एक्सप्लोरर

छत्तीसगढ़ में समीकरणों को साधने में जुटी बीजेपी, भूपेश बघेल-टीएस सिंहदेव के बीच सुलह से मुश्किलें बढ़ी

इस साल जिन 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है, उनमें से एक छत्तीसगढ़ है. इसके अलावा राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और मिजोरम में भी इसी साल चुनाव होना है. ऐसे तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना के मुकाबले सीटों के लिहाज से छत्तीसगढ़ छोटा प्रदेश है, लेकिन राजनीतिक तौर से वहां की सत्ता का महत्व कहीं से भी कम नहीं है.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अब चंद महीने ही बाकी रह गए हैं. चुनाव तैयारियों को लेकर केंद्रीय निर्वाचन आयोग की सक्रियता छत्तीसगढ़ में बढ़ने लगी है. मतदाता सूची के प्रकाशन और उसमें नाम जोड़ने-काटने से संबंधित काम को पूरा करने के लिए आयोग की टीम मुस्तैदी से जुटी है. अक्टूबर के पहले हफ्ते में चुनाव आयोग छत्तीसगढ़ के लिए मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन कर देगा.

छत्तीसगढ़ में फिलहाल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस के सामने यहां सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है. दूसरी तरफ बीजेपी के लिए छत्तीसगढ़ की सत्ता को फिर से हासिल करना प्रतिष्ठा का विषय बन गया है. इसके साथ ही कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे अजीत जोगी की बनाई गई पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (JCC) ने भी यहां की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. जेसीसी, कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए मुश्किलें बढ़ाने का दावा कर रही है. इस बार आम आदमी पार्टी भी छत्तीसगढ़ के सियासी दंगल में कूदने को पूरी तरह से तैयार नजर आ रही है. हालांकि मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही रहने वाला है.

भूपेश बघेल-टीएस सिंहदेव के बीच सुलह के मायने

एक महीने पहले तक छत्तीसगढ़ में बीजेपी को बढ़त दिख रही थी क्योंकि कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान डर राज्य में पार्टी के दो दिग्गज नेताओं सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच टकराव को लेकर था. ये बिन्दु विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता था. पिछले कई महीनों से टीएस सिंह देव की भूपेश बघेल और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से नाराजगी को लेकर अटकलें लगाई जा रही थी. इतना तक कहा जा रहा था कि अगर चुनाव से पहले पार्टी आलाकमान की ओर से नाराजगी दूर नहीं की गई तो टीएस सिंहदेव विधानसभा चुनाव से पहले कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं.

टीएस सिंहदेव के उपमुख्यमंत्री बनने से बदले हालात

हालांकि जून के आखिर में कांग्रेस ने टीएस सिंहदेव को छत्तीसगढ़ का उपमुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया. इसके साथ ही टीएस सिंहदेव को लेकर जो भी  कयास लगाए जा रहे थे, उन सब पर पूर्ण विराम लग गया. अब तो टीएस सिंहदेव की ओर से तो ऐसा बयान भी आ गया है, जिससे लगने लगा है कि उन्होंने मुख्यमंत्री पद को लेकर अपनी दावेदारी तक छोड़ दी है. अब टीएस सिंहदेव  प्रदेश सरकार की जमकर तारीफ तो कर ही रहे हैं, इसके साथ ही उन्होंने हाल ही में कहा है कि 2023 का विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अध्यक्षता वाले सामूहिक नेतृत्व के जरिए लड़ा जाएगा.

कांग्रेस को अंदरूनी कलह से नुकसान का डर खत्म

टीएस सिंह देव ने कांग्रेस को प्रदेश में 90 में से 60 से 75 सीटें मिलने का भी दावा किया है. उन्होंने चुनाव बाद मुख्यमंत्री की रेस में भूपेश बघेल के पहली कतार में होने की बात कहकर एक तरह से प्रदेश के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को संदेश देने की कोशिश की है कि वे अब पूरी तरह से भूपेश बघेल और पार्टी के साथ हैं.

दरअसल 2018 में जब कांग्रेस को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल हुई थी, तो उस वक्त मुख्यमंत्री के रेस में टीएस सिंहदेव भी थे. हालांकि बाद में भूपेश बघेल के नाम पर पार्टी आलाकमान ने सहमति दी. उसके बाद कहा जा रहा था कि भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच ढाई-ढाई साल के फॉर्मूले के तहत सहमति बनी है.

भूपेश बघेल- टीएस सिंहदेव के बीच रस्साकशी

ढाई साल की इस अवधि को पूरी होने के बाद टीएस सिंहदेव और उनके समर्थकों ने इस फॉर्मूले के तहत आगे बढ़ने के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर दबाव भी बनाया. खुद टीएस सिंहदेव 2021 में कई बार दिल्ली भी आए. हालांकि उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी दिल्ली से भूपेश बघेल की जगह पर किसी और को लाने का कोई फरमान जारी नहीं हुआ. उसके बाद से टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल के बीच की रस्साकशी धीरे-धीरे बढ़ती गई. इस कारण से जून के मध्य तक सियासी गलियारों में इसकी खूब चर्चा हो रही थी कि भूपेश बघेल की मजबूत छवि के बावजूद इस बार कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ की सत्ता को बचाना आसान नहीं होगा. हालांकि जून के अंत होने से पहले ही पार्टी ने टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाकर सियासी गलियारों की हर चर्चा को बेमानी साबित कर दिया.

कांग्रेस में सुलह से बीजेपी की बढ़ी परेशानी

इसे भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच सुलह के तौर पर देखा जा रहा है और ये बीजेपी की राह में कांटों के बढ़ने जैसा है. छत्तीसगढ़ बीजेपी का गढ़ रहा है. नया राज्य बनने के बाद से ही बीजेपी वहां की सत्ता पर ज्यादा वक्त तक काबिज रही है. विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा सीटों पर भी छत्तीसगढ़ के लोग बीजेपी पर जमकर प्यार लुटाते रहे हैं.

लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की कड़ी मेहनत से बीजेपी प्रदेश की सत्ता से तीन कार्यकाल यानी 15 सालों के बाद बाहर हो गई. बतौर बीजेपी नेता रमन सिंह 7 दिसंबर 2003 से लेकर 12 दिसंबर तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे.

पिछले चुनाव से पहले लगातार 15 साल बीजेपी की सत्ता

उससे पहले मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ एक नवंबर 2000 को अलग राज्य बना था और तब कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाने वाले अजीत जोगी प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि अलग राज्य बनने के बाद यहां पहली बार विधानसभा चुनाव दिसंबर 2003 में होता है और उसमें रमन सिंह की अगुवाई में बीजेपी आराम से बहुमत हासिल करने में कामयाब हो जाती है. 2008 के चुनाव में भी बीजेपी को सत्ता बरकरार रखने में कोई ख़ास परेशानी नहीं होती है. 2013 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता पाने में कामयाब हो जाती है.

2018 में कांग्रेस को मिली प्रचंड जीत

बीजेपी की जीत का सिलसिला 2018 के विधानसभा चुनाव में टूटता है. 15 साल के एंटी इनकंबेंसी और भूपेश बघेल-टीएस सिंहदेव की जुगलबंदी से कांग्रेस ऐतिहासिक प्रदर्शन करती है. राज्य की 90 में से 68 सीटों पर कांग्रेस जीत जाती है. बीजेपी को 34 सीटों का नुकसान उठाना पड़ता है और वो महज़ 15 सीटों पर सिमट जाती है. वहीं पहली बार सियासी दंगल में उतरी अजीत जोगी की पार्टी जेसीसी को 5 सीटों पर जीत मिलती है.

भूपेश बघेल-टीएस सिंहदेव की जोड़ी का कमाल

भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ने मिलकर ये करिश्मा तब कर दिखाया जब इसके ठीक साढे़ पांच साल पहले हुए नक्सली हमले में कांग्रेस प्रदेश के कई शीर्ष नेताओं को खो चुकी थी.

25 मई 2013 को सुकमा के झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में उस वक्त के राज्य के कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं की हत्या कर दी गई थी. इनमें प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल समेत 30 से ज्यादा लोग शामिल थे. उस वक्त ऐसा लगा, जैसे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के नेताओं की पूरी पीढ़ी ही खत्म हो गई. इस बीच कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे अजीत जोगी ने पार्टी से निकाले जाने के बाद जून 2016 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नाम से नई पार्टी का गठन कर लिया था. दिसंबर 2003 से लगातार मुख्यमंत्री रहने के कारण रमन सिंह काफी ताकतवर नेता माने जा रहे थे.

ऐसे मुश्किल वक्त में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की जोड़ी ने कड़ी मेहनत कर 5 साल के भीतर ही कांग्रेस को छत्तीसगढ़ की सत्ता पर न सिर्फ़ बैठा दिया, बल्कि वो कारनामा भी कर दिखाया जो बीजेपी यहां कभी नहीं कर पाई थी. बीजेपी को 2013 में 49 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी को 2008 और 2003 के विधानसभा चुनावों में 50-50 सीटों पर जीत मिली थी. यानी यहां बीजेपी कभी भी दो तिहाई सीटों पर जीत हासिल नहीं कर पाई थी. वहीं कांग्रेस ने 2018 में यहां की तीन चौथाई सीटों पर जीत दर्ज कर ली.

भूपेश बघेल जनता के बीच काफी लोकप्रिय

ऐसा नहीं है कि जब से भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की सत्ता संभाली है, वे कभी भी कमजोर पड़े हैं. उनकी कमजोर कड़ी बस टीएस सिंहदेव ही थे, जिसे आगामी चुनाव से चंद महीने पहले ही साधने में भूपेश बघेल कामयाब होते दिख रहे हैं. दरअसल टीएस सिंहदेव के नरम रुख के पीछे कुछ कारण हैं. पिछले साढ़े 4 साल में भूपेश बघेल की लोकप्रियता प्रदेश के लोगों के बीच तेजी से बढ़ी है. पहले सियासी गलियारों में इस तरह का दावा किया जा रहा था टीएस सिंहदेव के पास 25 से 30 विधायकों का समर्थन है, लेकिन जैसे-जैसे चुनाव की तारीखें नजदीक आते गई, भूपेश बघेल प्रदेश के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के बड़े नेता के तौर पर उभरे हैं. 

टीएस सिंहदेव की पकड़ वाले इलाकों पर फोकस

भूपेश बघेल ने इसके साथ ही उन इलाकों पर भी फोकस किया जहां टीएस सिंह देव की पकड़ मजबूत मानी जाती थी. सरगुजा शाही परिवार के वंशज टीएस सिंहदेव अंबिकापुर से विधायक हैं. उनकी पकड़ प्रदेश के उत्तरी हिस्से सरगुजा संभाग में काफी मजबूत मानी जाती है. सरगुजा संभाग में पहले 5 जिला हुआ करता था. अब इसमें 6 जिले हो गए हैं. इस संभाग में 174 सीटें हैं, जहां टीएस सिंहदेव की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है. इन सभी 14 सीटों पर 2018 में कांग्रेस को जीत मिली थी.

मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिला बनाने से फायदा

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पिछले साल सरगुजा संभाग में मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर के नाम से एक नया जिला बनाने का फैसला किया. इस जिले के लोगों की लंबे वक्त से ये मांग थी. इन इलाकों के लोग संयुक्त मध्य प्रदेश के वक्त जब दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे, तभी से जिला बनाने की मांग कर रहे थे. इस मांग को पूरा कर भूपेश बघेल ने इन इलाकों के लोगों की चिरलंबित मांग को तो पूरा कर किया है. साथ ही सरगुजा संभाग में भूपेश बघेल की पकड़ भी मजबूत हुई. इसे एक तरह से टीएस सिंहदेव के जनाधार वाले इलाके में भूपेश बघेल की सेंधमारी के तौर पर भी देख सकते हैं. इसके साथ ही मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, सारंगढ़-बिलाईगढ़, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई और सक्ती को नया जिला बनाकर भी भूपेश बघेल ने इन इलाकों में टीएस सिंहदेव की जगह पर खुद को लोकप्जरिय बनाने की कोशिश की.

भूपेश बघेल की छवि भी जनता के बीच से पैदा हुआ नेता की है और ये भी एक बड़ा फैक्टर है, जिसकी वजह से टीएस सिंह देव की दावेदारी पहले भी कमजोर हुई थी और अब भी सीएम रेस में उनके खिलाफ ही जाता है.

भूपेश बघेल ने संगठन पर पकड़ को किया मजबूत

इसके साथ ही भूपेश बघेल की लोकप्रियता को हाल फिलहाल में और बढ़ाने में युवाओं के लिए अप्रैल में शुरू की गई बेरोजगारी भत्ता योजना का भी योगदान है. साथ ही भूपेश बघेल ने शीर्ष नेतृत्व के साथ मिलकर सत्ता और संगठन में बदलाव का भी फैसला किया. टीएस सिंहदेव को उपमुख्यमंत्री बनाने का फैसला, मोहन मरकाम की जगह दीपक बैज को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला, मोहन मरकाम को राज्य सरकार में जगह जैसे कुछ फैसलों से भूपेश बघेल ने प्रदेश में हर तरह के चुनावी समीकरणों को साधने की कोशिश की है. चाहे जातीय समीकरण हो या फिर संगठन में पकड़ से जुड़ा समीकरण हो. इससे आगामी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की दावेदारी मजबूत हुई है. 

बीजेपी के पास भूपेश बघेल जैसा चेहरा नहीं

बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती ये भी रहने वाली है कि भूपेश बघेल के मुकाबले वो किसे चेहरे बनाएगी क्योंकि प्रदेश के लोगों के बीच भूपेश बघेल जैसी लोकप्रियता फिलहाल बीजेपी के किसी नेता की नहीं है. छत्तीसगढ़ में 2018 में हार के बाद बीजेपी अभी तक 4 प्रदेश अध्यक्ष, एक नेता प्रतिपक्ष और तीन प्रदेश प्रभारी बदल चुकी है. 2018 के बाद ओम माथुर वहां बीजेपी के प्रभारी बनने वाले तीसरे शख्स हैं. बीजेपी के लिए चिंता की बात ये है कि विधानसभा उपचुनाव, नगरीय निकाय चुनाव, पंचायत चुनाव सभी में छत्तीसगढ़ के लोगों ने बीजेपी को नकारते हुए कांग्रेस पर ही भरोसा जताया था. आगामी चुनाव को देखते हुए ही अरुण साव को बीजेपी ने पिछले साल नवंबर में प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. . ये सच्चाई है कि रमन सिंह को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी के पास फिलहाल भूपेश बघेल के कद का कोई नेता नहीं दिख रहा है. हालांकि अब रमन सिंह का भी वो प्रभाव नहीं रहा है.

अमित शाह बार-बार जा रहे हैं छत्तीसगढ़

अब भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बीच सुलह से कांग्रेस की अंदरूनी कलह का लाभ भी बीजेपी को नहीं मिलेगा. ऐसा नहीं है कि बीजेपी के लिए उम्मीद नहीं बची है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की नजर में छत्तीसगढ़ का चुनाव प्राथमिकता में है. यही कारण है कि पार्टी के वरिष्ट नेता और चुनावी रणनीति में माहिर माने जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पिछले एक महीने में 3 बार छत्तीसगढ़ का दौरा कर चुके हैं.

अमित शाह खुद प्रदेश की उन सीटों पर नजर रख रहे हैं, जहां बीजेपी कमजोर नज़र आ रही है. ऐसा कहा भी जा रहा है कि भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव के बाद अमित शाह ने पार्टी प्रदेश संगठन को नए सिरे से रणनीति बनाने का निर्देश दिया है. इस बार बीजेपी प्रदेश में धर्मांतरण का मुद्दा, आदिवासियों के विस्थापन, रेत खनन में करप्शन और केंद्र से भेजे गए राशियों का पर्याप्त तरीके से प्रयोग करने में नाकामी जैसे मसलों को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है.

बीजेपी का जातीय समीकरणों को साधने पर ज़ोर

जातीय समीकरणों को साधने पर भी बीजेपी ज़ोर दे रही है. छत्तीसगढ़ की आबादी में करीब 32 फीसदी अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय के लोग हैं. विधानसभा में 90 में से 29 सीटें एसटी के लिए और 10 सीटें एससी के लिए आरक्षित है. ये सीटें तो महत्वपूर्ण हैं ही, इसके अलावा यहां की सत्ता की चाबी के लिहाज से ओबीसी समुदाय भी काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.

ओबीसी की आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है. इस वर्ग के वोट को साधने के लिए ही बीजेपी ने जनजाति नेता विष्णु देव साय की जगह बिलासपुर से लोक सभा सांसद अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. माना जाता है कि ओबीसी पर मजबूत पकड़ की वजह से ही 2018 के चुनाव में कांग्रेस को भारी जीत मिली थी.  अरुण साव साहू या तेली समुदाय से आते हैं. सूबे की आबादी में ये समुदाय करीब 15 फीसदी है. सीएम भूपेश बघेल ओबीसी के कुर्मी समुदाय से आते हैं. यहां की आबादी में कुर्मी समुदाय 7 से 8 फीसदी है. साहू समुदाय के लोग पूरे छत्तीसगढ़ में फैले हुए हैं, जबकि कुर्मी समुदाय के लोगों का प्रभाव ज्यादातर मध्य छत्तीसगढ़ और रायपुर के आस-पास के गांवों में है. 

2024 के नजरिए से भी अहम है छत्तीसगढ़

बीजेपी के लिए आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी छत्तीसगढ़ काफी मायने रखता है. यहां कुल 11 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से 4 एसटी और एक सीट एससी के लिए आरक्षित है. 2018 में विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद 4 महीने बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी पर छत्तीसगढ़ की जनता ने भरोसा जताया.  2019 में बीजेपी को इनमें से 9 सीटों पर जीत मिली और 2 सीट कांग्रेस के खाते में गई. वहीं 2009 और 2014 में बीजेपी को छत्तीसगढ़ की 11 में से 10-10 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी और कांग्रेस को दोनों बार ही सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी. अलग राज्य बनने के बाद जब पहली बार 2004 में छत्तीसगढ़ के लोगों ने लोकसभा के लिए वोट दिया था तो उस वक्त भी बीजेपी 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी.

इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के लिहाज से राज्य के अस्तित्व के साथ ही बीजेपी का एकछत्र राज रहा है. अब कांग्रेस इस साल विधानसभा चुनाव में जीत हासिल कर दोबारा सत्ता में आकर 2024 में बीजेपी पर बढ़त बनाने की कोशिश करेगी.

जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ से किसे पहुंचेगा नुकसान?

कांग्रेस और बीजेपी के अलावा जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ या जोगी कांग्रेस भी हर सीट पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान कर चुकी है. ऐसे तो पिछली बार इस पार्टी को 5 सीटें मिल गई थी. हालांकि उस वक्त अजीत जोगी जीवित थे. अब उनके निधन के बाद पहली बार जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी की अगुवाई में चुनाव लड़ेगी.

पिछली बार जेसीसी का मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन था और जेसीसी को 5 सीटों के साथ ही 7.6% वोट भी हासिल हो गए थे. कांग्रेस से अलग होकर बनी इस पार्टी ने पिछली बार बीजेपी को नुकसान पहुंचाया था. हालांकि इस बार बिना अजीत जोगी के पार्टी का वैसा ही प्रदर्शन रहेगा ये कहना अभी सही नहीं होगा. इन साढ़े चार सालों में अब जेसीसी के पास एकमात्र विधायक रेणु जोगी बची हैं. विधानसभा के मानसून सत्र के आखिरी दिन जेसीसी के शीर्ष नेता और बलौदाबाजार से विधायक प्रमोद शर्मा ने भी इस्तीफा देकर पार्टी से नाता तोड़ लेने का फैसला किया.

मायावती की पार्टी के रुख से किसको फायदा?

पिछली बार बीएसपी ने जेसीसी का साथ दिया था. बीएसपी का छत्तीसगढ़ के कुछ इलाकों में अच्छा खासा प्रभाव रहा है. पिछली बार बीएसपी यहां 3.9% वोट पाकर दो सीटें जीतने में कामयाब रही थी. उससे पहले 2013 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी एक सीट पर जीत के साथ 4.3% और 2008 में दो सीट पर जीत के साथ 6.11% वोट हासिल करने में सफल रही थी. 2003 में भी बीएसपी को दो सीटों पर जीत मिली थी और पार्टी का वोट शेयर 4.45% रहा था. ये आंकड़े बताते हैं कि मायावती की पार्टी को छत्तीसगढ़ में 4 से 6 फीसदी के बीच वोट मिलता रहा है.

हालांकि इस बार बीएसपी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ गठजोड़ करेगी, इसकी संभावना कम ही है क्योंकि पार्टी प्रमुख मायावती ने कुछ दिनों पहले ही ये ऐलान किया था कि बीएसपी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अकेले चुनाव लड़ेगी. अजीत जोगी और मायावती की पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ती है तो ये बीजेपी के लिए कुछ सीटों पर फायदेमंद साबित हो सकता है और इससे कांग्रेस की मुश्किलें कुछ सीटों पर बढ़ जाएगी.

आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर भी होगी नज़र

इस बार छत्तीसगढ़ के चुनावी समर में आम आदमी पार्टी भी उतर रही है. भले ही लोकसभा चुनाव 2024 के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार हो गए हैं, लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस का साथ देने के मूड में नहीं है. ऐसे तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी का प्रदेश में कोई बड़ा जनाधार नहीं बन पाया है, लेकिन पिछले 4 साल से पार्टी प्रदेश की आदिवासी इलाकों में जमकर मेहनत कर रही है. पार्टी हर गांव में ग्राम समिति बनाने का काम कर रही है. आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी  का कहना है कि अब तक सूबे में पार्टी की 4 हजार से ज्यादा ग्राम और वार्ड समितियां बन चुकी हैं.

अगर गुजरात की तरह यहां भी आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन रहा तो इससे बीजेपी के साथ ही कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है. कुछ सीटों पर भी आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी वोट काटने में सफल रहे तो, यहां काफी सीटों पर जीत का अंतर बेहद कम रहता है, ऐसे में समीकरण बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए उन सीटों पर भारी पड़ सकता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

Putin India Visit: 'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की पहली तस्वीर
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की तस्वीरें
IndiGo Flight Cancel: संकट में फंसी इंडिगो को DGCA ने दी बड़ी छूट, नाइट-ड्यूटी नियम में ढील, शर्तें लागू
संकट में फंसी इंडिगो को DGCA ने दी बड़ी छूट, नाइट-ड्यूटी नियम में ढील, शर्तें लागू
UP AQI: नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
ABP Premium

वीडियोज

IPO Alert: Luxury Time IPO में Invest करने से पहले जानें GMP, Price Band | Paisa Live
New Labour Code 2024: Take-Home Salary क्यों कम होगी ? Full Salary Breakdown Explained | Paisa Live
IPO Alert: Western Overseas Study Abroad Ltd. IPO में Invest करने से पहले जानें GMP, Price Band|
GST का बड़ा खतरा: Property खरीदने में एक छोटी गलती और आपकी Property हो सकती है Attach| Paisa Live
India-Russia Mega Defense Deal! India को मिलेगी Russia की Nuclear-Powered Submarine

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
Putin India Visit: 'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
'हम सीटियां मारते हैं तो भी पुतिन रुकते नहीं और मोदी के साथ...', रूसी राष्ट्रपति को भारत में देखकर गुस्से से लाल हुए PAK एक्सपर्ट
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की पहली तस्वीर
कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय और शिप्रा ने लिए सात फेरे, देखें शादी की तस्वीरें
IndiGo Flight Cancel: संकट में फंसी इंडिगो को DGCA ने दी बड़ी छूट, नाइट-ड्यूटी नियम में ढील, शर्तें लागू
संकट में फंसी इंडिगो को DGCA ने दी बड़ी छूट, नाइट-ड्यूटी नियम में ढील, शर्तें लागू
UP AQI: नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
Year Ender 2025: साल 2025 में साउथ की फिल्मों ने चटाई बॉलीवुड को धूल,  हिंदी की दो फिल्में ही बचा पाईं लाज
साल 2025 में साउथ की फिल्मों ने चटाई बॉलीवुड को धूल, हिंदी की दो फिल्में ही बचा पाईं लाज
क्या इस भारतीय क्रिकेटर को मिला DSP सिराज से ऊंचा पोस्ट? बंगाल में ड्यूटी की जॉइन
क्या इस भारतीय क्रिकेटर को मिला DSP सिराज से ऊंचा पोस्ट? बंगाल में ड्यूटी की जॉइन
लगातार कमजोर हो रहा रुपया! विदेश में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की जेब पर बड़ा बोझ
लगातार कमजोर हो रहा रुपया! विदेश में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्रों की जेब पर बड़ा बोझ
Indigo Flight: इंडिगो की फ्लाइट ने बिना दूल्हा-दुल्हन कराया रिसेप्शन, भुवनेश्वर से ऑनलाइन शामिल हुआ न्यूली वेड कपल
इंडिगो की फ्लाइट ने बिना दूल्हा-दुल्हन कराया रिसेप्शन, भुवनेश्वर से ऑनलाइन शामिल हुआ न्यूली वेड कपल
Embed widget