लखनऊ: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के तीन बार मुख्यमंत्री रहे मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का सोमवार सुबह निधन हो गया. वो 82 साल के थे. नेता जी के नाम से मशहूर मुलायम सिंह यादव केवल नाम के ही नहीं बल्कि दिल से भी मुलायम थे. इसे इस तरह से भी समझा सकता है कि उनके विरोधी भी उनकी शरण में आकर मान-सम्मान और पद-प्रतिष्ठा पाते थे. 


नेता जी के काफिले पर चली थीं गोलियां


मुलायम सिंह यादव 1984 में विधान परिषद में नेता विपक्ष थे. वो चार मार्च 1984 को इटावा-मैनपुरी की सीमा पर बसे झिंगपुर गांव में एक जनसभा को संबोधित कर वापस इटावा लौट रहे थे. इस दौरान वो मैनपुरी जिले के कुर्रा थाने के माहीखेड़ा गांव में अपने एक परिचित से मिलने चले गए थे. इस दौरान रात करीब साढ़े नौ बजे उनके काफिले पर हमला हुआ था. इस हमले में उनकी गाड़ी को नौ गोलियां लगी थीं. लेकिन नेता जी बाल-बाल बच गए थे. लेकिन इस हमले में उनकी गाड़ी से आगे चल रहे एक बाइक पर सवार शिक्षक छोटेलाल की मौत हो गई थी. 


मुलायम ने इस हमले के लिए किसी को सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं ठहराया था. उन्होंने इस घटना को हत्या की सुनियोजित साजिश बताया था. लेकिन इस घटना के लिए 1984 में मैनपुरी से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीते बलराम सिंह यादव का नाम चर्चा में आया था. बाद में राजनीति ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि बलराम सिंह यादव को मुलायम सिंह यादव का नेतृत्व स्वीकार करना पड़ा. समाजवादी पार्टी ने 1998 के चुनाव में उन्हें टिकट दिया. वो जीतकर लोकसभा पहुंचे. वहीं 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में भी सपा के टिकट पर ही लोकसभा पहुंचे.  


अपने खिलाफ चुनाव लड़ने वाले को भी भेजा राज्य सभा


इटावा जिले की जसवंतनगर विधानसभा सीट को मुलायम सिंह यादव के परिवार को परंपरागत सीट माना जाता है. मुलायम सिंह पहली बार इसी सीट से चुने गए. कई बार दर्शन सिंह यादव ने उन्हें जसवंतनगर सीट पर टक्कर दी. लेकिन वो कभी विधानसभा नहीं पहुंच सके. दर्शन सिंह यादव कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी में भी रहे. अंत में वो मुलायम सिंह यादव की शरण में आए. इसके बाद सपा ने उन्हें राज्यसभा भेजा.


यादवों के दो नेता


अशोक यादव फिरोजाबाद की शिकोहाबाद सीट से 1996 और 2007 में विधायक चुने गए थे. वह बीजेपी की सरकार में पर्यटन मंत्री भी बने. वो शिकोहाबाद के नगला हरी सिंह नगला गुलाल के रहने वाले हैं. कानपुर देहात से लेकर मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, फिरोजाबाद, एटा और बदायूं तक के इलाके को यादवों का गढ़ माना जाता है. यादवों में तो तरह के यादव होते हैं. कमरिया और घोसी. अनुमान के मुताबिक घोसी यादवों को जनसंख्या सबसे ज्यादा है. मुलायम सिंह यादव कमरिया और अशोक यादव घोसी यादव हैं. अशोक यादव ने कभी मुलायम सिंह यादव का नेतृत्व स्वीकार नहीं किया. चुनावों से पहले अशोक यादव घोसी यादवों का सम्मेलन कर मुलायम सिंह यादव का विरोध करते रहे. कई बार उन्हें सफलता नहीं मिली. कुछ बार उन्हें छोटी-मोटी सफलताएं मिलती रहीं. अशोक यादव आरोप लगाते रहे कि मुलायम सिंह यादव ने कभी घोषी यादवों को नहीं पनपने दिया. 


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