एक्सप्लोरर

किसानों का यह आंदोलन इंकलाब है, साहब!

हालिया कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं. ये किसान कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं.

बीते साल करीब यही समय था जब शाहीन बाग की दादियां सरकार के विरुद्ध अहिंसक आंदोलन में डटी हुई थीं. कुछ बरस पहले भारत के मध्यम वर्ग ने मोदी सरकार को चुना था और वह खामोशी से सब कुछ देख रहा था. कई महीनों तक चले इस अनुशासित विरोध आंदोलन पर पूरी दुनिया की नजर थी. लेकिन फिर कोविड की महामारी आई और इन दादियों को उनके घर भेजने का सरकार को अच्छा बहाना मिल गया. अब किसानों के विद्रोह के साथ देश में जंग का एक नया मोर्चा खुल गया है, जिसमें साधारण नागरिक एक कठोर दिल सरकार के विरुद्ध खड़े हैं. यह उनका असंतोष है जो सत्ता के अहंकार को पूरी ताकत से चुनौती दे रहा है. अंग्रेज राजनीतिक और लेखक लॉर्ड ऐक्टन का प्रसिद्ध वचन है कि सत्ता भ्रष्ट बनाती है और बहुमत की सत्ता पूरी तरह से भ्रष्ट कर देती है.

पंजाब और हरियाणा के किसानों की आवाज धीरे-धीरे पूरे देश की आवाज बनती गई और धीरे-धीरे ही सही लोग सरकार विरोधी स्वर मुखर करते हुए सड़कों पर उतर आए. शाहीन बाग के विरोधियों को राष्ट्र-द्रोही करार दिया गया था क्योंकि उसमें अनेक मुस्लिम महिलाएं शामिल थीं. तब ऐसा करना आसान भी था. उस आंदोलन को छात्रों, उदारवादियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और ऐसे लोगों का समर्थन हासिल था, जो इस बात के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ हैं कि यह देश सबका है क्योंकि ऐसे तत्व तेजी से सामने आ रहे थे, जिनका इरादा भारतीय समाज के बंधुत्ववादी ताने-बाने को खत्म करना था. शाहीन बाग में धरना देने वालों के विपरीत किसानों को खारिज करना आसान नहीं है. हालांकि ऐसा नहीं कि भाजपा सरकार ने इसकी कोशिश नहीं की.

चूंकि ज्यादातर प्रदर्शनकारी सिख हैं, इसलिए अपना प्रोपगंडा फैलाने वाले मीडिया संस्थानों और सोशल मीडिया की विशाल ट्रोल आर्मी के माध्यम से लगातार प्रचारित किया गया कि विरोध करने वाले खालिस्तानी हैं. यह पूरे आंदोलन को सांप्रदायिक बनने का भरसक प्रयास था, जबकि यहां सब कुछ धर्मनिरपेक्ष है. भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इसके बाद अलग राग पकड़ा और कहना शुरू किया कि सितंबर में पेश और पारित विधेयक की जानकारियों पर किसानों को भरमाया गया है. विपक्ष जानबूझ कर किसानों को भटका रहा है.

वास्तव में यह बेहद शर्मानक था कि भाजपा ने पूरी तरह औपनिवेशिक सत्ता की तरह व्यवहार करते हुए कोरोना काल के बीच में कृषि जगत से जुड़े तीन ऐसे कानून बनाए, जिनका किसानों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा. यह विरोध प्रदर्शन इसी का नतीजा हैं. विधेयकों को संसद में रखने से पहले किसानों से कोई चर्चा नहीं की गई और आनन-फानन में इन्हें पारित कर दिया गया. सितंबर के अंतिम दिनों में राष्ट्रपति राम नाथ गोविंद ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए. भाजपा ने सदन में अपने विशाल बहुमत के आगे विपक्षी दलों की इस मांग को भी सिरे से खारिज कर दिया कि विस्तृत विचार-विमर्श के लिए बिल को संसदीय समिति के पास भेजा जाए.

सरकार ने भारतीय किसानों की जिंदगी में खलल पैदा करने वाले इन कृषि बिलों को पास कराने में पर्याप्त विचारशून्यता का परिचय दिया. ऐसे दौर में इन्हें संसद में लाया गया जब देश के लोगों से सार्वजनिक स्थलों से दूर रहने को कहा गया था. इस पूरे मामले में विचारों की शक्ति को तौलने और उन्हें तर्कों पर कसने की जहमत नहीं उठाई गई. ऐसा लगता है कि इन बातों से सत्ता में बैठे लोगों का कोई वास्ता नहीं है. लेकिन इसके बावजूद यह बहुत सोचा-समझा कदम था क्योंकि सरकार में बैठे लोगों को लगा था कि पहले ही कोरोना महामारी से अपने-अपने जीवन में उथल-पुथल झेल रहे नागरिक इस तरफ अधिक ध्यान नहीं दे सकेंगे.

इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत का कृषि क्षेत्र गंभीर समस्याओं में जकड़ा हुआ है और उसे सुधारों की सख्त जरूरत है. इसी तरह कोई भी यह मान सकता है कि तीन नए कृषि कानून बाजार केंद्रित अर्थव्यवस्था और बदलाव के लिए जरूरी सुधारों की दिशा में उठाया कदम हैं. लेकिन ये कानून कारपोरेट और कुछ अमीर पूंजी के खिलाड़ी किसानों के लिए ही फायदे का सौदा हैं. बीते सात बरस में मोदी सरकार में कभी संवाद की इच्छा नजर नहीं आई. वह हमेशा इस दिशा में अनिच्छुक दिखी और कहीं न कहीं यह उसकी कमजोरी का संकेत है.

संवाद और मोलभाव हमेशा राजनीति का केंद्रीय तत्व रहा है और लोकतंत्र में खुले दिमाग की जरूरत होती है. मगर सरकार यहां कट्टर तरीके से किसानों पर कृषि क्षेत्र के सुधारों को लादना चाह रही है. इस वक्त बड़ा मुद्दा यह है कि भारतीय कृषि सेक्टर को पुनर्जीवित करने और किसानों में आशा का संचार करने के लिए क्या किया जा सकता है या क्या किया जाना चाहिए. इस पर मैं बाद में विस्तार से लिखूंगा. इस समय जो दांव पर लगा है, वह है अहिंसक ढंग से अपना विरोध जता रही जनता के असहमत होने का अधिकार और असहमति जताने पर उन्हें अपमानित न करने का लोकतांत्रिक मूल्य.

सरकार असंतोष व्यक्त करने के अधिकार को निरस्त करना चाहती है. यह बात गहरी निराशा पैदा करती है कि किसानों को आतंकवादी के रूप में चिह्नित करने के प्रयास किए जाएं. ठीक इसी तरह यह मानना भी अपमानजनक है कि अपने बारे में निर्णय लेने का उनमें विवेक नहीं है, अपने हितों के बारे में उन्हें सही ढंग से नहीं पता या फिर उन्हें अपने बारे में लिए सही-गलत राजनीतिक फैसलों की समझ नहीं है.

दिल्ली की तरफ बढ़ते हजारों-लाखों किसानों की लहर को रोकने लिए सरकार ने तमाम बैरीकेड लगवाए और उन सड़कों को खुदवा दिया, जहां से वे टैक्टर पर सवार होकर आ सकते थे. किसानों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों ने आंसू गैस और वाटर कैनन का भी इस्तेमाल भी किया. ये उस सरकार की छोटी-सी बानगी है जो अपने विरोध को बर्दाश्त नहीं कर पाती है. इस बर्बरता के विरुद्ध किसानों का संयम उन्हें हीरो न भी बनाए तो प्रेरक जरूर बनाता है.

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में देश भर में हुए प्रदर्शन भारत के लोगों में फैल रही जागरूगता की पहचान हैं. खास तौर पर वे लोग जो अधिकारों से वंचित हैं, दबे-कुचले और हाशिये पर हैं, अपना संघर्ष अब सड़क पर ला रहे हैं. पिछले आंदोलनों और वर्तमान आंदोलन में समानता यह है कि इसे भी सरकार ने ‘भटके हुए’ किसानों का प्रदर्शन कहा है, जिसका नेतृत्व भले ही विपक्षी पार्टियां नहीं कर रहीं परंतु उसे भड़का रही हैं. मगर ये आंदोलन उस सरकार के विरुद्ध ऐसे विचारों के साथ उठ खड़े होने की तस्वीर हैं, जो निरंतर अधिकांश भारतीयों के जीवन को खतरे में डालने वाली नीतियों के निर्माण में संलग्न है.

भारत के बारे में नई तस्वीर यह है कि यहां विरोध के स्वर गूंज रहे हैं और इसका शक्ति बिंदु जनता की तरफ झुक रहा है, जो सड़कों पर उतरकर अपनी बात कहने में अब हिचक नहीं रही. नए भारतीय गणराज्य के उदय के लिए आने वाले लंबे समय तक नागरिकों को अपने नव-निर्माण शक्ति-संसाधनों को लगाना होगा. नव-निर्माण के इस आंदोलन की नब्ज का अंदाजा आप एक वीडियो से बेहतर ढंग से लगा सकते हैं, जिसमें युवा सिख ऐक्टर दीप संधू एक वर्दीधारी सुरक्षा अधिकारी को फटकारते हुए कह रहे हैं, ‘आंदोलन से निबटने का यह कोई तरीका नहीं है. यह इंकलाब है, साहब. यह क्रांति है.’

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

जामिया यूनिवर्सिटी के एग्जाम में विवादित सवाल मामले में एक्शन, प्रोफेसर सस्पेंड, जांच शुरू
जामिया यूनिवर्सिटी के एग्जाम में विवादित सवाल मामले में एक्शन, प्रोफेसर सस्पेंड, जांच शुरू
ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, रायपुर एम्स में थे भर्ती, 89 वर्ष की उम्र में ली आखिरी सांस
ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, 89 वर्ष की उम्र में ली आखिरी सांस
पिता धर्मेंद्र के निधन के बाद एयरपोर्ट पर दिखीं ईशा देओल, पैपराजी को जोड़े हाथ, चेहरे पर दिखी उदासी
पिता धर्मेंद्र के निधन के बाद एयरपोर्ट पर दिखीं ईशा देओल, पैपराजी को जोड़े हाथ, चेहरे पर दिखी उदासी
हिमाचल के पूर्व IG जहूर जैदी को राहत, पंजाब-हरियाणा HC ने उम्र कैद की सजा पर लगाई रोक
हिमाचल के पूर्व IG जहूर जैदी को राहत, पंजाब-हरियाणा HC ने उम्र कैद की सजा पर लगाई रोक
ABP Premium

वीडियोज

Bangladesh Violence: बांग्लादेश में हिंदुओं का हमला देश में 'सियासी बदला'? | Mamata Banerjee | TMC
Bangladesh Hindu Protest:  बांग्लादेश के हालात पर Giriraj Singh का बड़ा बयान
Bangladesh Violence: Mamata Banerjee पर Ishika Taneja के आरोपों से तिलमिलाए TMC प्रवक्ता! | Hindu
Bangladesh Hindu Protest: बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा पर संकट, भारत में सियासत तेज
Hindu Protest: Sanjay Sarkar ने कैमरे पर ऐसा क्या दिखाया कि भड़क गए Pradeep Bhandari? | Bangladesh

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
जामिया यूनिवर्सिटी के एग्जाम में विवादित सवाल मामले में एक्शन, प्रोफेसर सस्पेंड, जांच शुरू
जामिया यूनिवर्सिटी के एग्जाम में विवादित सवाल मामले में एक्शन, प्रोफेसर सस्पेंड, जांच शुरू
ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, रायपुर एम्स में थे भर्ती, 89 वर्ष की उम्र में ली आखिरी सांस
ज्ञानपीठ से सम्मानित साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का निधन, 89 वर्ष की उम्र में ली आखिरी सांस
पिता धर्मेंद्र के निधन के बाद एयरपोर्ट पर दिखीं ईशा देओल, पैपराजी को जोड़े हाथ, चेहरे पर दिखी उदासी
पिता धर्मेंद्र के निधन के बाद एयरपोर्ट पर दिखीं ईशा देओल, पैपराजी को जोड़े हाथ, चेहरे पर दिखी उदासी
हिमाचल के पूर्व IG जहूर जैदी को राहत, पंजाब-हरियाणा HC ने उम्र कैद की सजा पर लगाई रोक
हिमाचल के पूर्व IG जहूर जैदी को राहत, पंजाब-हरियाणा HC ने उम्र कैद की सजा पर लगाई रोक
148 साल के टेस्ट इतिहास में ऐसा करने वाले पहले गेंदबाज बने मिचेल स्टार्क, वकार यूनिस का 30 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा
148 साल के टेस्ट इतिहास में ऐसा करने वाले पहले गेंदबाज बने मिचेल स्टार्क, वकार यूनिस का 30 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ा
दीपू हत्याकांड पर बवाल, दिल्ली पुलिस और VHP कार्यकर्ताओं में झड़प, मोहम्मद यूनुस का पुतला फूंका
दीपू हत्याकांड पर बवाल, दिल्ली पुलिस और VHP कार्यकर्ताओं में झड़प, मोहम्मद यूनुस का पुतला फूंका
National Consumer Rights Day: देश में हर कंज्यूमर के पास हैं ये 6 अधिकार, 99 पर्सेंट लोगों को नहीं हैं पता
देश में हर कंज्यूमर के पास हैं ये 6 अधिकार, 99 पर्सेंट लोगों को नहीं हैं पता
Karela Juice For Kidney Health: रोजाना पिएंगे करेले का जूस तो कैसी हो जाएगी किडनी की हालत? जान लें हकीकत
रोजाना पिएंगे करेले का जूस तो कैसी हो जाएगी किडनी की हालत? जान लें हकीकत
Embed widget