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Delhi NCR News: सांसदों-विधायकों पर मुकदमा चलाने के लिए स्थापित विशेष अदालतें वैध: न्याय मित्र
न्याय मित्र ने सुप्रीम कोर्ट में पेश रिपोर्ट में सांसदों-विधायकों पर मुकदमा के लिए स्थापित विशेष अदालतों को वैध बताया है. ये दलील न्याय मित्र विजय हंसरिया, स्नेहा कलिता द्वारा पेश रिपोर्ट में दी गई.
![Delhi NCR News: सांसदों-विधायकों पर मुकदमा चलाने के लिए स्थापित विशेष अदालतें वैध: न्याय मित्र Special courts set by supreme court prosecute fast disposal of cases against sitting former MPs-MLAs valid Delhi NCR News: सांसदों-विधायकों पर मुकदमा चलाने के लिए स्थापित विशेष अदालतें वैध: न्याय मित्र](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/03/01/1312c37b827cb327c971d3bced0157f1_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Delhi NCR News: उच्चतम न्यायालय को मंगलवार को अवगत कराया गया कि मौजूदा और पूर्व सांसदों एवं विधायकों के खिलाफ मामलों के त्वरित निपटान के लिए शीर्ष अदालत द्वारा अपनी विशेष शक्ति के तहत स्थापित विशेष अदालतें वैध हैं और माननीयों के खिलाफ इन अदालतों द्वारा की गई सुनवाई को अवैध नहीं कहा जा सकता.
ये था मामला
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष न्याय मित्र विजय हंसरिया और स्नेहा कलिता द्वारा पेश एक रिपोर्ट में ये दलीलें दी गई थीं. शीर्ष अदालत के समक्ष मामला यह था कि क्या सांसदों/विधायकों के खिलाफ मजिस्ट्रेट अदालत में सुनवाई योग्य मामूली अपराधों की सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली विशेष अदालतों के समक्ष सुनवाई की जा सकती है, क्योंकि सत्र न्यायाधीश न्यायिक मजिस्ट्रेट की तुलना में वरिष्ठ होता है.
यह आरोप लगाया गया था कि सत्र न्यायाधीश द्वारा इस तरह की सुनवाई किये जाने के परिणामस्वरूप आरोपी सांसदों/विधायकों को एक न्यायिक मंच के समक्ष अपील करने के अधिकार से वंचित किया जाता है, जबकि अन्य अभियुक्तों के लिए यह साधारणतया उपलब्ध होता है.
जघन्य आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए गए सांसदों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और उनके खिलाफ मामलों के त्वरित निपटान की मांग करते हुए अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर 2016 की जनहित याचिका में न्याय मित्र द्वारा 34-पन्नों की 15 वीं रिपोर्ट दायर की गई है. इसमें यह मामला भी जुड़ा है कि क्या विशेष अदालत में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के स्तर के एक अधिकारी द्वारा वैसे मामलों की सुनवाई की जा सकती है, जो सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई योग्य होते हैं.
रिपोर्ट में क्या कहा गया
रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष अदालत के निर्देश पर मौजूदा एवं पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के त्वरित निपटारे के लिए गठित विशेष अदालतें संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त अधिकारों के दायरे में वैध हैं और एमपी/एमएलए के खिलाफ इन अदालतों द्वारा की गई सुनवाई को अवैध या असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है.
2जी और कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालतों से संबंधित शीर्ष अदालत के एक आदेश का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय को किसी मामले को एक अदालत से दूसरी अदालत में स्थानांतरित करने का अधिकार है, भले वह समान अधिकार क्षेत्र की अदालत हो, या बड़ी अदालत.
रिपोर्ट के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 407 के तहत उच्च न्यायालयों को भी इसी तरह के अधिकार प्राप्त हैं. महज एक मामले को कम अधिकार क्षेत्र वाली अदालत से बड़ी अदालत में स्थानांतरित कर देने मात्र से इसे गैर-कानूनी कहकर चुनौती नहीं दी जा सकती.’’
हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘‘पहली अपील का अधिकार नहीं लिया गया है और ऐसे मामलों में सत्र अदालत में अपील दायर करने के बजाय उच्च न्यायालय में दायर की जाएगी. पुनरीक्षण का अधिकार अंतर्निहित अधिकार नहीं है, बल्कि यह पर्यवेक्षी अधिकार है.
समाजवादी पार्टी नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ को अवगत कराया कि उनके मुवक्किल को सत्र न्यायाधीश के नेतृत्व वाली विशेष अदालत ने ऐसे मामले में अभियोजित किया है, जिन मामलों की सुनवाई मजिस्ट्रेट द्वारा की जानी चाहिए थी, क्योंकि ये मामूली अपराध वाले मामले हैं. शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 24 नवम्बर की तारीख तय की.
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