भी कहा कि इस तरह की किसी भी हरकत को सेना किसी भी सूरत में होने नहीं देगी, जिससे पाकिस्तान अस्थिर होता है. बाजवा ने भारत या अफगानिस्तान का नाम लिए बिना पाकिस्तान के पड़ोसी देशों को भी चेतावनी दी थी कि हमारी शांति की इच्छा को कमजोरी नहीं समझा जाये. लिहाजा, ये एक बयान ही सेना की नीयत को उज़ागर करने के लिए काफ़ी है कि वह किस ताक में है?
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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