![metaverse](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-top.png)
Rajasthan News: उदयपुर में बंगाल से आए कारीगर बनाते हैं मूर्तियां, जानें क्यों गंगा नदी की मिट्टी का है विशेष महत्व?
Navratri 2023: 15 अक्टूबर से देशभर में नवरात्रि की धूम रहेगी. देशभर में अलग-अलग जगहों पर पंडालों में डांडिया का कार्यक्रम होगा तो वहीं मंदिरों में देवी मां की पूजा होगी.
![Rajasthan News: उदयपुर में बंगाल से आए कारीगर बनाते हैं मूर्तियां, जानें क्यों गंगा नदी की मिट्टी का है विशेष महत्व? Rajasthan News Artisans from Bengal make idols in Udaipur, soil of river Ganga has special importance ann Rajasthan News: उदयपुर में बंगाल से आए कारीगर बनाते हैं मूर्तियां, जानें क्यों गंगा नदी की मिट्टी का है विशेष महत्व?](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2023/10/10/93fed579f415f0e563ac6d4c29fa1ecd1696936660164864_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Udaipur News: सितंबर में कृष्ण जन्माष्टमी और उसके बाद गणेश चतुर्थी के दिनों की धूम रही. अब आने वाला है हिंदू धर्म का सबसे बड़ा त्यौहार दीपावली, लेकिन इससे पहले 15 अक्टूबर से देशभर में नवरात्रि (Navratri 2023) की धूम रहेगी. देशभर अलग-अलग जगहों पर पंडालों में डांडिया का कार्यक्रम होगा तो वहीं मंदिरों में देवी मां की पूजा होगी. भक्त भी मंदिरों में बड़ी संख्या ने दिखाई देंगे. नवरात्रि में कई जगहों पर माताजी की मूर्तियों की स्थापना की जाती है. इन्ही प्रतिमाओं को बात की तो उदयपुर में कुछ विशेष है. यहां मूर्तियां गंगा नदी की मिट्टी से बनाई जाती है और उन्हें बनाने वाले कारीगर बंगाल के होते हैं. आइए जानते हैं क्या खासियत है इन मिट्टी और मूर्तियों की.
3 माह पहले आते हैं कारीगर
बंगाल के कारीगर शंकर ने एबीपी की बताया कि उदयपुर में कई दशकों से आ रहे हैं, क्योंकि परिवार ही इसी से जुड़ा हुआ है. नवरात्रि के 3 माह पहले टीम के साथ उदयपुर आ जाते हैं और प्रतिमाएं बनाना शुरू कर देते हैं. इसमें पहले सांचों को बनाया जाता है उसके बाद मिट्टी से प्रतिमाओं का रूप दिया जाता है. इसमें माताजी की, गणेश जी की सहित अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं बनाते हैं. प्रतिमाएं जिसका ऑर्डर आता है इसी अनुसार बनाकर देते हैं. उदयपुर संभाग सहित राजस्थान के अन्य जिलों ने यह मूर्तियां जाती हैं.
गंगा की मिट्टी ही क्यों जरूरी है?
इस सवाल पर कारीगर का कर ने एबीपी को बताया कि कलकत्ता से गंगा नदी की मिट्टी लाई जाती है. इस मिट्टी से सिर्फ प्रतिमा का चेहरा बनाया जाता है. शेष भाग स्थानीय मिट्टी का ही होता है. उन्होंने बताया कि गंगा नदी की मिट्टी इसलिए क्योंकि उसमें रेत नहीं होती और सॉफ्ट होती है इसलिए इस मिट्टी का उपयोग किया जाता है. उन्होंने आगे कहा कि सांचे बनाने के बाद प्रतिमा का स्वरूप देते हैं और फिर सूखने को रख देते हैं. इसके बाद दरारें आती है तो उस जगह गिला कपड़ा रख मिट्टी का लेप लगा देते हैं. इससे दरारें चली जाती है. इसके बाद चूनर उड़ते हैं और पेंटिंग करते हैं. यह पूरी तरह से इको फ्रेंडली प्रतिमाएं हैं.
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![metaverse](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)
![डॉ. सब्य साचिन, वाइस प्रिंसिपल, जीएसबीवी स्कूल](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/045c7972b440a03d7c79d2ddf1e63ba1.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)