हरिद्वार: हिंदुओं का सबसे बड़ा मेला और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन कुम्भ इस साल हरिद्वार में आयोजित होगा. पावन नदी गंगा में आस्था और मोक्ष की डुबकी लगाने लाखों करोड़ों श्रद्धालु और साधु संत हरिद्वार के घाट पर इकट्ठे होंगे. कोरोना की वजह से माना जा रहा था कि इस बार कुम्भ का आयोजन नहीं हो पायेगा लेकिन अब तय है कि कुम्भ का आयोजन होगा. उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सिंह रावत की सरकार कुम्भ के आयोजन की तैयारियों में भी लगी है. लेकिन साधु संतों की सबसे बड़ी संस्था अखाड़ा परिषद मुख्यमंत्री से नाराज़ हैं. हरिद्वार में आधे अधूरे काम की वजह से संतों को आशंका है कि कुम्भ के आयोजन में बहुत दिक्कतें आ सकती हैं. ऐसे में एबीपी न्यूज़ ने हरिद्वार में कुम्भ मेले की तैयारियों का जायज़ा लिया. हम आपको बताएंगे कि धर्म की नगरी हरिद्वार कुम्भ के लिए कितनी तैयार है.


सड़कों पर रंग बिरंगी आकृतियां, कल कल बहता गंगा का जल, हर की पौड़ी का अनुपम नज़ारा और ईश्वर में लीन श्रद्धालु. ये सब कुछ हरिद्वार में है. अगले 2 महीने में उम्मीद है कि नज़ारा और भव्य और दिव्य होगा जब कुम्भ की तैयारियां पूरी हो जाएंगी.


पहले आपको कुम्भ के बारे में जानना चाहिए


माना जाता है कि आसुरों और देवताओं के बीच हुए समुद्र मंथन के बाद जो अमृत का घड़ा था, वो घड़ा लेकर जब भगवान इंद्र के बेटे जयंत जा रहे थे तो 4 जगहों पर अमृत की बूंदें टपकी थीं. ये 4 पवित्र शहर हैं हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक. हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे, उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर, नासिक में गोदावरी के घाट पर और प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर कुंभ का आयोजन होता है. धार्मिक विश्‍वास के अनुसार कुम्भ में श्रद्धापूर्वक स्‍नान करने वाले लोगों के सभी पाप कट जाते हैं और उन्‍हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. हरिद्वार में इस साल होने जा रहा कुंभ का आयोजन साढ़े तीन महीने के बजाय केवल 48 दिन का ही होगा. कोरोना की वजह से 11 मार्च से 27 अप्रैल तक ही कुम्भ मेला चलेगा.


कुम्भ हिंदुओं का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है. हर 6 साल में अर्ध कुम्भ और हर 13 वर्ष में महा कुम्भ का आयोजन होता है. इस साल हरिद्वार का महाकुम्भ 11 साल पर ही हो रहा है. 82 साल बाद इस बार हरिद्वार कुंभ बारह की बजाय ग्यारह वर्ष बाद पड़ रहा है. इससे पहले 1938 में यह कुंभ ग्यारह वर्ष बाद पड़ा था. कहते हैं ग्रहों के राजा बृहस्पति कुंभ राशि में हर बारह वर्ष बाद प्रवेश करते हैं. प्रवेश की गति में हर बारह वर्ष में अंतर आता है. यह अंतर बढ़ते बढ़ते सात कुंभ बीत जाने पर एक वर्ष कम हो जाता है. इस वजह से आठवां कुंभ ग्यारहवें वर्ष में पड़ता है. वर्ष 1927 में हरिद्वार में सातवां कुंभ था. आठवां कुंभ 1939 में बारहवें वर्ष आने की बजाय 1938 में ग्यारहवें वर्ष आया.


कुम्भ की तैयारियां सही से नहीं हो रही- अखाड़ा परिषद


साधु संतों की सबसे बड़ी संस्था अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने एबीपी न्यूज़ से कहा कि कुम्भ भगवान भरोसे हो रहा है. उन्होंने हरिद्वार के महाकुंभ की तुलना प्रयागराज में 2019 में हुए कुम्भ से करते हुए कहा कि जैसा आयोजन प्रयाग में हुआ था, वैसा आयोजन करना त्रिवेंद्र रावत सरकार के लिए सम्भव नहीं है. नरेंद्र गिरी ने कहा कि अगर अभी भी सरकार यूपी के अधिकारियों को बुला ले तो हरिद्वार का कुम्भ भव्य और दिव्य हो सकता है. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को अधिकारियों को नियंत्रित करने के साथ सख्त निर्देश देने चाहिए ताक़ि समय पर कुम्भ का आयोजन अच्छे से हो सके. उन्होंने कहा कि कोरोना के डर की वजह से संत कुम्भ को छोटे स्तर पर आयोजित करने के प्रस्ताव पर राज़ी थे लेकिन अब जब कोविड वैक्सीन आ गई है तो सरकार को कुम्भ का आयोजन दिव्य और भव्य तरीक़े से कराने का इंतज़ाम करना चाहिए.


अखाड़ा परिषद का दावा है कि कुम्भ की तैयारियां सही से नहीं हो रही हैं. वहीं कुम्भ मेले के मेलाधिकारी दीपक रावत निश्चिन्त दिखाई दे रहे हैं. तेज़ तर्रार माने जाने वाले आईएएस अधिकारी दीपक रावत कहते हैं कि कुम्भ का आयोजन हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है लेकिन हमें सहयोग मिल रहा है और हम इस बार भव्य आयोजन कराएंगे. रुड़की बाईपास की प्रोग्रेस अच्छी है और समय पर सड़कों पर काम पूरा हो जाएगा. रेलवे का डबल लाइन का काम पूरा हो चुका है. उन्होंने कहा कि अखाड़ों से बातचीत चल रही है और हम पेशवाई के दौरान रास्ते में सुविधा देने से लेकर धर्म ध्वजा और अखाड़ों के शहर बनाने में समय पर कामयाब होंगे. कोरोना को लेकर कुछ पाबंदियां भी होंगी और कुछ सुविधाएं भी दी जाएंगी. अलग से 1000 बेड का अस्पताल तैयार किया जा रहा है और आसपास के 20 अस्पतालों को प्रशासन के कब्जे में लिया जाएगा. जो लोग आएंगे उनको वैक्सीनेशन को लेकर केंद्र को फैसला करना है. यात्रियों के कोविड टेस्ट को लेकर सरकार के दिशानिर्देशों का पालन किया जाएगा.


कुम्भ इस साल मात्र डेढ़ महीने का होगा


कुंभ मेले में कुल चार शाही स्नान होंगे. पहला शाही स्नान 11 मार्च को महाशिवरात्रि के मौके पर होगा तो दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर, तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल को संक्राति के अवसर पर और चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा के दिन होगा. कोरोना की वजह से साढ़े तीन महीने तक चलने वाला कुम्भ इस साल मात्र डेढ़ महीने का होगा.


हर की पौड़ी के घाट पर और आसपास के घाटों पर निर्माण का काम लगभग पूरा हो चुका है. सीढ़ियों पर पत्थर लगे हैं, आसपास साफ सफाई का काम हो रहा है, गंगा नदी पर स्थायी और अस्थाई पुल बन चुके हैं, पेंटिंग का काम चल रहा है, गंगा की साफ सफाई की जा चुकी है. गंगा नदी के ऊपर एक नहीं बल्कि थोड़ी थोड़ी दूरी पर अस्थाई पुल बनाये गए हैं. अभी पुलों को भगवा रंग में रंगा गया है. इन पुलों पर ऐसे इंतज़ाम होंगे कि एक तरफ से लोग आएं और दूसरी तरफ से निकल जाएं. घाटों पर स्टील के केबिन बनाये गए हैं जहां स्नान के बाद महिलाएं कपड़े चेंज कर सकती हैं.


इस बार मकर संक्रांति के मौके पर हरिद्वार आये श्रद्धालु इंतजामों से खुश हैं. जम्मू से आये श्रद्धालुओं ने बताया कि वो पहले भी आते रहे हैं लेकिन इस बार हरिद्वार काफी बदला हुआ है. उन्होंने कहा कि साफ सफाई और इंतज़ाम बेहद अच्छे हैं. श्रद्धालुओं ने कहा कि वो कुम्भ में भी आएंगे और उन्हें उम्मीद है कि इस साल का कुम्भ बेहद अच्छा होगा.


हरिद्वार में इस बार हर तरफ भगवा दिखाई देगा


हरिद्वार में इस बार हर तरफ भगवा दिखाई देगा. गंगा नदी के ऊपर बने पुल को पूरी तरह भगवा रंग में रंगा गया है. पुलों पर रंग बिरंगी आकृतियां और भगवान की तस्वीरें गंगा के घाटों के आसपास के दृश्य बेहद भव्य होंगे. हर बार कुम्भ में करोड़ों लोग नदियों के किनारे इकट्ठे होते हैं. हरिद्वार में प्रयाग की तरह खुली हुई जगह नहीं है. इसलिए हरिद्वार के चंडी घाट पर नया घाट बनाया गया है. केंद्र सरकार की नमामि गंगे योजना के तहत बनाये गए चंडी घाट पर भी स्नान के मुकम्मल इंतज़ाम हैं जिससे बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं को हर की पौड़ी की जगह चंडी घाट पर स्नान कराकर आगे भेजा जा सकता है.


कुम्भ में जिस जगह साधु संतों के टेंट लगते हैं, उस जगह जब एबीपी न्यूज़ की टीम ने पड़ताल की तो पाया कि चंडी देवी मंदिर की पहाड़ी के सामने स्थित खाली जगह पर अबतक कोई तैयारी नहीं दिखाई दे रही है. सिर्फ बिजली के खम्भे मौके पर लगे हैं. ना तार लग पाया है, न ट्रांसफॉर्मर, न शौचालय और न टेंट. इसी वजह से साधु संत सरकार की तैयारियों से बेहद नाराज हैं.


अब जब 2 महीने से कम वक्त कुम्भ शुरू होने में बचे हैं तब जल्दी जल्दी में काम कराया जा रहा है. प्रशासन की तरफ से इस बार 35 की जगह 23 पुलिस थाने कुम्भ के लिए बनाए जा रहे हैं. जिस जगह महामंडलेश्वर के टेंट और पुलिस थाना बनेगा, वहां जेसीबी चलती दिखाई दी. जेसीबी से ज़मीन समतलीकरण का काम चल रहा है. कोरोना की वजह से काम में देरी हुई और अब जल्दी जल्दी काम को मार्च से पहले पूरा करने के लिए कोशिश की जा रही है.


दीवारों पर रंग बिरंगी पेंटिंग दिखाई देगी


शहर में आने वाले हर शख्स जब किसी सड़क या गली से गुज़रेगा तो उसे दीवारों पर रंग बिरंगी पेंटिंग दिखाई देगी. ये पेंटिंग बनाने का काम आर्ट्स के स्टूडेंट्स को दिया गया है. दिल्ली से आई ज्योति और प्रीति ने बताया कि वो एक साल से इस काम मे जुटी हुई हैं. बीच में कोरोना की वजह से काम थोड़ा रुका था लेकिन अब उनके साथ के छात्र लगकर पेंटिंग बनाने का काम कर रहे हैं. समुद्र मंथन और भगवान भोले शंकर की तस्वीरें बनाने में लगीं ज्योति और प्रीति ने बताया कि कई जगहों पर काम पूरा हो चुका है और कुछ काम बाक़ी है जिसको जल्दी जल्दी पूरा किया जा रहा है. ज्योति ने कहा कि प्रयागराज में कुम्भ का जीवन, साधु संत, भगवान की तस्वीरें और बाकी तस्वीरें उकेरी थीं. इस साल भी यही कोशिश है कि सुंदर तस्वीर बनाई जाए. प्रीति ने कहा कि ये काम चुनौती है लेकिन काम करने अच्छा लग रहा है और साथ ही काम में नया अनुभव मिल रहा है. इस बार स्प्रे पेंटिंग बनाकर गुणवत्ता का ज़्यादा ख़्याल रखा जा रहा है.


ऐसे में एक तरफ साधु संतों की नाराजगी है और दूसरी तरफ प्रशासन की तैयारियों का दबाव. देखना होगा कि उत्तराखंड सरकार समय पर दिव्य और भव्य कुम्भ का आयोजन कर पाती है या नहीं. अगर प्रयाग जैसी नहीं तो उसके आसपास की तैयारियां अगर नहीं की गईं तो त्रिवेंद्र रावत सरकार पर सवाल ज़रूए उठेंगे.


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