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महाराष्ट्र: राष्ट्रपति शासन की जगह अगर शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की सरकार बनी तो किसकी पांचों उंगलियां घी में होंगी?

अब लगभग स्पष्ट हो गया है कि महाराष्ट्र में शिवसेना वह करने जा रही है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. साथ मिलकर लड़ने के बावजूद बीजेपी-शिवसेना के रास्ते इतनी कड़वाहट के साथ अलग हुए हैं कि फिलहाल दोनों के बीच किसी मान-मनौव्वल या समझौते की गुंजाइश नहीं दिखती.

अब लगभग स्पष्ट हो गया है कि महाराष्ट्र में शिवसेना वह करने जा रही है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. साथ मिलकर लड़ने के बावजूद बीजेपी-शिवसेना के रास्ते इतनी कड़वाहट के साथ अलग हुए हैं कि फिलहाल दोनों के बीच किसी मान-मनौव्वल या समझौते की गुंजाइश नहीं दिखती. चुनाव पूर्व के 50-50 फार्मूले को लेकर केयरटेकर सीएम देवेंद्र फडणवीस द्वारा शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को झूठा ठहराने की कोशिश के बाद मामला इतना बिगड़ गया कि उद्धव ने फडणवीस के फोन तक नहीं उठाए और महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए दिल्ली में बैठी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का नंबर खुद घुमा दिया.

पाठकों को याद ही होगा कि अपने पिछले आलेख (https://www.abplive.com/blog/blog-maharashtra-politics-and-shiv-sena-chief-uddhav-thackray-strategy-1232638) का समापन मैंने इसी आशय के साथ किया था कि शिवसेना के लिए इस बार मत चूको चौहान वाली स्थिति है. यह भी स्पष्ट है कि शिवसेना ने जिस सीएम पद के लिए केंद्र और राज्य में बीजेपी (एनडीए) से वर्षों पुराना नाता तोड़ दिया है, उस पद को लेकर वह किसी भी नए समीकरण अथवा राज-काज के बदले हुए प्रारूप में समझौता नहीं करेगी.

तय है कि कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की मदद से अगर महाराष्ट्र में शिवसेना की सरकार बनती है, तो पहले मुख्यमंत्री शिवसेना का ही बनेगा. पिछली विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने के आखिरी क्षणों तक बीजेपी के सरकार बनाने में असफल ठहरने के बाद फिलहाल वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है. महाराष्ट्र के अन्य राजनीतिक दलों के लिए राहत की बात यह है कि चूंकि राष्ट्रपति ने अभी विधानसभा को भंग नहीं किया है, इसलिए वे संख्या बल जुटाकर सरकार बनाने का दावा अभी भी पेश कर सकते हैं. राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दो परिदृश्य बनते हैं- एक तो राष्ट्रपति विधानसभा भंग करके जल्द चुनाव कराने के लिए कहें, दूसरे वह विधानसभा को निलंबित रखकर राजनीतिक दलों को सरकार बनाने के लिए राज्यपाल के समक्ष दावा पेश करने की अनुमति दे सकते हैं.

शुरू में कांग्रेस आलाकमान की राय शिवसेना के साथ सरकार बनाने के पक्ष में नहीं थी. सहयोगी होने और गठबंधन का संख्या बल बहुमत से काफी कम होने के हवाले से एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने ऐलान कर रखा था कि वे कांग्रेस का रुख देखने के बाद ही शिवसेना की तरफ हाथ बढ़ाएंगे. लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेता मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा महाराष्ट्र के अपने नवनिर्वाचित विधायकों का मन टटोलने के बाद कांग्रेस के रणनीतिकार अहमद पटेल ने शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से मुलाकात की. इससे जाहिर हो गया कि कांग्रेस भी महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए शिवसेना के साथ सरकार बनाने को लेकर कुछ कदम आगे बढ़ चुकी है.

मौजूदा घटनाक्रम के मद्देनजर शिवसेना (56)+ एनसीपी (54)+ कांग्रेस (44) की सरकार तो बनती दिख रही है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि इस सहभागिता का सबसे ज्यादा लाभ किस दल को मिलेगा. शिवसेना का सीएम बनेगा तो उसकी पांचों उंगलियां घी में होंगी. प्रमुख मंत्री पद भी उसकी झोली में जा सकते हैं. सबसे बड़ा दल (105 विधायक) होने के बावजूद बीजेपी को सत्ता से बाहर करके निश्चित ही शिवसेना का अहं संतुष्ट होगा. सबसे बड़ा फायदा तो यह होगा कि बीजेपी पूरे महाराष्ट्र और बीएमसी में अपनी ताकत बढ़ाकर जिस तरह से शिवसेना की बांह मरोड़ती आ रही थी, साथ ही उसका वोट बैंक भी छीन रही थी, उस पर अंकुश लग जाएगा. अहम बात यह है कि कांग्रेस-एनसीपी के साथ दिखने पर शिवसेना के प्रति कुल मिलाकर किसानों के अलावा मराठों, मुस्लिमों और दलितों का रुख भी बदल सकता है.

वैसे सही मायनों में देखा जाए तो इस बार के चुनावों में बाजी एनसीपी ने मारी है. उसकी सीटें कांग्रेस से अधिक और शिवसेना के लगभग बराबर हो जाने के चलते शासन-प्रशासन में शक्ति संतुलन बना रहेगा. शक्तिशाली मराठा क्षत्रप शरद पवार की संभवतः यह आखिरी चुनावी पारी है. उनके निष्क्रिय होने से पहले एनसीपी को राज्य में भविष्य के लिए शक्ति-संचय तथा नया नेतृत्व उभारने का अवसर मिलने जा रहा है. घपलों-घोटालों में फंसे उसके नेता भी राहत की सांस ले सकेंगे. लेकिन सबसे ज्यादा फायदे में कांग्रेस ही रहने वाली है. एक तो वह कभी अपने अभेद्य गढ़ रहे महाराष्ट्र में एनसीपी से ही लगातार पिछड़ती जा रही थी, दूसरे उसे मरणासन्न अवस्था से सचेतन होने का अवसर मिल जाएगा. नई सहभागिता में सबसे कम संख्या बल होने के बावजूद उसके हाथ में अहम सूत्र-संचालन रहेगा क्योंकि सरकार बनाने के लिए शिवसेना खुद चल कर उसकी शरण में गई है. यह स्थिति कांग्रेस को बंदरघुड़कियां देकर सरकार से अपना काम निकालने में सक्षम बनाएगी.

शिवसेना के उग्र भगवा दल होने और कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष पार्टी होने के दावों का अंतर्विरोध कांग्रेस यह कह कर दूर कर सकती है कि उसने शिवसेना को नहीं बल्कि अपनी दशकों पुरानी सहयोगी एनसीपी का साथ दिया है और महाराष्ट्र की जनता को मध्यावधि चुनाव झेलने से बचा लिया है. भयंकर गुटबाजी की शिकार रही कांग्रेस के लिए सुखद यह भी है कि उसके लिए एनसीपी के साथ अगले कई चुनाव लड़कर भी महाराष्ट्र की सत्ता में वापसी के कोई आसार नहीं थे. लेकिन बिल्ली के भाग से ऐसा छींका टूटने जा रहा है कि उसे बिना कुछ किए-धरे ही सत्ता सुख मिलेगा. इसीलिए राज्य के अधिकतर कांग्रेसी विधायक सरकार में शामिल होने को मरे जा रहे हैं. वे बाहर से समर्थन देने के तर्क को सुनना तक नहीं चाहते. उन्होंने देखा है कि ज्यादा लंबे समय तक सत्ता में बाहर रहने से पार्टी के कट्टर समर्थक और वर्तमान सांसद-विधायक भी दामन छोड़ जाते हैं.

निश्चित ही इस परिदृश्य में सबसे बड़ा नुकसान बीजेपी का हुआ है. शिवसेना ने साथ मिलकर 161 सीटें जीतने के बाद जो बीजेपी नेता खुद के मंत्री-संत्री बन जाने को दीवार पर लिखी इबारत समझ रहे थे, निराशा और हताशा में उनका दिल बैठ गया होगा. वे यही सोच कर जी को बहला रहे होंगे कि शिवसेना का यह बेमेल गठबंधन ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सकेगा. लेकिन इतिहास गवाह है कि कांग्रेस ने जॉर्ज फर्नांडीज और दत्ता सामंत जैसे यूनियन लीडरों को शिवसेना की मदद से ही हीरो से जीरो बनाया था और एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवारों की जगह कांग्रेस के राष्ट्रपति बनवाए थे. कांग्रेसी नेता मुरली देवड़ा को मुंबई का महापौर बनाने का किस्सा हो या इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल का समर्थन करने का- बाल ठाकरे कांग्रेस के साथ ही नजर आते थे. पुराने कांग्रेसी शरद पवार और बाल ठाकरे की मित्रता तथा उद्धव का पवार के प्रति सम्मान किसी से छिपा नहीं है. इसलिए शिवसेना और कांग्रेस का दो कदम भी साथ न चल पाने की बात में दम नहीं लगता.

फिलहाल बीजेपी के डर से छिपाए गए विधायक धीरे-धीरे प्रकट हो रहे हैं, कांग्रेस-एनसीपी आपसी बैठक करके न्यूनतम साझा कार्यक्रम पर विचार-विमर्श कर रही हैं, शिवसेना के साथ मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री, विधानसभाध्यक्ष, मंत्री-पदों आदि की हिस्सेदारी और अवधि तय हो रही है. शरद पवार और अहमद पटेल ने उद्धव ठाकरे को फोन पर कहा है- चिंता मत कीजिए! आसार यही हैं कि राष्ट्रपति शासन के तहत उपलब्ध विकल्पों और प्रावधानों का फायदा उठाते हुए अगर पखवाड़े भर में नई सरकार बन गई तो बीजेपी की चिंता महाराष्ट्र में लंबे समय के लिए बढ़ जाएगी.

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