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Ramcharitmanas

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मानस मंत्र : सिय निंदक अघ ओघ नसाए, सीता की निन्दा करने वाले धोबी के पाप को नाश कर अपना धाम दिया प्रभु ने
मानस मंत्र : गुर पितु मातु महेस भवानी, प्रनवउँ दीनबंधु दिन दानी
मानस मंत्र: भनिति मोरि सिव कृपां बिभाती, कपट हटाकर हित करने वाली होती है रामचरितमानस
मानस मंत्र: सो न होइ बिनु बिमल मति मोहि मति बल अति थोर, शत्रु भी वैर छोड़कर सुनते है रामचरित का गुणगान
मानस मंत्र: सिअनि सुहावनि टाट पटोरे, प्रभु की कृपा से टाट पर भी सुहावनी लगती है रेशम की सिलाई
मानस मंत्र: करहिं पुनीत सुफल निज बानी, भवसागर से पार करता है रामचरित का गुणगान
मानस मंत्र: करतब बायस बेष मराला, बाहर से अच्छे भीतर से कपटी होते हैं कलियुग में पापी
मानस मंत्र: सुमिरत सारद आवति धाई, सरस्वती जी ब्रह्म लोक से दौड़ी चली आती है रामचरित के तलाब में डुबकी लगाने
मानस मंत्र: मंगल भवन अमंगल हारी, जीवन में जब हो रहा हो सब अमंगल तो राम नाम जपने से होता है मंगल
मानस मंत्र: खल परिहास होइ हित मोरा, दुष्टों की पापी वाणी भी बढ़ाती है संतों के पुण्य
मानस मंत्र: देव दनुज नर नाग खग प्रेत पितर गंधर्ब, मानस प्रारंभ तुलसीदास जी करते हैं देव दानव की वंदना
मानस मंत्र: दुख सुख पाप पुन्य दिन राती, विषम परिस्थिति में घबराना नहीं चाहिए यह सब दिन रात की तरह आते जाते रहते हैं
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