एक्सप्लोरर

भारत में आपातकाल, नकली और असली

यह सवाल है कि अगर सरकार को औपचारिक रूप से आपातकाल की घोषणा करनी पड़े, तो वह कौन सी अन्य शक्तियां अपने हाथ में ले सकती है.

पैंतालीस साल पहले 25-26 जून की रात को प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के इशारे पर काम करते हुए राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारत में आपातकाल लागू कर दिया था और हर प्रकार की नागरिक स्वतंत्रता निलंबित कर दी थी. ऑल इंडिया रेडियो के स्टूडियो से 26 तारीख की सुबह देश को संबोधित करते हुए श्रीमती गांधी ने कहा था कि भारत के आम आदमी और महिलाओं के फायदे के लिए जब से उन्होंने कुछ खास प्रगतिशील कदम उठाना शुरू किए थे, तभी से उनके खिलाफ "गहरी और व्यापक साजिश रची जा रही थी, जिससे मजबूर होकर उन्हें आपातकाल लागू करना पड़ा.“उन्होंने चेतावनी दी थी कि "विघटनकारी ताकतों" और "सांप्रदायिक जुनून" ने भारत को तबाह करने का खतरा पैदा कर दिया था और देश की एकता बनाए रखने के अभीष्ट के चलते वह ऐसा कदम उठाने को बाध्य हुईं. उन्होंने अपने हमवतन भारतीयों को मशविरा दिया था- "इसमें घबराने की कोई बात नहीं है", और शायद उन्हें आश्वस्त करने के लिए ही श्रीमती गांधी ने कहा था कि भारत के संविधान को बरकरार रखने के लिए जो कठोर कदम उठाया गया, वह उनके निजी हितों को साधने के लिए नहीं था. उन्होंने जोर देकर कहा था कि "यह कोई व्यक्तिगत मामला नहीं है”और यह भी कि “मेरा प्रधानमंत्री बने रहना या न रहना मायने नहीं रखता."

किसी सत्ता के लोकतांत्रिक नेता की तुलना में कोई निरंकुश शासक कहीं अधिक यह मान कर चलता है कि वह (या इस मामले में श्रीमती गांधी) केवल लोगों के हित में काम कर रहा है. इसके दो सप्ताह पहले ही श्रीमती गांधी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी राज नारायण द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश ने निर्णय दिया था, जिससे श्रीमती गांधी की कुर्सी चली गई थी. न्यायमूर्ति जगमोहनलाल सिन्हा ने उनके लोकसभा चुनाव को इस आधार पर ''अमान्य'' घोषित कर दिया था कि वह भ्रष्ट चुनावी आचरण में लिप्त थीं. श्रीमती गांधी को दो आरोपों के लिए दोषी ठहराया गया: कांग्रेस पार्टी की मुट्ठी में बंद उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार ने जाहिर तौर पर एक ऐसे मंच और माहौल का निर्माण किया, जिसमें वह "एक वर्चस्व वाली स्थिति" से चुनावी सभाओं को संबोधित कर सकती थीं; और दूसरी बात यह थी कि उनका चुनावी एजेंट सरकारी सेवा में था इसलिए किसी भी राजनीतिक गतिविधि में भाग नहीं ले सकता था. उन दिनों श्रीमती गांधी का चुनाव उन आरोपों पर निरस्त किया जा सका था, जिन पर आज कोई गौर भी नहीं करेगा और अगर ध्यान चला भी जाए तो वे बेहद तुच्छ आरोप लगेंगे. तो वह कार्रवाई उन दिनों की ईमानदारी और बेगुनाही का नहीं, बल्कि इस बात की गवाह थी कि सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन की नैतिकता में कितनी तेजी से गिरावट आ रही है.

न्यायमूर्ति सिन्हा ने श्रीमती गांधी को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने के लिए बीस दिनों का मौका दिया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 23 तारीख को पहली सुनवाई के लिए उन्हें बुलाया था; लेकिन इससे पहले कि सर्वोच्च अदालत अपना फैसला सुनाती, श्रीमती गांधी ने पहले ही कार्रवाई कर डाली. यह देखते हुए कि उन्होंने दिसंबर 1971 में भारत के कट्टर दुश्मन पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे और उस पर एक निर्णायक सैन्य जीत की अगुवाई करने करने के लिए उनकी तारीफों के पुल बांधे गए थे, कई पर्यवेक्षकों को उनका यह पतन कल्पनातीत लगता था. मई 1974 के दौरान "स्माइलिंग बुद्धा" नामक एक ऑपरेशन के तहत भारत ने एक "शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट" किया –इस गूढ़ अभिव्यक्ति की राजनीतिक संक्षिप्तता के हित में हम कोई टिप्पणी नहीं करेंगे- और इसके जरिए श्रीमती गांधी ने दुनिया को संकेत दे दिया कि भारत का इरादा दक्षिण एशिया की सर्वोच्च शक्ति बनने का है.

इस पर भी श्रीमती गांधी की अपार लोकप्रियता के बावजूद भारत बेचैन था. आजादी के लगभग तीस साल बीत जाने के बाद देश हताशाजनक गरीबी में जी रहा था; कुछ जिलों में तो महिलाओं की साक्षरता दर दहाई का अंक नहीं छू पा रही थी. विकास की गति हद से ज्यादा धीमी थी, लेकिन जनसंख्या वृद्धि की दर लगातार रफ्तार पकड़े हुए थी. कुछ अर्थशास्त्री देश के "विकास की हिंदू दर" का ताना मारते थे, अर्थव्यवस्था की वार्षिक वृद्धि दर देश की जन्म दर के साथ कदमताल करती नजर आती थी. दूध, मक्खन, चीनी, खाना पकाने का तेल और अन्य बुनियादी व आवश्यक वस्तुओं की किल्लत बनी हुई थी. गरीबों को तो छोड़िए, मध्यवर्गीय लोगों तक को लंबी-लंबी कतारों में लग कर राशन का इंतजार करना पड़ता था. अधिकतर लोग पूछने लगे थे- क्या इसी आजादी का सपना हमने देखा था और उपनिवेशवाद-विरोधी संघर्ष किया था?

हालांकि मोहनदास गांधी, नेहरू और अन्य लोगों के नेतृत्व में कांग्रेस ने देश को आजादी दिलाई थी, लेकिन पार्टी के प्रति निष्ठा दरकने लगी थी. कांग्रेस का विपक्ष खंडित था, लेकिन 1974 के प्रारंभ में गांधीवादी समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण (जिन्हें सब जेपी के नाम से जानते थे) छात्रों, किसानों, श्रमिकों और बुद्धिजीवियों को "संपूर्ण क्रांति" के नारे के अंतर्गत एकजुट करने में सफल रहे. देश के सबसे बड़े नियोक्ता भारतीय रेलवे के कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करने वाली यूनियन के नेतृत्व में एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल हुई, जिसने श्रीमती गांधी को किसी अपशगुन की तरह दिखा दिया कि उनके लिए मुश्किल भरे दिन आने वाले हैं.

जिसे श्रीमती गांधी ने "आपातकाल" कहा, वह मार्च 1977 तक चलने वाला था, वह गतिमान लोकतंत्र की पीठ पर घातक छुरा घोंपने जैसा कदम था. वैसे भी स्वेच्छाचारी शासकों के लिए लोकतंत्र एक भयावह संभावना हुआ करती है, फिर चाहे वे कोई भी बाना धारण किए हुए हों! यह एक नकली आपातकाल था, जो एक व्यक्ति द्वारा शासन करने के कुत्सित प्रयास से ज्यादा कुछ नहीं था. अजीब बात यह है कि आज उस घटना के पैंतालीस साल बाद भारत निस्संदेह रूप से एक वास्तविक और अघोषित आपातकाल का सामना कर रहा है, जिसके सामने भारत के द्वारा उस वक्त झेली गई सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याएं बौनी नजर आती हैं. सत्तारूढ़ दल और मध्यवर्गीय कुलीनों ने देश को पूरी तरह से बर्बादी के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है, जो एक खास आर्थिक और राजनीतिक कार्यक्रम को अपनी मौन सहमति देकर हर तरह से लाभ उठाना चाहते हैं. इस सिलसिले को अब छह साल होने को आए, जिसकी सत्ता और व्यक्तिगत लाभ के अलावा कोई दूसरी बुनियाद नहीं है.

इस सरकार को यह ठीकरा फोड़ने में कोई गुरेज नहीं है कि उसकी तमाम मौजूदा समस्याएं कोरोना वायरस महामारी की वजह से हैं. पिछले साल की शुरुआत में देश की बेरोजगारी दर 1974 के बाद सबसे अधिक थी, और पाठकों को याद ही होगा कि सरकार ने चुनाव से पहले इन आंकड़ों का प्रकाशन रोकने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था. चुनाव परिणामों ने दिखा दिया कि सरकार खामखां ही डर रही थी. पिछले तीन वर्षों से मैन्युफैक्चरिंग का क्षेत्र मंदी की मार झेल रहा है. मध्यम वर्ग की तरक्की दिखाने के लिए सरकार द्वारा उपयोग की जाने वाली कारों की बिक्री 2018 के अंत में 35 फीसदी से भी नीचे गिर चुकी थी. तमाम उपलब्ध सूचकांकों के अनुसार देश की 80 प्रतिशत आबादी अभी भी 2 डॉलर की समतुल्य राशि में अपना गुजारा करती है. भले ही भारत खुद को दुनिया का फार्मासिस्ट होने पर गर्व करता हो, लेकिन अधिकांश लोगों की अभी भी हेल्थकेयर सेवाओं तक बहुत कम या शून्य के बराबर पहुंच है. लाखों-करोड़ों झुग्गी-झोपड़ी वासियों, प्रवासी मजदूरों और किसानों के लिए सामाजिक सुरक्षा जाल की अवधारणा का वस्तुतः कोई अस्तित्व ही नहीं है.

लोकतंत्र के रूप में भारत पिछड़ चुका है. मानवाधिकारों के पैरोकार और राजनीतिक कार्यकर्ता; यहां तक कि अहिंसा का अनुकरणीय पालन करने वाले लोगों को कपटपूर्ण आरोपों के तहत जेल में ठूंस दिया गया है. असहमति की जबान बोलने वाले पत्रकारों और बुद्धिजीवियों को उत्पीड़ित करने, खामोश करने और उन्हें मिटा देने के इरादे से औपनिवेशिक काल के कानून लागू करने समेत विभिन्न प्रकार की तिकड़मों का सहारा लिया जा रहा है. 2020 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत दो और पायदान खिसक कर 142 वें स्थान पर आ गिरा है, जो सैन्य द्वारा शासित म्यांमार से भी नीचे है. डेमोक्रेसी इंडेक्स की वैश्विक रैंकिंग में भारत 10 पायदान का गोता लगाकर 51वें स्थान पर आ चुका है. यह भी कि भारत कम से कम एक "दोषपूर्ण लोकतंत्र" के रूप में ही सही, अपना स्थान बरकरार रखे हुए है, जिसका श्रेय चुनाव मशीनरी के अपेक्षाकृत सुचारु संचालन को जाता है. हालांकि आंकड़े दर्शाते हैं कि "नागरिक स्वतंत्रताओं" का गंभीर क्षरण हुआ है.

देश की विदेश नीति हताशा और शर्मिंदगी का बायस बन चुकी है. चीन के साथ संबंध बिगड़ते चले जा रहे थे और कुछ दिन पहले ही लद्दाख में भारत दावेदारी वाले सीमा विवाद को लेकर जो कुछ हुआ, उसके बारे में सरकार की सफाई सुन कर एक भी व्यक्ति आश्वस्त नहीं है, सिवाय उन लोगों के जो खुद के लिए भी साफ तौर पर सोचने में अक्षम हैं और जो आलोचकों को "राष्ट्र-विरोधी" घोषित करने में खुद को तीसमारखां समझते हैं. भारत पाकिस्तान से बोलचाल की हालत में भी नहीं है. दोनों पक्षों की बातचीत में तानों, अपमान और मर्दानगी का खोखला प्रदर्शन शामिल रहता है. सबसे विचलित करने वाली जाहिर-सी बात तो यह है कि सदियों के सहयोगी और पड़ोसी मित्र देश नेपाल ने, जो साझी हिंदू विरासत वाला दुनिया का एकमात्र अन्य देश है, भारत को धता बता दी है. भारत के खुद पर प्रभाव को नकारने की सबसे हालिया कार्रवाई के तहत नेपाल की संसद ने चंद दिनों पहले ही एक नया नक्शा जारी करने के लिए सर्वसम्मति से मतदान किया है, जिसमें भारत के साथ विवाद वाले क्षेत्रों को नेपाल की सीमाओं के भीतर दिखाया गया है.

कोरोनावायरस महामारी ने देश की बीमारियों को और ज्यादा गंभीर बना दिया है. संक्रमित लोगों के मामले दिन दूने रात चौगुने बढ़ रहे हैं. अगर सरकार में बैठे लोगों के कान पर जूं रेंगे, तो सुनाने के लिए अनगिनत कहानियां हैं. इनमें कोविड-19 से संक्रमित रोगियों के लिए अपने दरवाजे बंद करने और उन्हें मरने के लिए छोड़ देने वाले अस्पतालों के किस्से शामिल हैं. यह जानकर किसी को आश्चर्य नहीं होगा कि भारत की दबाव में पड़ी अत्यधिक विस्तृत किंतु अपर्याप्त मेडिकल केयर सुविधाएं मौजूदा चुनौती को झेलने के लिए पूरी नहीं पड़ रही हैं. कोरोना वायरस महामारी के बीच में सरकार अभी भी अपने आलोचकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और असहमति व्यक्त करने वाले बुद्धिजीवियों के पीछे हाथ धोकर पड़ी हुई है, जबकि उसके पास अपने तमाम निवासियों (नागरिकों) के लिए भारत को एक सच्चा और मेहमाननवाज वतन बनाने से ज्यादा जरूरी और बड़ा काम और कुछ नहीं होना चाहिए था. यह सवाल है कि अगर सरकार को औपचारिक रूप से आपातकाल की घोषणा करनी पड़े, तो वह कौन सी अन्य शक्तियां अपने हाथ में ले सकती है! इस अघोषित आपातकाल के बीच मुझे अल्बेयर कामू के शब्द उधार लेकर यह सोचने का जी कर रहा है कि "किसी प्लेग से लड़ने का एक ही तरीका है- आम शालीनता."

(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

'असली वजह क्या थी, अभी बता पाना मुश्किल', DGCA के कारण बताओ नोटिस का इंडिगो ने भेजा जवाब
'असली वजह क्या थी, अभी बता पाना मुश्किल', DGCA के कारण बताओ नोटिस का इंडिगो ने भेजा जवाब
मध्य प्रदेश के सिवनी में बिजली लाइन से टकराया ट्रेनी विमान, पायलट समेत दो घायल
मध्य प्रदेश के सिवनी में बिजली लाइन से टकराया ट्रेनी विमान, पायलट समेत दो घायल
'...एक बार और फिर हमेशा के लिए इसे बंद कर दें', नेहरू की गलतियों पर प्रियंका गांधी ने PM मोदी को दी ये सलाह
'...एक बार और फिर हमेशा के लिए इसे बंद कर दें', नेहरू की गलतियों पर प्रियंका गांधी ने PM मोदी को दी ये सलाह
IND vs SA T20 Head to Head: भारत या दक्षिण अफ्रीका, जानिए हेड टू हेड में किसका पलड़ा भारी; किसने नाम सबसे ज्यादा रन और विकेट
भारत या दक्षिण अफ्रीका, जानिए हेड टू हेड में किसका पलड़ा भारी; किसने नाम सबसे ज्यादा रन और विकेट
ABP Premium

वीडियोज

Indian Rupee Hits Record Low: गिरते रुपये पर चर्चा से भाग रही सरकार? देखिए सबसे  सटीक विश्लेषण
Indigo Crisis:'अच्छे से बात भी नहीं करते' 6वें दिन भी इंडिगो संकट बरकरार | DGCA | Civil Aviation
LIVE शो में AIMIM प्रवक्ता पर क्यों आग बबूला हो गए Rakesh Sinha? | TMC | Vande Mataram Controversy
'Nehru नहीं होते तो...' Vande Matram चर्चा पर Priyanka Gandhi ने Lok Sabha में क्या कहा? सुनिए
Khabar Filmy Hain: Dharmendra को याद कर क्यो रोए सलमान

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
'असली वजह क्या थी, अभी बता पाना मुश्किल', DGCA के कारण बताओ नोटिस का इंडिगो ने भेजा जवाब
'असली वजह क्या थी, अभी बता पाना मुश्किल', DGCA के कारण बताओ नोटिस का इंडिगो ने भेजा जवाब
मध्य प्रदेश के सिवनी में बिजली लाइन से टकराया ट्रेनी विमान, पायलट समेत दो घायल
मध्य प्रदेश के सिवनी में बिजली लाइन से टकराया ट्रेनी विमान, पायलट समेत दो घायल
'...एक बार और फिर हमेशा के लिए इसे बंद कर दें', नेहरू की गलतियों पर प्रियंका गांधी ने PM मोदी को दी ये सलाह
'...एक बार और फिर हमेशा के लिए इसे बंद कर दें', नेहरू की गलतियों पर प्रियंका गांधी ने PM मोदी को दी ये सलाह
IND vs SA T20 Head to Head: भारत या दक्षिण अफ्रीका, जानिए हेड टू हेड में किसका पलड़ा भारी; किसने नाम सबसे ज्यादा रन और विकेट
भारत या दक्षिण अफ्रीका, जानिए हेड टू हेड में किसका पलड़ा भारी; किसने नाम सबसे ज्यादा रन और विकेट
Hollywood OTT Releases: इस हफ्ते OTT पर हॉलीवुड का राज, 'सुपरमैन' समेत रिलीज होंगी ये मोस्ट अवेटेड फिल्में-सीरीज
इस हफ्ते OTT पर हॉलीवुड का राज, 'सुपरमैन' समेत रिलीज होंगी ये फिल्में-सीरीज
UAN नंबर भूल गए हैं तो ऐसे कर सकते हैं रिकवर, PF अकाउंट वाले जान लें जरूरी बात
UAN नंबर भूल गए हैं तो ऐसे कर सकते हैं रिकवर, PF अकाउंट वाले जान लें जरूरी बात
Benefits of Boredom: कभी-कभी बोर होना क्यों जरूरी, जानें एक्सपर्ट इसे क्यों कहते हैं ब्रेन का फ्रेश स्टार्ट?
कभी-कभी बोर होना क्यों जरूरी, जानें एक्सपर्ट इसे क्यों कहते हैं ब्रेन का फ्रेश स्टार्ट?
Video: भीड़ में खुद पर पेट्रोल छिड़क प्रदर्शन कर रहे थे नेता जी, कार्यकर्ता ने माचिस जला लगा दी आग- वीडियो वायरल
भीड़ में खुद पर पेट्रोल छिड़क प्रदर्शन कर रहे थे नेता जी, कार्यकर्ता ने माचिस जला लगा दी आग- वीडियो वायरल
Embed widget