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Rajasthan: रंग लाई चाय वाले की मेहनत, 13 साल बाद अंजाम तक पहुंचा बेटे की मौत के बाद शुरू हुआ संघर्ष
Rajasthan News: साल 2007 में किडनी ट्रांसप्लांट नहीं होने की वजह से काजू भाई के 22 साल के बेटे की मौत हो गई थी. इस हादसे के बाद काजू भाई की जिंदगी बदल गई. उनके संघर्ष को अंजाम मिल गया है.
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Udaipur Ravindra Nath Tagore Medical College: कहते हैं कोई बात मन में ठान ली जाए और उसके लिए कड़ी मेहनत करें तो ख्वाहिश जरूर पूरी होती है. ऐसी ही कहानी है उदयपुर (Udaipur) के जितेंद्र सिंह राठौड़ (Jitendra Singh Rathore) उर्फ चाय वाले काजू भाई की है. आज इनकी वजह से रविन्द्र नाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज (Ravindra Nath Tagore Medical College) के अधीन संभाग के सबसे बड़े महाराणा भूपाल चिकित्सालय में किडनी ट्रांसप्लांट (kidney transplant) यूनिट बनने का प्रोसेस शुरू हुआ है.
बेटे की हुई थी मौत
दरअसल, वर्ष 2007 में किडनी ट्रांसप्लांट नहीं होने की वजह से काजू भाई के 22 साल के बेटे की मौत हो गई थी. इस हादसे के बाद काजू भाई ने एक संस्था किडनी केयर नाम से शुरू की. प्रदर्शन किए, ज्ञापन सौंपे और आज 13 साल संघर्ष में बाद उनको कामयाबी मिली है. किडनी रिट्रीव यूनिट तो पास हो गई है लेकिन ट्रांसप्लांट के लिए अनुमति मिलना शेष है. बड़ी बात ये है कि 13 साल में काजू भाई खुद 68 लोगों की अहमदाबाद और जयपुर किडनी ट्रांसप्लांट करवा चुके हैं. साथ ही भामाशाहों से मदद लेकर एक करोड़ रुपए से भी ज्यादा की आर्थिक मदद कर चुके हैं.
कठिन रहा है संघर्ष
जितेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि वर्ष 2007 में 22 साल के बेटे को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ गई थी. बेटे को गुजरात के अहमदाबाद हॉस्पिटल में लेकर गए, जहां 48 लाख रुपए मांगे गए. इतने रुपए नहीं होने के कारण उदयपुर के लोगों से संपर्क किया. मीडिया में मदद की गुहार लगाई. लोगों ने रुपए एकत्र भी किए लेकिन तब तक बेटे की जान जा चुकी थी. बेटे की तेरहवीं तक उदास रहा लेकिन फिर मन मे ठाना कि किडनी ट्रांसप्लांट नहीं होने के कारण मैंने अपना बेटा खोया तो और कोई पिता नहीं खोएगा.
मीडिया ने किया सपोर्ट
जितेंद्र सिंह राठौड़ कहते हैं कि, पहला पत्र मीडिया में जारी किया और बताया कि उदयपुर जैसे शहर में किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट की कितनी जरूरत है. मीडिया ने सपोर्ट किया और जोरों से मुद्दा उठाया. कलेक्टर से लेकर मंत्री तक इसकी गुहार लगाई. लगातार पत्राचार किए, प्रदर्शन किए, प्रशासन को बताया कि जिले और संभाग में कितने मरीज हैं जिन्हें किडनी ट्रांसप्लांट यूनिट की जरूरत है. तत्कालीन केलक्टर आशुतोष पेडनेकर ने इस बात को समझा और शुरुआती फंड जारी किए. फिर महाराणा भूपाल चिकित्सालय परिसर में ही सुपर स्पेशलिस्ट ब्लॉक के लिए सरकार से जमीन अलॉट कराई. आज ब्लॉक बनकर तैयार है और मशीनें लगभग आ चुकी हैं और कुछ ही माह में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू भी हो जाएगा.
ट्रांसप्लांट की अभी अनुमति नहीं
रविन्द्र नाथ टैगोर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल लाखन पोसवाल ने बताया किडनी रिट्रीव यानी ऑर्गन को निकालने के लिए सेटअप लग चुका हैं. ट्रांसप्लांट की अभी अनुमति नहीं मिली है, जो जल्द ही मिल जाएगी.
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