एक्सप्लोरर

बीजेपी की काट के लिए नीतीश का वो आनंद मोहन 'दांव', जिसके बाद विरोधियों की बंध गई घिग्घी

बिहार की राजनीति में आनंद मोहन की रिहाई से बवाल इसलिए मचा है क्योंकि आनंद मोहन बिहार में जातीय राजनीति के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहे हैं. 1990 में पहली बार जनता दल से विधायक बनने वाले आनंद मोहन ने लालू के खिलाफ 1993 में बगावत की और साल 1994 में अपनी अलग पार्टी बना ली. नाम दिया बिहार पीपुल्स पार्टी. चुनाव चिन्ह मिला ढाल और दो तलवार. राजपूत वोटरों ने इस निशान को अपने सम्मान से जोड़ा और देखते देखते आनंद मोहन सवर्णों के नेता के तौर पर स्थापित होने लगे.

बाहुबली आनंद मोहन पहली बार 1996 में लोकसभा का चुनाव जीतकर सांसद बने. तब समता पार्टी और बीजेपी का गठबंधन हुआ था और आनंद मोहन समता पार्टी के उम्मीदवार थे. इस चुनाव में आनंद मोहन मुजफ्फरपुर की जेल में बंद थे और चुनाव जेल से ही जीता था. जिस कलेक्टर हत्याकांड में आनंद मोहन जेल में थे और जीतकर संसद पहुंचे उस कांड में उन्हें पहले फांसी और फिर उम्र कैद की सजा मिली. जेल नियम बदलकर इसी कांड में उनकी रिहाई का आदेश हुआ है, जिसको लेकर बिहार की राजनीति गर्म है.

अब चर्चा इस बात की हो रही है कि नीतीश कुमार ने आनंद मोहन की रिहाई का फैसला राजपूत वोटों को ध्यान में रखकर किया है. बिहार में राजपूत जाति के वोटरों की संख्या 5 फीसदी से ज्यादा है. राजपूत वोटरों की एक खास और बड़ी बात ये रही है कि बिहार में ये पार्टी से ज्यादा अपनी जाति के उम्मीदवार को प्राथमिकता देते हैं.

पिछले कुछ चुनावों से राजपूत जाति के वोट का बड़ा हिस्सा बीजेपी को मिलता रहा है. बिहार में बीजेपी के सबसे ज्यादा सांसद राजपूत जाति के ही हैं. मोतिहारी से राधा मोहन सिंह, आरा से आरके सिंह, औरंगाबाद से सुशील सिंह, छपरा से राजीव प्रताप रुडी, महाराजगंज से जनार्दन सिंह बीजेपी के सांसद हैं. जेडीयू की कविता सिंह सीवान और एलजेपी से वीणा सिंह वैशाली से सांसद हैं.

इन सीटों के अलावा शिवहर, पूर्णिया, बांका सीट पर राजपूत वोटरों का प्रभाव बहुत ज्यादा है. मतलब ये कि दस लोकसभा सीट पर राजपूत वोटर हार जीत की ताकत रखते हैं . आनंद मोहन के साथ सहानूभुति की लहर पैदा हुई तो फिर बीजेपी के लिए रोक पाना मुश्किल होगा. आनंद मोहन पर भले ही डीएम की हत्या का दाग है लेकिन ये दाग राजनीतिक है, आनंद मोहन के समर्थक ऐसा मानते हैं. डीएम की जिस वक्त हत्या हुई उस वक्त आनंद मोहन पर भीड़ को हिंसा के लिए उकसाने और भड़काऊ आदेश देने का आरोप लगा जो साबित हुआ.

2007 में जेल जाने के बाद आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद चुनाव लड़ती रहीं लेकिन हर चुनाव में हारी. 2009 और 2014 के चुनाव में लवली शिवहर से लड़कर हारी. 2015 में लवली शिवहर से एनडीए के टिकट पर विधान सभा चुनाव लड़कर हार गईं. 2020 के विधान सभा चुनाव में लवली एनडीए का टिकट चाह रही थीं. लेकिन नहीं मिलने पर राजद के साथ गई. हालांकि वो खुद सहरसा से हार गईं लेकिन शिवहर से बेटा चेतन विधायक बन गया.

आनंद मोहन का जेल में रहना और जेल से बाहर रहने में जमीन आसमान का फर्क है. आनंद मोहन नब्बे के दशक में सवर्णों खासकर राजपूतों के सबसे बड़े नेता थे. तब के भूमिहार डॉन (उस जमाने में डॉन ही जातीय प्रतिनिधि होते थे)छोटन शुक्ला और अशोक सम्राट भी आनंद मोहन के साथ थे.

1994 से पहले राजपूत और भूमिहार वोटरों की एकता नहीं थी. लेकिन 1994 में लवली आनंद जब वैशाली से लोकसभा का उपचुनाव लड़ी तब राजपूत-भूमिहार एकता का नारा दिया गया. नारा कामयाब हुआ क्योंकि दोनों बड़ी जातियां तब लालू यादव की विरोधी हो चुकी थी. लालू यादव से राजनीतिक बदला लेने के लिए दोनों जातियों ने एक होकर लवली को वोट दिया और वो जीत गईं. आनंद मोहन बड़ी जाति के बड़े नेता बनकर उभरे. इसके बाद 1995 में विधान सभा चुनाव हुआ और विपक्ष तीन हिस्सों में था. बीजेपी, समता और बिपीपा. लालू की जीत हुई और फिर 1996 में बीजेपी समता का गठबंधन हुआ, आनंद मोहन समता पार्टी में शामिल हो गए. 1995 में जिस शिवहर से आनंद मोहन विधान सभा हार गए थे उस शिवहर से साल भर बाद 1996 में सांसद बन गए.

बिहार की राजनीति प्रयोग के दौर से गुजर रही थी. आनंद मोहन का बढ़ता कद नीतीश को पसंद नहीं आया और फिर अनबन के बाद 1998 में आनंद मोहन अलग होकर लालू के साथ हो गए. फिर शिवहर से लालू के समर्थन से सांसद बने. 1999 में आनंद मोहन फिर बीजेपी के करीब आए और तब खुद शिवहर से और लवली वैशाली से एनडीए की उम्मीदवार बनीं. दोनों हार गए. 2000 के विधान सभा चुनाव में आनंद मोहन एनडीए का हिस्सा थे. पार्टी 20 सीटों पर पार्टी चुनाव लड़ी थी. इसके बाद साल 2005 में जब नीतीश कुमार सत्ता में आए तब फिर संबंध बिगड़ गए. उसके बाद की कहानी ऊपर आप पढ़ चुके हैं.

मोटे तौर पर समझें तो आनंद मोहन का झुकाव हमेशा से एनडीए की तरफ रहा है. लेकिन राजनीतिक मजबूरियों में उन्होंने फैसले लिए और लालू के साथ गए. आनंद मोहन के बाद बिहार में सवर्णों खासकर राजपूतों का कोई बड़ा नेता नहीं हुआ. यही वजह है कि आनंद मोहन का क्रेज अब भी बना हुआ दिखता है. नई पीढ़ी के लिए आनंद मोहन भले ही मायने नहीं रखता हो लेकिन नब्बे के दशक में जो छात्र और नौजवान थे उनके लिए आनंद मोहन राजनीति का बड़ा चेहरा हैं . इसीलिए नीतीश कुमार ने 2024 के चुनाव के लिए इस चेहरे पर दांव लगाया है. आनंद मोहन के पास आज भी बारगेनिंग पावर उसी तरह का है जैसा बीस-पच्चीस साल पहले था. वैसे भी बिहार की राजनीति में राजपूत वोटरों को काफी लिबरल माना जाता है. फिलहाल ये वोट बैंक बीजेपी के पास है. लेकिन आनंद मोहन अगर नीतीश कुमार के पक्ष में मैदान में उतर जाते हैं तो बीजेपी के लिए इस जाति के वोट बैंक को पूरी तरह से जोड़े रख पाना मुश्किल होगा. यही वजह है कि बीजेपी के राजपूत नेता आनंद मोहन के खिलाफ खुलकर बोलने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे. बीजेपी के भूमिहार नेताओं में भी स्पष्टता नहीं है. 

बीजेपी के सामने दिक्कत ये है कि पार्टी आनंद मोहन के पक्ष में उतरती है तो दलितों का नुकसान झेलना पड़ सकता है और मुद्दा राष्ट्रीय बन सकता है और आनंद मोहन के खिलाफ खुलकर बोलने पर राजपूतों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. पहले से ही भूमिहार वोटर बीजेपी से खुश नहीं हैं. बीजेपी पिछड़ा कार्ड खेलकर बिहार की जंग जीतना चाहती है. ऐसे में कोर वोटर अगर खिसका तो बिहार में लेने के देने पड़ सकते हैं. आनंद मोहन के चुनाव लड़ने में कोई कानूनी अड़चन नहीं आती तो वो खुद शिवहर से चुनाव लड़ते और पत्नी लवली आनंद वैशाली से चुनाव लड़ सकती हैं.

(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

India-Pakistan Relations: कारगिल युद्ध के 25 साल बाद पाकिस्तान का कबूलनामा, अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर नवाज शरीफ ने मानी ये गलती
कारगिल युद्ध के 25 साल बाद पाकिस्तान का कबूलनामा, अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर नवाज शरीफ ने मानी ये गलती
Lok Sabha Election 2024: अखिलेश यादव समेत तीन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज, जानें क्या है पूरा मामला?
अखिलेश यादव समेत तीन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज, जानें क्या है पूरा मामला?
Delhi Chief Secretary: दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार को दूसरी बार मिला सेवा विस्तार, 6 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुकी है AAP
दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार को दूसरी बार मिला सेवा विस्तार, 6 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुकी है AAP
Hardik Pandya Divorce: हार्दिक-नताशा तलाक की खबरों ने लिया नया मोड़, करीबी दोस्त का हैरतअंगेज़ खुलासा
हार्दिक-नताशा तलाक की खबरों ने लिया नया मोड़, करीबी दोस्त का हैरतअंगेज़ खुलासा
metaverse

वीडियोज

PM Modi On ABP: स्वार्थी लोगों ने ब्रह्मोस का एक्सपोर्ट रोका-पीएम मोदी का बड़ा बयान | Loksabha PollsLoksabha Election 2024: मोदी की आध्यात्म यात्रा..'हैट्रिक' का सार छिपा ? | ABP NewsPM Modi On ABP: 2024 चुनाव के नतीजों से पहले पीएम मोदी का फाइनल इंटरव्यू | Loksabha ElectionPM Modi On ABP: पीएम मोदी से पहली बार जानिए- किस विपक्षी नेता के वे पैर छूते थे | Loksabha Election

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
India-Pakistan Relations: कारगिल युद्ध के 25 साल बाद पाकिस्तान का कबूलनामा, अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर नवाज शरीफ ने मानी ये गलती
कारगिल युद्ध के 25 साल बाद पाकिस्तान का कबूलनामा, अटल बिहारी वाजपेयी को याद कर नवाज शरीफ ने मानी ये गलती
Lok Sabha Election 2024: अखिलेश यादव समेत तीन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज, जानें क्या है पूरा मामला?
अखिलेश यादव समेत तीन लोगों के खिलाफ FIR दर्ज, जानें क्या है पूरा मामला?
Delhi Chief Secretary: दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार को दूसरी बार मिला सेवा विस्तार, 6 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुकी है AAP
दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार को दूसरी बार मिला सेवा विस्तार, 6 महीने पहले सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुकी है AAP
Hardik Pandya Divorce: हार्दिक-नताशा तलाक की खबरों ने लिया नया मोड़, करीबी दोस्त का हैरतअंगेज़ खुलासा
हार्दिक-नताशा तलाक की खबरों ने लिया नया मोड़, करीबी दोस्त का हैरतअंगेज़ खुलासा
'जवान', 'पठान' या 'एनिमल' नहीं, इस फिल्म को 2023 में हुआ सबसे ज्यादा मुनाफा! यहां देखें टॉप 5 की लिस्ट
'जवान', 'पठान' या 'एनिमल' नहीं, इस फिल्म को 2023 में हुआ खूब मुनाफा!
वैक्सीन बनाने वालों को कम से कम कितनी सैलरी देता है सीरम इंस्टिट्यूट? रकम सुनकर उड़ जाएंगे होश
वैक्सीन बनाने वालों को कम से कम कितनी सैलरी देता है सीरम इंस्टिट्यूट? रकम सुनकर उड़ जाएंगे होश
शरीर में है B12 की कमी तो कुछ ऐसे दिखते हैं लक्षण, जानें एक सेहतमंद व्यक्ति में कितना होना चाहिए लेवल?
शरीर में है B12 की कमी तो कुछ ऐसे दिखते हैं लक्षण, जानें एक सेहतमंद व्यक्ति में कितना होना चाहिए लेवल?
टूरिज्म में आया उछाल, 119 देशों की सूची में 39वें स्थान पर आया भारत, क्या हैं इसके संकेत
टूरिज्म में आया उछाल, 119 देशों की सूची में 39वें स्थान पर आया भारत, क्या हैं इसके संकेत
Embed widget