रामचरितमानस की प्रतियां जलाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. इस तरह का जहर समाज के लिए खतरनाक और दुखदाई है. जिस प्रकार रामचरित मानस के विरोध का स्वर बिहार से उठा और वो भी आरजेडी नेता और राज्य के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की तरफ से, वास्तव में ये सभी लोग मुद्दा विहीन हैं.


कोरोना काल के वक्त देश में ही वैक्सीन बनाकर लोगों को उसका डोज दिया गया. लेकिन शुरुआत में इसका विपक्षी पार्टियों ने काफी विरोध किया था. उसके बाद खुद उन नेताओं ने वैक्सीन लगवाई. ऐसे में रामचरितमानस का विरोध साजिश के तहत किया जा रहा है.



जातियों में भेद की साजिश


मैं इसे इस तरह से देखता हूं कि आने वाले चुनाव के लिहाज से विपक्षी पार्टियां लोगों में भेदभाव करके उनको ऊंच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा, एससी-एसटी के अलग-अलग हिस्सों में बांटने की कोशिश कर रही हैं. चाहे बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर हों या फिर समाजवादी पार्टी के एमएलसी स्वामी प्रसाद मौर्य हों. लेकिन इन लोगों को ये पता नहीं है कि भगवान श्रीराम इस धरातल के कण-कण में वास करते हैं. राम सनातन धर्म के सिरमौर हैं. बाल्यकाल से ही रामचरितमानस का नवापरायण यज्ञ देखते और उसका पाठ करते आए हैं. रामचरितमानस अपने जीवन में साधने योग्य है. भगवान श्रीराम आदर्श हैं, पुरुषों में उत्तम हैं, पति और पिता में श्रेष्ठ हैं और उन्होंने सभी जातियों को सम्मान दिया है.


गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है कि प्रभु श्रीराम ने किसी भी जाति में विभेद नहीं किया है. जितनी भी विपक्षी पार्टियां हैं, चाहे वो जेडीयू हो, सपा हो या आरजेडी हो, लेकिन उन्होंने कभी रामचरितमानस को खोलकर नहीं देखा होगा. इन्हें ये नहीं पता होगा कि इसके अंदर कितने कांड हैं.


महात्मा गांधी भी राम को मानते थे


स्वामी प्रसाद मौर्य ऐसा बयान देकर पता नहीं क्या जाहिर करना चाहते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य का चूंकि कोई व्यक्तिगत आधार नहीं रहा है, इसलिए राजनीतिक पद को प्राप्त करने के लिए इस तरह के अनर्गल बयान दे रहे हैं. ऐसे लोग जातियों के नाम पर रोटियां सेंकते हैं. मैं सवाल करता हूं कि जिस समाज से स्वामी प्रसाद मौर्य आते हैं, उन्होंने किसी एक व्यक्ति का उद्धार किया हो.महात्मा गांधी भी श्रीराम को पूजते थे और उनकी अंतिम इच्छा थी कि रामराज्य की स्थापना हो. उन्होंने शरीर छोड़ते वक्त हे राम कहा था. स्वामी प्रसाद मौर्य कैसे नेता हैं, जो न महात्मा गांधी को मानते हैं और न अंबेडकर को मानते हैं, सिर्फ जहर घोलने का काम करते हैं. समाज को दूषित करने का काम करते हैं. ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. 


मैं ये मानता हूं कि रामचरितमानस को लेकर जो विवाद हो रहा है उसे थमना चाहिए. उसका अर्थ का अनर्थ लगाकर भ्रम फैलाना गलत है.


उन्होंने सुंदरकांड में लिखा था:  "ढोल गवांर सूद्र पसु नारी।  सकल ताड़ना के अधिकारी।।"


ऐसा नहीं है जो इसके मायने निकाले जा रहे हैं. ढोल को ढंग से बजाने के लिए कैसे ठीक से रखा जाए, कैसे उसका पालन किया जाए, इस बारे में कहा जा रहा है. तुलसीदास का असल में ये कहना है कि अगर हम ढोलपूर्ण व्यवहार, सुर को नहीं पहचानते हैं तो उसकी आवाज कर्कश होगी. इसलिए उसके स्वभाव को जानना आवश्यक है.     


इसी तरह गवांर यानी किसी का मजाक उड़ाना नहीं चाहिए. इसी तरह पशु-नारी के व्यवहार को संभालने की जरूरत है. जितना भी उदाहरण दिया है, उसका अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग संकेत हैं. गोस्वामी तुलसीदास ने चौपाई के माध्यम से जो कुछ लिखा है, वो गलत नहीं बल्कि लोगों की सोच गलत है. जब लोग सोच नहीं बदलेंगे तो अर्थ का अनर्थ निकलेगा और वैमनस्यता का भाव पैदा होगा. 


श्रीरामचरितमानस को सनातन धर्म का महाकाव्य माना गया है. ये सबसे पवित्र ग्रंथ है. एक घटना है कि गोस्वामी तुलसीदास ने जब रामचरितमानस को पूर्ण कर उसे बाबा विश्वनाथ के मंदिर में रखा, तो वह पुस्तक सबसे नीचे के क्रम में रखी गयी थी. लेकिन जब दूसरे दिन प्रात:काल बाबा विश्वनाथ मंदिर का दरवाजा खोला गया तो वह पुस्तक सबसे ऊपर रखी हुई थी और 'सत्यम शिवम् सुन्दरम्' भगवान शिव जी की तरफ से लिखा हुआ था. इसलिए श्रीरामचरितमानस जातियों में विभेद नहीं करता है.


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