7 सितंबर से 21 सितंबर की अवधि पितृ पक्ष की रहेगी.



ये पितरों का ऋण चुकाने का समय है, उनकी आत्मा
की शांति के लिए इसमें श्राद्ध कर्म किए जाते हैं.


श्राद्ध को पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया मुक्ति कर्म
माना जाता है.


किसी भी व्यक्ति के शरीर त्यागने के बाद उसकी आत्मा
'प्रेत' कहलाती है.


यह आत्मा तीन वर्ष बाद पितरों में सम्मिलित होती है. मृतक
की आत्मा को सद्गति मिलती है.


इसके बाद वह पितरों के साथ शामिल हो जाती है.



श्राद्ध कई तरह के होते हैं नैमित्तिक, साप्तमिक,नित्य श्राद्ध.



मृत्यु के बाद पितरों का श्राद्ध सालभर बाद किया जाता है
इसे साप्तमिक श्राद्ध कहते हैं.