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या इलाही ये माजरा क्या है, एक्शन में मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज

पिछले कुछ दिनों में मध्य प्रदेश एकदम गतिमान मोड में है. कहने का मतलब इंगलिश में सेकिंग. पूरी प्रशासनिक मशीनरी हिली हुई है. हर विभाग काम करते हुए दिख रहा है. दिख नहीं रहा तो दिखने की कोशिश कर रहा है. यत्र तत्र सर्वत्र चुस्ती, कसावट, छोडूंगा नहीं, बख्शूंगा नहीं, होने नहीं दूंगा, मैं हूं ना जैसे शब्द ही गूंज रहे हैं. और ये सब हो रहा है प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की अति घनघोर सक्रियता के चलते. 

पिछले एक महीने से आज दिनांक तक उनकी सक्रियता देखते ही बनती है. वो सुबह साढे छह बजे जिलों की समीक्षा बैठकें कर रहे हैं तो दोपहर में मंत्रालय में बैठने की जगह निकल पड़ते हैं जिलों की ओर जहां पर राशन की दुकानों से लेकर, अस्पताल और स्कूल तक जा पहुंचते हैं. सोमवार को शिवराज अपने गृह जिले सीहोर के छीपानेर में राशन की दुकान पर जा पहुंचे कलेक्टर और सांसद के साथ. सहमे से दुकानदार से पूछा ये राशन मिल रहा है या नहीं लोगों को मुझे कैसे पता चलेगा. 

दुकानदार ने कहा मिल रहा है साहब. शिवराज फिर बोले नहीं मुझे कैसे पता चलेगा. इस पर बात अधिकारी ने संभाली और कहा कितना राशन आया कितना बंटा रजिस्टर बताओ. लो कलेक्टर रजिस्टर जांचो. फिर उसके बाद गोदाम में जाकर राशन की बोरियां का माल नापा जाने लगा. सब कुछ संतोषजनक मिला तो फिर अफसरों के साथ पास में करोडों रुपये से बन रही सिंचाई परियोजना और फिर सिहोर हरदा के बीच बन रहे पुल और सड़क को देखा. कमर पर हाथ रख सख्त लहजे में पूछा ये सड़क और पुल कब तक बन जाएगा और फिर पहुंच गये मनपसंद काम करने यानी कि नसरुल्लागंज के सीएम राइज स्कूल में बच्चों के मामा बनकर क्लास में बेंच पर बैठकर छोटे बच्चों से जी भर कर सवाल पूछे हंसी ठिठोली की, साथ में फोटो खिंचवाई और उनको खूब पढ़ने का आशीर्वाद देकर निकले तो आंगनबाड़ी दिखी और वहां के बच्चों के साथ क्रिकेट खेल कर निकल पड़े वापस भोपाल की ओर. मगर भोपाल आकर भी वो ठहरे नहीं एक दो बैठकें अफसरों के साथ की.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को सरकार चलाते-चलाते करीब सोलह साल तो हो ही गए हैं. बीच में पंद्रह महीने का ब्रेक मिला था जब कांग्रेस सरकार आई थी मगर उस दरम्यान भी उनकी सक्रियता में कमी नहीं थी. उनकी राजनीति और काम करने के अंदाज को लंबे समय से देख रहे हम पत्रकार मानते हैं कि उनकी सक्रियता का कोई जवाब नहीं. बेहद मेहनती हैं वो और ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिनको दफतर या मंत्रालय में बैठकर काम करना सुहाता ही नहीं है. वो फील्ड में जाकर निरीक्षण करना और जनता से मंच पर संवाद करना पसंद करते हैं. 

पिछले कुछ दिनों में शुरू हुई शिवराज की ये सक्रियता पिछले सालों में दिखी तेजी से एकदम अलग है. ये उतावलापन ये तल्खी ये सख्ती और रोज दौरा करना और तीन चार अफसरों को एक बार में सजा देना बता रहा है कि शिवराज सिंह चौहान ने आने वाले साल में इन्हीं दिनों होने वाले विधानसभा चुनावों के बेताल को कंधे पर डाल लिया है. वो बेताल उनको प्रदेश में हो रहे भ्रष्टाचार और जनता की परेशानियों की कहानियां सुनाता है उसके बाद वो उन परेशानियां को जांचने निकल पडते हैं. 

बेताल की वो कहानियां नहीं कड़वी सच्चाई होती है जिस पर वो सख्ती बरतते हैं. साथ ही मन ही मन वो अफसोस भी करते होंगे कि मेरे सोलह सालों के शासन काल में भी प्रदेश में वर्क कल्चर विकसित नहीं हो पाया, भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगा पाया और प्रदेश में छोटे बडे़ प्रोजेक्ट के तय समय में पूरा करने की परंपरा नहीं डल पायी. और ऐसे में सिवाय नायक के अनिल कपूर जैसे फैसले सुनाने की हड़बड़ी के अलावा कुछ नहीं हो पा रहा. मंचों पर रॉक स्टार जैसे माइक हाथ में लेकर भाषण देना, मास्टर टैनर बनना और वहीं से फैसले सुनाकर कर्मचारियों को सस्पेंड करने के फरमान निकालना तालियां तो दिलवा देता है मगर क्या वोट भी दिलाएगा ये बड़ा सवाल है.

पिछले चुनाव में शिवराज ने बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले वोट संख्या और वोट प्रतिशत की दौड़ में तो आगे रखा था. मगर सीटें कांग्रेस की 114 के मुकाबले 109 ही दिलवा पाये थे जो बहुमत से दूर थीं. इस अप्रत्याशित हार की वजह ये थी कि शिवराज को तो जनता जिताना चाहती थी मगर उनके विधायकों को सबक सिखाने का मन बना कर बैठी थी. लिहाजा विधायक हारे और शिवराज जीते मगर बहुमत की सरकार नहीं बना पाए. इस बार परेशानी और गहरी है. कांग्रेस को गिराकर सरकार बनाने के गड़बड़ झाले में अब पार्टी के अलावा कांग्रेस के कुनबे से आये विधायकों को जिताने की जिम्मेदारी भी शिवराज के कंधों पर ही आने वाली है.

भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर मानते हैं, कांग्रेस मध्य प्रदेश में बहुत अच्छा ना करने के बाद भी मध्य प्रदेश में मज़बूती से मैदान में बनी हुई है और कठिन चुनौती देती दिख रही है. इसलिये शिवराज फिर सिर्फ़ अपने दम पर क़िला लड़ाने की कोशिश करते दिख रहे हैं.

ऐसा लगता है कि शिवराज को ये इशारा हो गया है आने वाले चुनाव के लिये बीजेपी की कमजोर नाव के खिवैया आप ही हो इसलिये जैसी जमावट प्रशासन से लेकर राजनीति के स्तर पर करनी हो कर लो मगर चुनाव के बाद सरकार बनाकर दो. इसलिये अब शिवराज सिंह मोहि कहां विश्राम की तर्ज पर रोज निकल पड़ते हैं बीजेपी के तकरीबन अठारह साल पुराने बेसुध शासन प्रशासन की पड़ताल करने अब आप ये बूझते रहिये और सोचते रहिये या इलाही ये मजारा क्या है, शिवराज चौहान को हुआ क्या है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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