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जमीन-आसमान ही नहीं, समंदर में भी चीन को मिलेगा करारा जवाब, 175 नए युद्धपोतों के साथ नौसेना ऐसे बढ़ाने जा रही ताकत

भारत और चीन के बीच समुद्र में भी टकराव की स्थिति है. मुकाबला हिंद महासागर क्षेत्र में है. इस बात को ध्यान में रखते हुए भारत अपनी नौसेना को मजबूत करने में लगा हुआ है. भारतीय नौसेना का असल मकसद 2035 तक अपने बेड़े में कम से कम 175 युद्धपोत को शामिल करने का है. इसके जरिए न केवल रणनीतिक बढ़त हासिल की जा सकेगी, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में पकड़ भी बढ़ेगी. इसके अलावा लड़ाकू विमानों, एयरक्राफ्ट, हेलिकॉप्टर्स और ड्रोन्स की संख्या को भी बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. भारतीय नौसेना हमारी सेना के तीनों अंगों में सबसे अधिक भारतीयकृत या आत्मनिर्भर है.  

नौसेना का बढ़ाया जा रहा बल

भारतीय नौसेना के लिए 150 युद्धपोतों की संख्या तय की गयी है, ये क्षमता की बात है और यह 2035 ईस्वी तक करना है. यह जानकारी स्रोतों से आ रही है. दूसरे पोत और युद्पोत मिलाकर यह संख्या होनी है. यह कोई एकीकृत योजना नहीं है. जो सबमरीन हैं, जो वेसेल्स हैं, वे सब कई परियोजनाओं के तहत निर्मित हो रही हैं. कुछ बहुत पहले से चल रही हैं, कुछ को एक्सटेंशन मिला है और कुछ की क्षमता बढ़ाई गयी है. जैसे प्रोजेक्ट 75 की बात हम करते हैं, जिसके तहत हमने 6 पनडुब्बियां बनाई हैं. उसे एक्सटेंशन दिया गया है और अब उसके तहत 3 और स्कॉर्पीन पनडुब्बियां बनाई जाएंगी. उसी तरह का प्रोजेक्ट 17ए है, जिसके तहत हम स्टील्थ फ्रिगेट्स बना रहे थे, इसकी भी समय सीमा 2026 की है. इसके साथ ही ही प्रोजेक्ट 15बी है, जिसके तहत अलग-अलग गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर हम बना रहे हैं. इसके तहत कुछ साल पहले हमने देखा था आइएनएस विशाखापट्टनम और इसी श्रेणी के और भी युद्धपोत आ रहे हैं. इसकी भी अलग समयसीमा है, जो भारतीय नौसेना चला रही है.

परियोजनाएं नयी भी, पुरानी भी, विस्तारित भी

इसके अंतर्गत ऐसी परियोजनाएं भी हैं, जिनकी तकनीक में सुधार किया जा रहा है. उदाहरण के लिए, जैसे जो प्रोजेक्ट 75 हैं, उसमें फ्रेंच मूल का डिजाइन है, जो मडगांव डॉकयार्ड में बनाया जा रहा है. अब इसका पूरी तरह भारतीयकरण हो जाएगा. कुछ जो हमारे जहाजों का निर्माण हो रहा है, वह रूस में भी हो रहा है, भले ही यह संख्या बेहद कम है. इसकी खास बात यह है कि पूरी तरह स्वदेशीकरण की कोशिश हो रही है, हालांकि कई सेंसर्स और उपकरण इसमें जो इस्तेमाल किए गए हैं, वे हम बाहर से आयात करते हैं. हालांकि, तीनों सेनाओं में भारतीय नौसेना का जो भारतीयकरण है, जो आत्मनिर्भरता है, वह 80 फीसदी तक चला जाता है. इसका ताजातरीन उदाहरण हमारा विमानवाहक पोत आइएनएस विक्रांत है. नौसेना ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जो चुनौतियां हैं, उसके मुताबिक एक लक्ष्य निर्धारित किया है और उसी राह पर हम चल रहे हैं.

चीन की चुनौती का है आभास

जहां तक चीन की बात है, उसे एक विस्तृत परिप्रेक्ष्य में देखना चाहिए. आज जो वैश्विक राजनीति है, उसके कई आयाम हो गए हैं. वैश्विक आर्थिक आयाम हो गए हैं, वैश्विक रणनीतिक आयाम हो गए हैं. शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद यह कयास लग रहे थे कि यह पूरी दुनिया एकध्रुवीय हो जाएगी, लेकिन चीन के उभार और उसकी विस्तारवादी नीति ने सारी संकल्पना को नए संदर्भ दिए हैं. अब देखा जा रहा है कि चीन कई देशों के साथ अलग तरह का समूह बना रहा है. अमेरिका भी कुछ नयी तरह की रणनीति पर काम करता है. खासकर, अमेरिका के जो प्रेसिडेंट ट्रंप थे, उन्होंने हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया और अफ्रीकी महाद्वीप का जो पूर्वी किनारा है, वहां से अमेरिका का जो पश्चिमी किनारा है, वहां तक के विस्तृत क्षेत्र को चुनौतीपूर्ण संदर्भ में सामने रखा. इसमें दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर और अरब सागर का कुछ इलाका भी है, जहां चीन न केवल अपनी उपस्थिति बना रहा है, बल्कि अपनी नौसेना के बल पर एक नयी तरह का पर्ल ऑफ स्ट्रिंग्स बना रहा है. इस तरह यह पूरा इलाका जो है, वह काफी रणनीतिक महत्व का हो गया है. भारत की इसमें काफी अहम भूमिका है, क्योंकि पश्चिमी देश उसे एक संतुलनकारी शक्ति के तौर पर देखते हैं. हालांकि, भारत की जो विदेश नीति है, उसमें भारत अपने हितों को सर्वाधिक प्राथमिकता देगा.

भारत के युद्धाभ्यास जारी

कई वर्षों से भारतीय नौसेना के युद्धाभ्यास जारी हैं. जैसे मालाबार है, मिलन वगैरह हैं. इसके अलावा आसियान के साथ भी हमारा नौसैनिक अभ्यास चल रहा है. वियतनाम, फिलीपींस या इंडोनेशिया हों, उनके साथ हम नौसैनिक संबंधों को कूटनीतिक संदर्भ में बना कर चल रहे हैं. चीन अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति के साथ दक्षिण चीन सागर में अफ्रीका के पास, पूर्वी चीन सागर में कई देशों को प्रभावित कर रहा है. आसियान देश हों, जापान हों या छोटे-छोटे द्वीपीय देश हैं, उन पर भी इसका असर पड़ रहा है. यह कुल मिलाकर भारत को भी प्रभावित कर रहा है. भारत की इसमें बड़ी भूमिका है और अगर उसे अपनी भूमिका को बड़ा बनाना है, तो नौसैन्य ताकत को भी बड़ा करना होगा. इस बात को भारत बहुत अच्छी तरह से समझता भी है.

नौसेना लगातार विश्व की दूसरी नौसेनाओं, खासकर दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, के साथ काम कर रहा है. भारत अपने समुद्री बेड़ों को मजबूत कर रहा है. जो गुड प्रैक्टिस है, उसे अपना रहा है और अगर हम भविष्य में किसी काल्पनिक युद्ध की कल्पना करें, तो कोई भी एक देश या कोई बड़ी शक्ति बड़ा बदलाव नहीं ला सकती. चाहे वह अमेरिका या चीन ही क्यों न हों, आज भी हमारे सामने रूस-यूक्रेन का उदाहरण है. यूक्रेन को कई देश समर्थन दे रहे हैं, तभी वह लड़ रहा है. रूस भी चीन और उत्तर कोरिया के साथ गठबंधन कर रहा है. इसी चीज को अगर हम समुद्री संघर्ष में उतारना चाहें, तो इसमें भी अलग समूहों और उनके आपसी सहयोग की ही जीत होगी. ताइवान के परिदृश्य में हम देख सकते हैं. वह एक खेल का मैदान है, अमेरिका और चीन के बीच. कोई एक शक्ति या हथियार प्रभावी नहीं होगा, बल्कि एक रणनीतिक गठबंधन ही जीतेगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.] 

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