कश्मीर में तीन दिवसीय जी-20 बैठक लेकिन नहीं गली पाकिस्तान की दाल, जानिए इससे भारत ने क्या हासिल किया
कश्मीर में भारत ने जी20 के महत्वपूर्ण बैठक का तीन दिनों तक आयोजन किया और शानदार तरीके से किया. इसी बीच भारत के प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर भी रहे. यानी, कुल मिलाकर दुनिया को यह संदेश दिया गया कि कुछ भी 'विशिष्ट' या 'अलग' नहीं हो रहा है और जैसे पूरे देश में जी20 की अलग बैठकें आयोजित हुईं, वैसे ही कश्मीर में भी यह बैठक की गई. पाकिस्तान की चीख-पुकार पर कुल मिलाकर चीन ने ही रिस्पांस दिया और सउदी अरब और तुर्की अपने एजेंडे के तहत इस मीटिंग में नहीं आए. इसके बाद भी यह मीटिंग सबसे अधिक डेलीगेट्स के साथ संपन्न हुई. भारत ने इससे क्या खोया, क्या पाया, इसका विश्लेषण विस्तार से तो होना बाकी है.
जो आए वे महत्वपूर्ण, नहीं आनेवाले महत्वहीन
चीन का विरोध तो कश्मीर को लेकर हमेशा ही रहा है, उसने लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में भी हिस्सा नहीं लिया था. वह कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं मानता और यह उसकी पॉलिसी है, तो इससे बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता. पाकिस्तान की दुखती रग है, कश्मीर तो वह चीखेगा ही. वह नही चीखता, बिलावल गुलाम कश्मीर (पाक अधिकृत कश्मीर) में नहीं जाते, तो आश्चर्य की बात थी. तुर्की का जहां तक सवाल है, तो वह खुद भले ही बर्बाद होनेवाला है, लेकिन खलीफा समझने की गलतफहमी से निकला नहीं है. फिर, याद कीजिए कि अर्दोआन जब भी कश्मीर का जिक्र करते हैं, तो फलस्तीन से उसकी तुलना भी कर देते हैं. अर्दोआन के लिए अभी का चुनाव भी बहुत मुश्किल है, तो वह अपनी जनता के अंदर के मुसलमान को जगाना चाह रहे होंगे, तो टर्की नहीं आया. सउदी अरब का जहां तक सवाल है, तो वह प्रोग्रेसिव और मॉडर्न बनना चाह रहा है, लेकिन इस्लामी जो कट्टरपंथ है, उसको भी नाराज नहीं करना चाहता. वह संतुलन बनाने की जद्दोजहद में है. वैसे, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता.
टूरिज्म को लेकर यह तीसरी मीटिंग है और इसमें सबसे अधिक डेलिगेट्स आए. 60 से अधिक प्रतिनिधियों का आना बताता है कि पाकिस्तान-चीन की नफरती साजिश परवान नहीं चढ़नेवाली है. तीन दिनों तक पूरा कश्मीर में लगातार आतंकवाद प्रभावी रहा, जिसके पीछे पाकिस्तान का पूरा हाथ रहा. भविष्य में भी वह ऐसे प्रयास करेगा ही. अब, लेकिन भारत बदल गया है. अनुच्छेद 370 हटाना ही एक बड़ा कदम है. आतंकी तो अपने मकसद को अंजाम देने की कोशिश में थे ही, लेकिन तीन दिनों तक यह पूरा कार्यक्रम चला, सैकड़ों लोगों ने इसमें हिस्सा लिया और कहीं कोई हल्की सी घटना भी नहीं हुई. जिस तरह से भारत सरकार ने सुरक्षा को संभाला और जिस तरह से लोगों ने, आम नागरिकों ने हिस्सा लिया, बाजार गुलजार रहे, जीवन सामान्य गति से चलता रहे, उसने कश्मीर के संदर्भ में भारतीय दावे को पुख्ता ही किया कि कश्मीर में सब चौकस है, सब सही है.
हमने की उच्चतम स्तर की राजनय
हम न तो डिप्लोमेटिक तरीके से फेल हुए, न ही हम अतिरिक्त उदार या कठोर हैं. जब कोई भी देश किसी प्राकृतिक आपदा में फंसता है, या किसी मुसीबत में होता है, आपातकालीन स्थिति होती है तो देशों का एक समान व्यवहार ही होता है. जब गुजरात के भुज में 2001 में भूकंप आया था, तो पाकिस्तान ने भी हमें सहायता भिजवाई थी और वह सहायता हमने ली थी. भारत तो हमेशा से ही विश्व में शांति, उदारता और मदद का प्रतीक है. हमने भी तुर्किए को उस समय इसीलिए मदद दी, क्योंकि वह मुसीबत में था. यह हमारा डिप्लोमैटिक फेल्योर नहीं था कि तुर्की या सउदी अरब नहीं आए. वे मुस्लिम देशों की राजनीति करते हैं और उनकी नीतियों के अनुरूप ही कदम उठाते हैं. हमें तो घरेलू स्तर पर भी विरोध झेलना पड़ा. महबूबा मुफ्ती ने घोषणा कर दी कि वे तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगी, जब तक अनुच्छेद 370 नहीं हट जाता. यह उन्होंने किया, क्योंकि वे क्षेत्रवादी और मजहबी पॉलिटिक्स करती हैं. कश्मीर में अब तक चूंकि दो-तीन परिवार ही फलते-फूलते रहे, इसलिए उनकी चीख स्वाभाविक है. अब कश्मीर सही मायनों में डेमोक्रेटिक बना है, तो महबूबा जैसे लोग ऐसी ही बातें करेंगे.
भारत बढ़ेगा कश्मीर को लेकर विकास की राह
कश्मीर को लेकर भारत की आगे की राह बहुत स्पष्ट है. उसके आर्थिक विकास, सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण को लेकर ही तमाम नीतियां बन रही हैं. जी20 के इस बैठक की थीम में भी तीन बिंदु ही प्रमुख थे- सस्टेनेबल टूरिज्म, इको-टूरिज्म और एडवेंटर टूरिज्म. यानी, कश्मीर की भौगोलिक ईकाई को ध्यान में रखकर, उसके प्राकृतिक वातावरण को ध्यान में रखकर ही विकास के थीम भी तय किए जा रहे हैं. सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए वहां आर्थिक प्रगति लाना और सतत् विकास पर काम करना ही भारत सरकार का विजन है. इससे स्पष्ट विजन भला कोई भी सरकार क्या दे सकती है, सरकार ने ये साफ कर दिया है कि वह कश्मीर को संरक्षित रखते हुए, वह अगर स्वर्ग है तो उसकी सुंदरता को बरकरार रखते हुए ही उसका विकास करना चाहता है.
एक बात यह भी जाननी चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय संबंध हमारी घरेलू नीतियों औऱ बातों से प्रभावित तो होती है, लेकिन बहुत अचानक से मोड़ नहीं लिया जाता, डिरेल नहीं किया जाता. आप देखेंगे कि पंडित नेहरू के समय जो विदेशनीति थी, उसी को एक्सटेंशन दिया गया है. बड़ी पॉलिसी डिसीजन अमूमन बहुत तेजी से प्रभावित नहीं होते हैं. नेहरू के समय में भी कहा जाता था कि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है, अभी भी कहा जाता है, बस उस अभिन्नता को प्रकट करने के लिए अब अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया है. तो, इसकी तो संभावना नहीं है कि अब वापस अनुच्छेद 370 को लगाया जाए, लेकिन हां अगर ऐसा कुछ गलती से भी होता है, तो वह अभूतपूर्व और भारतीय डिप्लोमेसी, विदेशनीति की पहले कभी न सुनी गई घटना जैसा होगा.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)