छत्रपति शिवाजी महाराज के अंगरक्षक बाजी प्रभु देशपांडे थे.



बाजी प्रभु देशपांड ने अपनी जान की बाजी लगाकर बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह से शिवाजी को बचाया था.



जब शिवाजी 1660 में पन्हाला किले से निकले, तो बीजापुर के सुल्तान आदिल शाह की सेना ने उनका पीछा किया.



शिवाजी ने बाजी प्रभु देशपांडे को आदेश दिया कि उनके विशालगढ़ किले तक पहुंचने तक दुश्मनों को रोके रखना है.



बाजी प्रभु देशपांडे और उनके 700 सैनिकों ने मरते दम तक लड़ाई लड़ी.



भारी हमला झेलने के बावजूद, उन्होंने दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया.



कुछ घंटों बाद विशालगढ़ किले से तोपों की आवाज आई, जो शिवाजी के सुरक्षित पहुंचने का संकेत था.



बाजी प्रभु देशपांडे ने यह आवाज सुनकर संतोष पाया, लेकिन वह गंभीर रूप से घायल हो चुके थे.



लड़ते-लड़ते बाजी प्रभु वीरगति को प्राप्त हुए, लेकिन शिवाजी महाराज के प्रति अपना कर्तव्य पूरा किया.



उनका बलिदान मराठा इतिहास में वीरता और समर्पण की मिसाल माना जाता है.