UP News: गोरखपुर की इस टीचर ने बदली सरकारी स्कूल की तस्वीर, फिल्म तारे जमीं पर से मिली प्रेरणा
Gorakhpur News: कहा जाता है कि आप कुछ बेहतर करने के बारे में सोचते हैं तो राह खुद ब खुद बनती जाती है. गोरखपुर की एक महिला टीचर ने सरकारी स्कूल की सूरत बदल दी.
Gorakhpur teacher shweta singh news: तारे जमीं फिल्म ने ऐसे शिक्षक की नजीर लोगों के सामने पेश की जिसने पढ़ने और पढ़ाने के तौर तरीकों को ही बदल दिया. ऐसे में पढ़ाई में कमजोर बच्चों ने भी अपने क्षेत्र में कुछ कर गुजरने के जज्बे के साथ अलग मुकाम हासिल करने के लिए हाड़-तोड़ मेहनत की. कहते भी हैं कि कुछ कर गुजरने की मन में ठान लें, तो तस्वीर बदली जा सकती है. ऐसे ही शिक्षकों में शुमार हैं, गोरखपुर की रहने वाली शिक्षिका श्वेता सिंह. जिनकी कहानी इस फिल्म से मिलती-जुलती है. श्वेता को साल 2019 में राज्य अध्यापक पुरस्कार मिल चुका है. वे अपनी 17 साल की ऑटिज्म ग्रसित बच्ची के साथ ही घर-परिवार और स्कूल में पढ़ने वाले गांव के गरीब परिवार के बच्चों की तकदीर बलदने के लिए जी-जान से जुटी हुई हैं.
श्वेता की झोली में कई पुरस्कार
प्राथमिक विद्यालय यानी सरकारी स्कूल की तस्वीर बदलकर तकनीकी शिक्षा से बच्चों की पढ़ाई में रुचि जागृत करने वाली श्वेता सिंह को साल 2019 में राज्य अध्यापक पुरस्कार राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के हाथों मिला. ये पुरस्कार पाने वाली श्वेता उन 73 शिक्षकों में हैं, जिन्होंने सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल दी है. उत्तर प्रदेश शासन की ओर से साल 2019 में राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए प्रदेश के 73 शिक्षकों ने नाम की घोषणा की गई थी. उनमें श्वेता को भी ये सम्मान मिल चुका है.
साल 2019 के राज्य पुरस्कार के साथ श्वेता पहले भी उल्लेखनीय कार्य के लिए कई पुरस्कार पा चुकी हैं. इस पुरस्कार के लिए राज्य स्तरीय समिति की नौ बार अलग-अलग तिथियों में बैठक हुई, जिसके बाद पुरस्कार के लिए 73 शिक्षक चयनित किए गए. राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए जैसे ही श्वेता का चयन हुआ, उनका हौसला और उत्साह और बढ़ गया. श्वेता ने बताया कि मेरा उद्देश्य बच्चों को सरल तरीकों से अच्छी शिक्षा देना है.
सरकारी स्कूल की बदली तस्वीर
उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए इंफॉर्मेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी (आईसीटी) का उपयोग किया. पढ़ाई को लेकर बच्चों में उत्साह पैदा करने के लिए अपने संसाधनों से लैपटाप और माइक लेकर आना शुरू किया. उसी से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. बच्चे जैसे ही हाथ में लाउड स्पीकर पाते, उनका उत्साह पढ़ाई के प्रति दोगुना बढ़ जाता. वे हमेशा बच्चों को कैसे आसानी से सब कुछ समझ में आए इस पर काम करती रहती हैं.
जनसमुदाय और अभिभावकों को जोडऩे के लिए उन्होंने गांव में चौपाल लगाना शुरू किया, जिसका परिणाम सार्थक रहा. श्वेता को इससे पहले राज्य आईसीटी पुरस्कार, राज्य आइसीटी कक्षा शिक्षण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान, कहानी सुनाओ प्रतियोगिता के लिए पुरस्कार और दस्तक अभियान के लिए मुख्यमंत्री पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं. ऐसे में प्रदेश और देश के प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक श्वेता जैसी शिक्षिकाओं से सीख लेकर उन्हीं के नक्शे कदम पर चलकर कुछ अभिनव प्रयोग करें, तो प्राथमिक विद्यालयों की तस्वीर बदली जा सकती है.
गोरखपुर की ही रहने वाली हैं श्वेता सिंह
गोरखपुर के रानीडीहा की रहने वाली श्वेता का सास, ससुर देवर, देवरानी से भरा-पूरा परिवार है. उनके पति अनूप कुमार सिंह महराजगंज जिले में पुलिस रेडियो शाखा में सब इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. उनके दो बच्चे हैं. 17 साल की आदिता ऑटिज्म नाम की बीमारी से ग्रसित हैं. लाखों में एक बच्चा इस बीमारी से ग्रसित होता है. इसमें बच्चे का शारीरिक विकास तो होता है. लेकिन, मानसिक विकास रुक जाता है. ऑटिज्म से ग्रसित 17 वर्षीय आदिता कक्षा 7वीं में उसी स्कूल में पढ़ती हैं, जहां पर उनकी माता श्वेता सिंह शिक्षिका हैं. आदिता ऑटिज्म से ग्रसित हैं. लेकिन, श्वेता उन्हें पूरा लाड़-प्यार देकर बड़ा कर रही हैं. बेटा 14 साल का बेटा श्रेयस कक्षा 9वीं का छात्र है. वो शहर के सेंट जोसेफ स्कूल में पढ़ता है.
राजा भैया के करीबी पर BJP मेहरबान, रेस में मुलायम सिंह यादव की बहू का नाम, इन्हें भी मिलेगा मौका!