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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

आम चुनाव 2024: ममता बनर्जी का सीपीएम के ख़िलाफ़ रुख़ के पीछे है ख़ास मंशा, बीजेपी पर पड़ेगा असर, समझें हर पहलू

विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' लोक सभा चुनाव, 2024 में बीजेपी के विजय रथ को रोकने के लिए अस्तित्व में आया है. कहने को इसका काग़ज़ी स्वरूप देशव्यापी है, लेकिन वास्तविकता में इसकी सार्थकता और संरचना राज्यस्तरीय ही है. ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि 'इंडिया' गठबंधन में शामिल सभी दलों में एकमात्र कांग्रेस ही है जिसका जनाधार, कम या ज़ियादा, पैन इंडिया है. बाक़ी जितनी भी पार्टियाँ विपक्षी गठबंधन  का हिस्सा हैं, उनका प्रभाव मूल रूप से एक विशेष राज्य तक ही सीमित है.

सीट बँटवारे पर सहमति राज्य स्तर पर ही

इस आधार पर यह कहना मुनासिब होगा कि विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' में तमाम दलों के बीट सीट बँटवारे पर सहमति राज्य स्तर पर ही बन सकती है या बनेगी. राज्य विशेष के सियासी समीकरणों और गठबंधन में शामिल दलों का उस राज्य में किस तरह की राजनीतिक हैसियत या वर्तमान में जनाधार है, उसमें ही सीट बँटवारे का नुस्ख़ा छिपा है.

पश्चिम बंगाल में सीट बँटवारे पर रार

गठबंधन में शामिल तमाम दल इसके लिए राज्यों में बैठक कर भी रहे हैं. कुछ राज्यों में सीट बँटवारा का काम बेहद पेचीदा रहने वाला है. ऐसे ही दो राज्य उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल हैं. मौजूदा स्थिति के मुताब़िक उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच किस तरह की सहमति बनती है, इस पर आम लोगों के साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों की भी नज़र टिकी है.

ममता बनर्जी के अड़ियल रुख़ की वज्ह

उत्तर प्रदेश के अलावा पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है, जहाँ सीट बँटवारे पर सहमति को लेकर अधिक खींचतान की संभावना है. पश्चिम बंगाल की राजनीति में सक्रिय ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ ही कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) या'नी सीपीआई (एम) तीनों ही दल विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' का हिस्सा हैं.

इनमें ममता बनर्जी 2011 से पश्चिम बंगाल की राजनीति की सिरमौर बनी हुई हैं. वहीं 34 साल तक लगातार पश्चिम बंगाल की सत्ता पर क़ाबिज़ सीपीआई (एम) अब प्रदेश में अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है. कम से कम पिछले एक दशक में हुए विधान सभा और लोक सभा चुनावों के नतीजों से तो यह कहा ही जा सकता है. उसके साथ ही 1977 से पहले पश्चिम बंगाल में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अब यहाँ एक-एक सीट के लिए मोहताज हो गयी है.

पश्चिम बंगाल में बीजेपी की बढ़ती ताक़त

पश्चिम बंगाल सीटों की संख्या के लिहाज़ से भी बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य है. यहाँ कुल 42 लोक सभा सीट हैं. उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद पश्चिम बंगाल में ही सबसे अधिक लोक सभा सीटें हैं. पश्चिम बंगाल की अहमियत एक और कारण से है. एक दशक पहले तक पश्चिम बंगाल में बीजेपी का कोई जनाधार नहीं था. प्रदेश में 2011 तक सीपीआई (एम), कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच ही चुनावी लड़ाई सीमित थी. हालाँकि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी टीएमसी तक़रीबन 13 साल से पश्चिम बंगाल की राजनीति में छाई हुई हैं. इसके बावजूद अब बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में उस तरह की राजनीतिक हैसियत बना ली है, जिससे ममता बनर्जी के सामने भी ख़तरा पैदा होने लगा है.

सीपीआई (एम) को लेकर सख़्त ममता बनर्जी

'इंडिया' गठबंधन के तहत आम चुनाव, 2024 में पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ ही कांग्रेस और सीपीआई (एम) के बीच सीट बँटवारा होना चाहिए था. लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी की सर्वेसर्वा ममता बनर्जी के रुख़ से मामला पेचीदा हो गया है. ममता बनर्जी ने एक तरह से स्पष्ट कर दिया है कि टीएमसी भले ही 'इंडिया' गठबंधन का हिस्सा हो, लेकिन पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) के साथ कभी भी तालमेल कर चुनाव नहीं लड़ेगी. इसके साथ ही ममता बनर्जी के रुख़ से यह भी अंदाज़ा होने लगा है कि टीएमसी अधिक से अधिक दो या तीन सीट ही कांग्रेस के लिए छोड़ने को तैयार होगी. ममता बनर्जी के इस रुख़ के पीछे तृणमूल कांग्रेस को लेकर भविष्य की चिंता है.

सीटों का बँटवारा मनमुताब़िक चाहती हैं ममता

इसी को ध्यान में रखकर ही ममता बनर्जी विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के तहत लोक सभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में सीटों का बँटवारा अपने मनमुताब़िक ही चाहती है. कांग्रेस समेत तमाम दल सीटे बँटवारे को लेकर जल्द से जल्द हर राज्य में सहमति बनाना चाहते हैं. ऐसे में ममता बनर्जी ने 9 जनवरी को सख्त लहज़े में कह दिया है कि यहाँ टीएमसी का सीपीआई (एम) के साथ किसी तरह का गठबंधन नहीं हो सकता. भविष्य की रणनीति के मद्द-ए-नज़र ममता बनर्जी ने सीपीआई (एम) को आतंकवादी पार्टी तक कह डाला. उन्होंने दक्षिम 24 परगना के जयनगर में इतना तक कह डाला कि सीपीआई (एम)..बीजेपी की मदद कर रही है. सीपीआई (एम) को लेकर ममता बनर्जी का यह बयान सोची-समझी रणनीति का ही हिस्सा है.

सीपीआई (एम) को महत्व टीएमसी के लिए ख़तरा

पश्चिम बंगाल में बीजेपी के उभार की वज्ह से ममता बनर्जी के सामने दो तरह का ख़तरा पैदा हो गया है. ममता बनर्जी चाहती हैं कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी के बढ़ते जनाधार पर अंकुश लगे. इसके साथ ही ममता बनर्जी की लगातार यह भी कोशिश है कि पश्चिम बंगाल में फिर सीपीआई (एम) का उभार न हो जाए. ममता बनर्जी को यह भलीभाँति एहसास है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के उभार की संभावना बेहद कम है. वहीं अगर मौक़ा मिल गया, तो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) फिर से पुराना रुत्बा हासिल कर सकती है.

सीपीआई (एम) को उभरने नहीं देना मकसद

पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है, जहाँ वर्षों से कैडर आधारित राजनीति की परंपरा रही है. जब तक सीपीआई (एम) सत्ता में थी, प्रदेश में उसके समर्थकों में कैडर की तरह उत्साह रहता था. ममता बनर्जी की पार्टी ने  2011 के विधान सभा चुनाव में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए सीपीआई (एम) की 34 साल पुरानी सत्ता को उघाड़ फेंका था. इस चुनाव में टीएमसी को क़रीब 39 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ राज्य की 294 में 184 सीटों पर जीत मिली थी. सीपीआई (एम) 40 सीट ही जीत पायी थी, लेकिन उसका वोट शेयर 30 फ़ीसदी था.

सीपीआई (एम) की स्थिति बेहद दयनीय

उसके बाद से धीरे-धीरे पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) की स्थिति बेहद दयनीय होती गयी. 2016 में सीपीआई (एम) महज़ 26 विधान सभा सीट पर ही जीत पायी. उसका वोट शेयर भी गिरकर 20 फ़ीसदी से नीचे जा पहुँचा. इसके पाँच साल बाद जब मार्च-अप्रैल 2021 में विधान सभा चुनाव हुआ, तो पश्चिम बंगाल से सीपीआई (एम) का पूरी तरह से सफाया हो गया. कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद विधान सभा चुनाव, 2021 में सीपीआई (एम) पश्चिम बंगाल में खाता तक नहीं खोल पायी. सीपीआई (एम) का वोट शेयर भी पाँट फ़ीसदी से नीचे चला गया. इस चुनाव में कांग्रेस का भी खाता नहीं खुला और उसका वोट शेयर तो तीन फ़ीसदी से नीचे चला गया. एक तरह से इस चुनाव से संकेत मिल गया कि पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) और कांग्रेस की राजनीति लंबी अवधि के लिए रसातल में चली गयी, जहाँ से पनपने की गुंजाइश ख़त्म सी हो गयी.

सीपीआई (एम) हर जगह से है गायब

इसी तरह से लोक सभा चुनाव में भी धीरे-धीरे सीपीआई (एम) का पूर्ण सफाया हो गया. आम चुनाव, 2009 में जब सीपीआई (एम) पश्चिम बंगाल की सत्ता में थी, तब 42 में से 9 सीट जीतने में सफल रही थी. हालाँकि इस चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी से सबसे अधिक 19 सीट पर क़ब्ज़ा कर लिया था, इसके बावजूद वोट शेयर के मामले में सीपीआई (एम) आगे थी. इस चुनाव में टीएमसी का वोट शेयर 31.2% था, जबकि सीपीआई (एम) को 33.1% हासिल हुए थे.

इस चुनाव के बाद लोक सभा में भी सीपीआई (एम) का दुर्दिन शुरू हो गया. आम चुनाव, 2014 में सीपीआई (एम) को महज़ दो सीट पर जीत मिली और उसका वोट शेयर 23% पर जा पहुँचा. आम चुनाव, 2019 में तो पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) का सफाया ही हो गया. उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली और उसका वोट शेयर भी 6.33% ही रहा.

ये आँकड़े बता रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में विधान सभा के साथ ही लोक सभा में भी सीपीआई (एम) का कोई अस्तित्व नहीं बचा है. वोट शेयर के आधार पर जनाधार भी सिकुड़ चुका है. ममता बनर्जी की कोशिश है कि सीपीआई (एम) की यह स्थिति भविष्य में भी क़ायम रहे. तृणमूल कांग्रेस का उभार ही पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) और कांग्रेस के विरोध से हुआ है. प्रदेश के लोगों में सीपीआई (एम) और कांग्रेस के ख़िलाफ़ माहौल तैयार करके ही ममता बनर्जी 2011 से वहाँ की सत्ता पर बनी हुई हैं. 

ममता बनर्जी का टीएमसी के भविष्य पर फोकस

ममता बनर्जी चाहती तो हैं कि आम चुनाव, 2024 में मोदी सरकार की हार हो, लेकिन वो इसके लिए पश्चिम बंगाल में सीपीआई (एम) और कांग्रेस का थोड़ा बहुत भी उभार स्वीकार नहीं कर सकती हैं. मोदी सरकार का विजय रथ थम जाए, लेकिन इसके एवज में ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में अपनी पार्टी के भविष्य से कोई समझौता नहीं करना चाहती हैं.

सीपीआई (एम) के साथ जुड़ना तृणमूल कांग्रेस के भविष्य के लिए सही नहीं होगा, इसे वे अच्छी तरह से समझ रही हैं. इसके माध्यम से वो पश्चिम बंगाल के लोगों को संदेश भी देना चाहती हैं कि सीपीआई (एम) के विरोध के  टीएमसी के रुख़ में कोई बदलाव नहीं आया है.ममता बनर्जी को ब-ख़ूबी एहसास है कि अतीत से टीएमसी की राजनीति का आधार सीपीआई (एम) का विरोध रहा है और भविष्य में भी इस विरोध के माहौल को बनाए रखना ही पार्टी हित में है.

पश्चिम बंगाल में बीजेपी ममता बनर्जी के लिए ख़तरा

इस पहलू के साथ ही ममता बनर्जी विपक्षी गठबंधन के नाम पर ऐसा कोई मौक़ा नहीं देना चाहती हैं, जिससे पश्चिम बंगाल में बीजेपी की संभावनाओं को बल मिले. बीजेपी ने इस बार के चुनाव में पश्चिम बंगाल में 42 में से 30 से 35 सीट जीतने का लक्ष्य रखा है और टीएमसी के ख़िलाफ़ माहौल बनाने में लगातार जुटी है.

जब 2011 में ममता बनर्जी सीपीएम (आई) की सत्ता को उखाड़ रही थी, उस वक्त़ पश्चिम बंगाल में बीजेपी की राजनीतिक हैसियत नगण्य थी. पश्चिम बंगाल में 2011 में बीजेपी 289 विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़ी थी, लेकिन किसी भी सीट पर जीत नहीं पायी थी. उसका वोट शेयर भी महज़ चार फ़ीसदी रहा था. विधान सभा चुनाव, 2016 में बीजेपी ने यहाँ 293 सीटों पर उम्मीदवारे उतारे. हालाँक बीजेपी को जीत सिर्फ़ 3 सीट पर ही मिली, लेकिन पहली बार पश्चिम बंगाल के विधान सभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 10% से ऊपर चला गया. बीजेपी को एहसास हो गया था कि प्रदेश में सीपीआई (एम) और कांग्रेस के लगातार कमज़ोर होने का फ़ाइदा उसे मिलेगा. धीरे-धीरे ऐसा हुआ भी.

प्रदेश में बीजेपी का लगातार बढ़ रहा है प्रभाव

इस बीच जब 2019 में लोक सभा चुनाव हुआ, तब बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में अपने प्रदर्शन से सबको चौंका दिया. साथ ही ममता बनर्जी के लिए भविष्य में बड़ा ख़तरा बनने का भी संकेत दे दिया. बीजेपी को 2014 में पश्चिम बंगाल में सिर्फ़ दो लोक सभा सीट पर जीत मिली थी. उसका वोट शेयर 17 फ़ीसदी रहा था. इस चुनाव में टीएमसी को क़रीब 40 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ 34 सीटों पर जीत मिली थी. इस चुनाव में टीएमसी और बीजेपी की सीटों में 32 का फ़ासला रहता है, जबकि वोट शेयर का अंतर 23 फ़ीसदी का था.

जब 2019 में आम चुनाव होता, तब बीजेपी पश्चिम बंगाल में एक तरह से ममता बनर्जी से बराबरी का मुक़ाबला बना देती है. बीजेपी 42 में से 18 सीटों पर जीत जाती है और टीएमसी को 12 सीटों के नुक़सान के साथ 22 सीटों से संतोष करना पड़ता है. वोट शेयर के मामले में भी बीजेपी ममता बनर्जी की पार्टी के बेहद क़रीब पहुंच जाती है. इस चुनाव में टीएमसी का वोट शेयर 43.3% रहता है, जबकि बीजेपी का वोट शेयर 40.7% तक पहुँच जाता है. हम देख सकते हैं कि  सीटों के मामले में 4 सीटों का ही फ़ासला रह जाता है, जबकि वोट शेयर का अंतर भी सिमट कर 2.6 फ़ीसदी पर पहुँच जाता है.

पिछले एक दशक में बड़ी ताक़त बनी बीजेपी

लोक सभा चुनाव, 2019 के प्रदर्शन का ही असर था कि जब 2021 में पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव होता है, तो नतीजों से पहले दिल्ली में कई चैनलों में लगातार यह दावा किया जाने लगता है कि प्रदेश की सत्ता ममता बनर्जी से बीजेपी छीन लेगी. हालाँकि ममता बनर्जी इन अनुमानों और अटकलों पर पानी फेर देती हैं. इस चुनाव में टीएमसी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 48 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ 215 सीटों पर जीत दर्ज कर लेती है.

बीजेपी इस चुनाव में ममता बनर्जी की सत्ता को डिगा तो नहीं पाती है, लेकिन अपने प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार ज़रूर कर लेती है. 74 सीटों का इज़ाफ़ा करते हुए बीजेपी 77 सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब हो जाती है. बीजेपी का वोट शेयर भी क़रीब 38 फ़ीसदी तक पहुँच जाता है. बीजेपी के वोट शेयर में यह तक़रीबन 28 फ़ीसदी का उछाल था.

पश्चिम बंगाल में बीजेपी बन सकती है विकल्प

पिछले एक दशक में पश्चिम बंगाल में बीजेपी का जनाधार तेज़ी से बढ़ा है. टीएमसी के जनाधार में कमी नहीं आयी है. ममता बनर्जी की पार्टी भी जनाधार के मामले में लगातार मज़बूत ही हुई है. इसका साफ मतलब है कि बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में  विपक्ष के पूरे स्पेस को क़ब्ज़ा कर लिया है. ममता बनर्जी के लिए यह सबसे बड़ा ख़तरा है. आगामी लोक सभा चुनाव में बीजेपी अपने लक्ष्य 35 सीट के क़रीब न पहुंच जाए, इसके लिए ज़रूरी है कि गठबंधन की मजबूरी के नाम पर कोई ऐसा क़दम न उठा लें, जिससे बीजेपी को टीएमसी विरोधी भावनाओं को बढ़ाने का मौक़ा मिल जाए. ममता बनर्जी इस पहलू को भाँपते हुए ही सीपीआई (एम) से दूरी बनाने को लेकर प्रदेश की जनता को संदेश दे रही है.

ममता बीजेपी को नहीं देना चाहती हैं कोई मुद्दा

अगर ममता बनर्जी ने गठबंधन के नाम पर सीपीआई (एम) से हाथ मिला लिया, तो बीजेपी को पश्चिम बंगाल में टीएमसी के ख़िलाफ़ माहौल बनाने के लिहाज़ से एक बड़ा मुद्दा मिल जायेगा. पश्चिम बंगाल में भी उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तरह ही हिन्दू-मुस्लिम के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण हो, बीजेपी के स्थानीय नेताओं से लेकर शीर्ष नेतृत्व की ओर से ऐसी कोशिश पिछले कुछ वर्षों से जारी है. हालाँकि जिस तरह से बीजेपी को मुद्दे का लाभ हिंदी पट्टी के राज्यों में मिलता आया है, पश्चिम बंगाल में फ़िलहाल वैसा असर नहीं दिखता है.

प्रदेश का सियासी समीकरण टीएमसी के पक्ष में

पश्चिम बंगाल में अगर कांग्रेस और सीपीआई (एम) के साथ मिलकर ममता बनर्जी लड़ती हैं, तो इससे बीजेपी की परेशानी बढ़ेगी, इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है. ऐसा होने से इस तरह की संभावना भी बन सकती है कि आगामी लोक सभा चुनाव में बीजेपी पश्चिम बंगाल में 5 से 10 सीटों पर ही सिमट जाए या फिर उससे भी कम सीटें आए.  इसके लिए कांग्रेस को क़ुर्बानी देनी होगी.

फ़िलहाल जो स्थिति है, उसमें पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी जितनी ज़ियादा से ज़ियादा सीटों पर चुनाव लड़ेगी, बीजेपी के हारने की संभावना अधिक होगी. इसके विपरीत गठबंधन के नाम पर कांग्रेस जितनी अधिक सीटों की मांग करेगी, बीजेपी के लिए यह उतना ही लाभकारी होगा. पश्चिम बंगाल की वास्तविकता है कि टीएमसी उम्मीदवार के जीतने की संभावना बहुत प्रबल है, वहीं कांग्रेस की स्थिति को देखते हुए उसके उम्मीदवार के जीतने की संभावना बेहद कम है. ममता बनर्जी इस पहलू को ध्यान में रखकर ही चाहती हैं कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस बेहद कम सीटों पर चुनाव लड़े.

प्रदेश में कांग्रेस के लिए बेहद मुश्किल समय

हालाँकि प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता अधीर रंजन चौधरी के बयानों से ऐसा लगता है कि वे ममता बनर्जी के दो या तीन सीट के फ़ार्मूले से सहमत नहीं होने वाले हैं. अगर कांग्रेस पश्चिम बंगाल में अधिक सीटों की माँग पर अड़ी रहती है, तो यह सीधे-सीधे बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद होगा, न कि कांग्रेस या विपक्षी गठबंधन के लिए. पश्चिम बंगाल में फ़िलहाल कांग्रेस की जो स्थिति है, उसके तहत कहा जा सकता है कि ऐसी एक भी सीट नहीं है, जहाँ कांग्रेस के अकेले दम पर जीतने की गारंटी हो.

गठबंधन के तहत कांग्रेस को कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए मिल भी जाती है, तो इसकी भी गारंटी नहीं है कि उन सीटों पर टीएमसी के समर्थकों का वोट कांग्रेस उम्मीदवार को मिल सके. पश्चिम बंगाल में फ़िलहाल कांग्रेस की स्थिति इतनी ही दयनीय है. वास्तविकता तो यह है कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का जनाधार भी सीपीआई (एम) की तरह ही सिकुड़कर विलुप्त होने की ओर है.

जिस तरह का माहौल पश्चिम बंगाल में पिछले एक दशक में बना है, उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले समय में कई सालों तक पश्चिम बंगाल की राजनीति में चुनावी ज़ोर आज़माइश के केंद्र में टीएमसी और बीजेपी ही रहने वाली है. इसमें दूर-दूर तक सीपीआई (एम) और कांग्रेस के लिए कोई जगह नहीं दिख रही है.

ममता बनर्जी की रणनीति का दूरगामी असर

कुल मिलाकर ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में न तो सीपीआई (एम) को थोड़ा-सा भी उभार का अवसर देना चाहती हैं और न ही गठबंधन के नाम पर ऐसी स्थिति बनने देना चाहती हैं, जिससे प्रदेश में बीजेपी को 2019 से ज़ियादा सीटों पर जीत मिल सके. ममता बनर्जी जिस तरह की रणनीति पर आगे बढ़ रही हैं, उनका एकमात्र मकसद है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी उतनी ताक़तवर न हो जाए, जिससे भविष्य में टीएमसी के हाथ से सत्ता ही निकल जाए. इस तरह से ममता बनर्जी की नज़र सिर्फ़ लोक सभा चुनाव, 2024 पर नहीं है. ममता बनर्जी की रणनीति से साफ झलकता है कि वो कोई भी क़दम लोक सभा चुनाव के साथ ही 2026 में होने वाले विधान सभा चुनाव को ध्यान में रखकर ही उठाएंगी. उनका ज़ोर है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी आगे चलकर टीएमसी का विकल्प न बन जाए और इसके लिए ही सीपीआई (एम) से दूरी भी उसी रणनीति का हिस्सा है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]   

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