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महाराज, शिवराज और नाराज…,चुनावी साल में मध्य प्रदेश बीजेपी के भीतर कितने गुट हावी?

बीजेपी में गुटबाजी शुरुआती काल से ही है, लेकिन एमपी बीजेपी में पहले हर विवाद बंद कमरे में सुलझा लिया जाता था. पहली बार बीजेपी का विवाद मीडिया और सोशल मीडिया पर सुर्खियों में है.

कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद बीजेपी और कांग्रेस मध्य प्रदेश में पूरा फोकस कर रही है. इसकी वजह भी है- 2024 लोकसभा चुनाव से पहले जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, सीटों की लिहाज से मध्य प्रदेश में उनमें सबसे बड़ा है. मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. 

कर्नाटक की तरह ही मध्य प्रदेश में भी ऑपरेशन लोटस की वजह से कांग्रेस की सरकार गिर गई थी. ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद कांग्रेस के पास अब खोने के लिए कुछ नहीं है. कांग्रेस कमलनाथ के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की तैयारी में है.

दूसरी ओर 2 दशक से सत्ता में काबिज बीजेपी की राह आसान नहीं है. पार्टी के भीतर एक साथ कई गुट ने मोर्चा खोल रखा है. बीजेपी की अंदरुनी लड़ाई भी पहली बार सोशल मीडिया और सड़कों पर आ गई है. 

बीजेपी में गुटबाजी को लेकर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तंज कसा है. सिंह ने कहा है कि बीजेपी में अभी शिवराज, महाराज (ज्योतिरादित्य सिंधिया) और नाराज गुट हावी है. एमपी बीजेपी में गुटबाजी पर दिल्ली से भोपाल तक बड़े नेताओं ने चुप्पी साध रखी है.

ऐसे में आइए इस स्टोरी में जानते हैं, मध्य प्रदेश बीजेपी कितना हावी है गुटबाजी और इसका नुकसान क्या होगा?

हाल के 3 विवाद को जानिए
1. गुना-शिवपुरी में एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मंच पर से ही लोगों से माफी मांगने लगे. सिंधिया 2019 में इसी सीट से कांग्रेस टिकट पर बीजेपी उम्मीदवार केपी यादव से चुनाव हार गए थे. 

सिंधिया का माफी मांगना केपी यादव को नागवार गुजरी और उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना एक वीडियो शेयर कर दिया. यादव ने वीडियो में सिंधिया को मूर्ख और बेवकूफ कहते हुए बीजेपी में आने पर तंज कसा. 

केपी यादव ने कहा कि अगर उन्हें इतना ही दुख है तो कांग्रेस में चले जाएं और मुझसे चुनाव लड़कर दिखाएं. इस प्रकरण के बाद हाईकमान सकते में आ गई और केपी यादव को भोपाल तलब किया गया.

2. मंत्री गोपाल भार्गव और ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने शिवराज के करीबी मंत्री भूपेंद्र सिंह के खिलाफ शिवराज सिंह चौहान के सामने ही मोर्चा खोल दिया. गोविंद राजपूत, भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव सागर जिले से ही आते हैं. 

राजपूत और भार्गव का आरोप है कि मंत्री भूपेंद्र सिंह उनके विधानसभा में प्रस्तावित कार्यों को तरजीह नहीं देते हैं. साथ ही उनके कार्यकर्ताओं की भी कोई सुनवाई नहीं होती है. हालांकि, सियासी गलियारों में विरोध की दूसरी वजह भी बताई जा रही है.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मध्य प्रदेश बीजेपी हाईकमान नए अध्यक्ष के नामों पर मंथन कर रही है, जिसमें शिवराज गुट के भूपेंद्र सिंह सबसे आगे है. 

3. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने ट्विटर हैंडल के बायो से बीजेपी को हटा दिया. सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ने से पहले भी इसी तरह ट्विटर पर बायो बदला था. सिंधिया के ट्विटर अपडेट पर सोशल मीडिया में चर्चा शुरू हो गई.

हालांकि, कुछ देर बाद ही सिंधिया ने ट्विटर बायो को लेकर कांग्रेस पर हमला बोल दिया. सिंधिया ने कहा कि कांग्रेस अगर मेरे ट्विटर बायो की बजाय जनता की बात पढ़ती तो पार्टी का ये हाल नहीं होता. 

सिंधिया ने इसके बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के एक वीडियो को रिट्वीट कर उन पर निशाना साधा. सिंधिया ने कहा कि दिग्विजय की वजह से कांग्रेस मध्य प्रदेश में बुरी तरह पिट चुकी है. 

मध्य प्रदेश में कितने गुटों में उलझी बीजेपी?
वरिष्ठ पत्रकार नितिन दुबे कहते हैं- वर्तमान में बीजेपी के भीतर 4 गुट यानी खेमा प्रभावी है. पहला शिवराज सिंह चौहान का, दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया का, तीसरा नरोत्तम मिश्रा का और चौथा कैलाश विजयवर्गीय का. शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेमा सबसे असरदार है. 

शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री हैं, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी सरकार में मंत्री. नरोत्तम मिश्रा मध्य प्रदेश के गृह मंत्री हैं और उन्हें सीएम पद का बड़ा दावेदार माना जाता रहा है. कैलाश विजयवर्गीय 2014 के बाद केंद्र की राजनीति करते हैं और बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव रह चुके हैं.

इधर, कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बीजेपी में एक और गुट का नाम जोड़ते हैं. एक कार्यक्रम में दिग्गी ने सारे गुटों से इतर बीजेपी के भीतर एक नाराज गुट का भी जिक्र किया. ये गुट अभी पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं. 

दिग्विजय के इस दावे के पीछे बीजेपी छोड़ कांग्रेस में शामिल हो रहे नेताओं की सूची है. पिछले 20 दिनों में बीजेपी से विधायक रह चुके 3 नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. इनमें राधेश्याम पटेल, अनुभा मुंजारे और दीपक जोशी का नाम शामिल हैं.

इसके अलावा पूर्व विधायक ध्रुव प्रताप सिंह और अनूप मिश्रा के भी नाराजगी की खबर है. मिश्रा ने ग्वालियर सीट से विधायकी लड़ने का दावा ठोक दिया है.

आंतरिक गुटबाजी बाहर क्यों आया, 3 वजहें...
बीजेपी के भीतर गुटबाजी स्थापना के वक्त से ही रहा है. शुरू में कैलाश जोशी-सुंदरलाल पटवा गुट हावी था. 2000 के आसपास कुशाभाऊ ठाकरे- कप्तान सिंह सोलंकी का गुट भी सक्रिय था. 2003 आते-आते उमा भारती गुट भी सक्रिय हो गई थी. बाद के सालों में शिवराज मजबूत क्षत्रप होकर उभरे.

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2004 का वाकया छोड़ दिया जाए तो इन सब गुटों की लड़ाई कभी भी सामने नहीं आई. हर मुद्दे को बंद कमरे में ही सुलझा लिया गया. पहली बार गुटबाजी बाहर आ गई है. आखिर क्या वजह है?

1. बीजेपी का विस्तार- नितिन दुबे के मुताबिक 2014 के बाद बीजेपी का सभी राज्यों में तेजी से विस्तार हुआ है. कांग्रेस और अन्य दलों के नेताओं को पार्टी में खूब तरजीह मिली है. 

ठीक उसी तरह, मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस के नेता जमकर बीजेपी में आए. चाहे सिंधिया हो चाहे केपी यादव सभी कांग्रेस से पलायन कर ही आए हैं.

दुबे आगे कहते हैं- मध्य प्रदेश और केंद्र दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार है. ऐसे में बाहर से आए नेताओं को बीजेपी ने खूब तवज्जो दी और बड़े पदों पर भी बैठा दिया. 

इसके बाद बाहर से आए नेता अपना वजूद भी स्थापित करने में लगे हैं, इसलिए खटपट शुरू हो गया और संगठन इस खटपट को मैनेज करने में विफल हो गया, जिस वजह से गुटबाजी की बात बाहर आ गई. 

2. प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी- छत्तीसगढ़-राजस्थान के बाद मध्य प्रदेश में भी अध्यक्ष बदलने की बात कही जा रही है. हाईकमान इस पर काफी माथापच्ची भी कर रहा है. इस बात की भनक प्रदेश स्तर के नेताओं को भी है. 

नितिन दुबे के मुताबिक प्रदेश अध्यक्ष को लेकर सभी गुट लॉबी बाजी करने में लग गए. इतना ही नहीं, एक-दूसरे के उम्मीदवार पर अपना वीटो भी लगा दिया. चूंकि इस साल मध्य प्रदेश में चुनाव होने हैं. ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष का पद महत्वपूर्ण है.

वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग भी गुटबाजी के पीछे कुर्सी को ही अहम वजह मानते हैं. गर्ग कहते हैं- बीजेपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनका खेमा ठगा हुआ महसूस कर रहा है. गर्ग इसके पीछे असम और महाराष्ट्र का उदाहरण देते हैं.

असम में कांग्रेस से आए हिमंता बिस्वा सरमा और महाराष्ट्र में शिवसेना से आए एकनाथ शिंदे को बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश की पॉलिटिक्स करना चाहते हैं और प्रदेश अध्यक्ष पद पर खुद की दावेदारी कर रहे हैं.

गर्ग के मुताबिक बीजेपी में अगर सिंधिया को अपने फायदे का पद नहीं मिला तो अपना अलग मोर्चा भी बना सकते हैं. 

3. पुराने नेताओं को नजरअंदाज- गुटबाजी की बात बाहर आने की एक और वजह पुराने नेताओं को नजरअंदाज है. पिछले दिनों जितने भी नेताओं ने सार्वजनिक बयान दिए, उनमें पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा और वरिष्ठ नेता सत्यनारायण सत्तन का नाम शामिल हैं.

नितिन दुबे इसकी वजह 2018 का चुनाव परिणाम को मानते हैं. दुबे कहते हैं- 2018 में बीजेपी सरकार बनाने से चूक गई और बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन से सरकार बनाना पड़ा, जो कि समझौते की सरकार है. 

दुबे आगे कहते हैं- पहले पूर्ण बहुमत होने की वजह से वरिष्ठ नेताओं को सुना जाता था और तरजीह भी मिलती थी, लेकिन इस सरकार में ऐसा नहीं हो रहा है. सिंधिया की वजह से जयभान सिंह पवैया, दीपक जोशी, सुरेंद्र पटवा जैसे युवा और रघुनंदन शर्मा जैसे पुराने नेता साइड लाइन हो चुके हैं. 

कब तक चलेगा तकरार, चुनाव पर होगा असर?
श्रवण गर्ग के मुताबिक बीजेपी के भीतर मध्य प्रदेश का समीकरण हाईकमान और ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निर्भर है. सिंधिया अपना पत्ता नहीं खोलेंगे, लेकिन उनकी ओर से थर्ड फ्रंट बनाने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.

नितिन दुबे कहते हैं- प्रदेश अध्यक्ष पर तो पेंच फंसा ही है, लेकिन सबसे अधिक पेंच टिकट बंटवारा को लेकर फंसेगा. ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के लिए 50 से कम सीटों पर शायद ही मानें. 

दुबे कहते हैं- इनमें वे सीटें भी शामिल हैं, जिस पर बीजेपी के दूसरे खेमे के लोग भी दावा ठोक रहे हैं. सिंधिया मालवा, सागर और ग्वालियर चंबल की अधिकांश सीटों पर अपने समर्थकों को लड़वाना चाहते हैं.

राजनीतिक गलियारों में 2024 में सिंधिया के गुना सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की भी चर्चा है. ऐसी स्थिति में तकरार कम होने की बजाय बढ़ने के आसार हैं.

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