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बीमारी की हालत में भी रोज सुबह 4 बजे उठ जाते थे शशि कपूर

शशि कपूर पिछले करीब 15 बरसों से काफी बीमार चल रहे थे. इसी के चलते वह लम्बे समय से व्हील चेयर पर थे.

शशि कपूर पिछले करीब 15 बरसों से काफी बीमार चल रहे थे. इसी के चलते वह लम्बे समय से व्हील चेयर पर थे. यहाँ तक अपनी दिनचर्या के निजी कार्यों के लिए भी उन्हें अक्सर दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन इस सबके बावजूद शशि कपूर अपने समय के पूरे पाबन्द थे और उनकी दिनचर्या बीमारी की गंभीर अवस्था में भी एक दम सधी हुई थी.

पिछले करीब 40 बरसों में इस दिलकश अभिनेता और ख़ूबसूरत इंसान शशि कपूर से मेरी अनेक मुलाकातें हुईं, उन्हें कई बार इंटरव्यू किया. यहाँ तक अभी भी जब वह पिछले कुछ बरसों से बीमारी से जूझते हुए कभी घर और कभी अस्पताल के लगातार चक्कर लगा रहे थे तब भी मुझे उनसे कई बार फ़ोन पर बातचीत करने का सौभाग्य मिला.

हालाँकि वह मुश्किल से रूक रूक कर धीमे स्वर में कुछ ही शब्द बोल पाते थे. लेकिन उनकी आत्मीयता उन दो चार शब्दों में भी साफ़ झलकती थी. उनके जन्म दिन 18 मार्च पर तो मैं उन्हें बराबर फ़ोन कर बधाई देता था. यहाँ तक जब उन्हें सन 2015 में देश में सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के मिलने की जैसे ही घोषणा हुई वैसे ही मैंने उन्हें इसके लिए भी उन्हें तुरंत फ़ोन पर बधाई दी तो वह काफी प्रसन्न हुए.

शशि कपूर के साथ उनके परिवार के किसी सदस्य या उनकी देखरेख करने वाले किसी व्यक्ति से मेरी बात होती तो मुझे यह जान आश्चर्य होता कि शशि कपूर पिछले लम्बे अरसे से चल फिरने और ज्यादा बात न कर पाने में असमर्थ होते हुए भी सुबह तड़के करीब 4 बजे उठ जाते थे. उनके सहायक उन्हें प्रातः के आवश्यक कार्यों से निवृत कराके उन्हें तैयार करने तक में अपना पूरा योगदान देते थे.

उसके बाद शशि कपूर सुबह का नाश्ता करने के लिए अपने बेडरूम से बाहर के कमरे में आ जाते थे. उसके बाद वह फिर थोड़ी देर आराम करके दोपहर 12 बजे के करीब ही अपना लंच ले लेते थे और कुछ देर कभी किसी से बात करने या टीवी के सामने बैठने के बाद वह फिर से अपने बेड रूम में सोने के लिए चले जाते थे. उसके बाद शशि कपूर शाम को करीब 5 बजे उठकर अपने ड्राइंग रूम में आ जाते थे. तब वह शाम की चाय और बिस्कुट आदि लेने के बाद बाहर ही रहते थे और 8 से साढ़े 8 बजे के बीच वह रात का भोजन ले कुछ देर बाद फिर सोने के लिए चले जाते थे.

सुबह या शाम के समय में ही जरुरत पड़ने पर डॉक्टर उन्हें देखते थे. तबीयत के हिसाब से डॉक्टर्स उनकी दवाईयां और खान पान निर्धारित करते थे. पृथ्वी थिएटर जाने के लिए बेचैन रहते थे. सन 1978 में अपने द्वारा स्थापित पृथ्वी थिएटर से उन्हें इतना प्यार और लगाव था कि बीमारी की इस अवस्था में भी शशि कपूर शाम को पृथ्वी थिएटर जाने के लिए बेचैन से रहते थे. पृथ्वी थिएटर शशि कपूर के अपने निवास पृथ्वी हाउस - जानकी कुटीर के ठीक सामने है.

वह स्वयं इस बिल्डिंग के सातवें तल पर रहते थे जबकि उनके बड़े पुत्र कुणाल कपूर भी इसी बिल्डिंग में नीचे के तल पर रहते हैं. हालांकि शशि कपूर के डॉक्टर्स उन्हें घर से नीचे पृथ्वी थिएटर जाने की अनुमति तभी देते थे जब उनकी तबियत थोड़ी बेहतर होती थी. तबियत बेहतर होने पर वह शाम को 6 बजे के करीब अपनी व्हील चेयर पर ही कुछ देर पृथ्वी थिएटर जाकर बैठ जाते थे और वहां की चहल पहल देख उन्हें सुकून मिलता था. असल में पृथ्वी थिएटर में मानो शशि कपूर की आत्मा बसती थी.

पृथ्वी थिएटर ही वही नाम था जिसकी छत्र छाया में बैठ उन्होंने अभिनय सीखा था. जब 1940 के दशक में शशि कपूर ने अपने बचपन में पृथ्वी थिएटर के नाटकों में हिस्सा लेना शुरू किया तब यह थिएटर एक घुमंतू थिएटर था. कभी किसी शहर तो कभी किसी शहर घूमते हुए पृथ्वी के नाटकों में हिस्सा लेना तब बड़े गर्व की बात मानी जाती थी. लेकिन परिस्थितियां बदली ज्यों ज्यों सिनेमा लोकप्रिय होने लगा थिएटर पीछे छूटने लगा.

एक दिन पृथ्वी थिएटर बंद हो गया. शशि कपूर ने एक बार मुझे अपने इंटरव्यू में बताया था–“जब पिताजी चले गए तो लगा पृथ्वी थिएटर अब फिर शुरू नहीं हो पायेगा. लेकिन तब जेनिफर ने उसे संभाल लिया. लेकिन जब 1984 में जेनिफर का निधन हो गया तो उनके बेटे कुणाल ने उसे संभाल लिया. अब यदि कुणाल नहीं देखेगा तो कोई और इसे संभाल लेगा. यानी जो काम चलना है उसे कोई न कोई संभाल ही लेगा.”

यहाँ यह भी दिलचस्प है कि जब 1990 में कुणाल स्वयं विज्ञापन फिल्मों के काम में व्यस्त हो गए तो शशि की बेटी संजना ने पृथ्वी थिएटर का काम देखना शुरू कर दिया. साथ ही कुछ दिनों में पृथ्वी थिएटर को सफलता के नए शिखर पर पहुंचा दिया. लेकिन जब संजना शादी करके दिल्ली आ गयीं तो पृथ्वी की बागडोर फिर से कुणाल ने संभाल ली. अब कुणाल ही इसे देखते हैं. शशि कपूर के दूसरे बेटे करण कपूर तो अधिकतर लन्दन में ही रहते हैं. असल में शशि कपूर पृथ्वी थिएटर में अपने पिता पृथ्वीराज कपूर साहब की ही नहीं अपनी पत्नी जेनिफर की छवि भी देखते हैं.

यहाँ यह भी सच है कि यदि 1978 में शशि कपूर घुमंतू पृथ्वी थिएटर को जुहू की अपनी ज़मीन पर स्थायी थिएटर के रूप में स्थापित नहीं करते तो शायद मुंबई में तो थिएटर अब तक आखरी सांस ले चुका होता. लेकिन शशि कपूर ने यहाँ पृथ्वी थिएटर की स्थापना करके जहाँ अपने पिता के नाम को जीवित रखा वहां जेनिफर के अधूरे काम को भी पूरा किया. साथ ही थिएटर को भी बचा लिया.

बड़ी बात यह भी है कि अकेले शशि कपूर ने ही अपने पिता की इस निशानी को अमर बनाया उनके भाई राज कपूर या शम्मी कपूर ने उनकी इस काम में कोई मदद नहीं की. हालांकि राज साहब हों या शम्मी जी दोनों अपने छोटे भाई शशि से बहुत प्यार दुलार करते थे. लेकिन पृथ्वी थिएटर को बचाने या बनाने में उन्होंने कोई योगदान नहीं दिया.

शिफ्ट सिस्टम के साथ रविवार अवकाश की शुरुआत भी शशि कपूर ने पृथ्वीराज कपूर परिवार के सबसे छोटे बेटे होने के बाद कई नयी ऐसी शुरुआत भी कीं जो औरों के लिए एक नयी मिसाल, नयी प्रेरणा बनीं. जैसे सबसे पहले शशि कपूर ने ही ब्रिटेन और हॉलीवुड की फिल्मों में काम शुरू कर भारतीय कलाकारों की प्रतिभा और नाम को दुनिया में पहुँचाया.

इसके अलावा अपने बहुत ज्यादा व्यस्त होने पर शशि कपूर ने एक समय या एक दिन में एक ही फिल्म न करके बॉलीवुड में शिफ्ट सिस्टम की ऐसी परंपरा शुरू की जो बरसों तक चलती रही. इसके साथ ही यह भी शशि कपूर ने शुरू किया कि रविवार को वह किसी भी हालत में काम नहीं करेंगे और सप्ताह का यह एक दिन वह अपने परिवार को देंगे. आज बहुत से सितारे शशि कपूर के उन्हीं क़दमों पर चलते हुए रविवार को काम नहीं करते और अपना वह दिन अपने परिवार को देते हैं.

प्रदीप सरदाना

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