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Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अपील पर बोरे बासी खाकर मनाया गया मई दिवस, जानिए कैसा होता है यह खाना
Chhattisgarh News: बोरे का मतलब होता है तुरंत पके हुए चावल को पानी में डूबाकर खाना. वहीं बासी का मतलब एक पूरी रात या दिनभर चावल को पानी में डूबाकर रखना होता है.
![Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अपील पर बोरे बासी खाकर मनाया गया मई दिवस, जानिए कैसा होता है यह खाना May Day was celebrated in Chhattisgarh on the appeal of Chief Minister Bhupesh Baghel by eating Bore Bashi ANN Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अपील पर बोरे बासी खाकर मनाया गया मई दिवस, जानिए कैसा होता है यह खाना](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/05/01/2ae2d97dd2719519789cffc93c6ce448_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
दुर्ग: छत्तीसगढ़ में पहली बार श्रमिक दिवस या मई दिवस कुछ अलग तरह से मनाया जा रहा है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रदेश की जनता से बोरे-बासी खाकर श्रमिक दिवस मनाने की अपील की थी. इसके बाद सोशल मीडिया पर संदेशों की लाइन लगी हुई है. दरअसल चावल को जब पानी में डुबाकर खाया जाता है तो उसे बोरे कहते हैं. इसे दूसरे दिन खाने पर यह बासी कहलाता है.
नेता, अधिकारी, और कर्मचारियो ने खाया बोरे बासी
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बाद 1 मई को प्रदेश के कई नेताओं, अधिकारियों, कर्मचारियों और श्रमिक तबके के लोगों ने बोरे बासी खाकर अपनी तस्वीर साझा की है. दुर्ग रेंज के आईजी बद्री नारायण मीणा भी बोरे बासी खाते नजर आए. वहीं दुर्ग में एसपी अभिषेक पल्लव ने अपने अधिकारियों के साथ बोरे बासी खाया. वहीं दुर्ग कलेक्टर डॉक्टर सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे ने भी अपने परिवार के साथ बोरे-बासी खाकर उन मजदूरों का सम्मान किया. इसके साथ ही कई लोगों ने बोरे बासी खाकर उन श्रमिकों का सम्मान कर रहे हैं.
ऐसे बनता है बोरे बासी
जहां बाकी खाना को बनाने में कई तरह का झंझट होता है. वहीं बोरे और बासी बनाना बहुत ही सरल है. न तो इसे सीखने की जरूरत है और न ही विशेष तैयारी करने की. खास बात यह है कि बासी बनाने के लिए विशेष सामग्री की भी जरूरत नहीं है. बोरे और बासी बनाने के लिए पका हुआ चावल (भात) और सादे पानी की जरूरत है. यहां बोरे और बासी इसलिए लिखा जा रहा है. क्योंकि मूल रूप से दोनों की प्रकृति में अंतर है. बोरे से अर्थ, जहां तुरंत पके हुए चावल को पानी में डूबाकर खाना है. वहीं बासी एक पूरी रात या दिनभर चावल को पानी में डूबाकर रखा जाना होता है. कई लोग भात के पसिया, माड़ को भी भात और पानी के साथ मिलाने में इस्तेमाल करते हैं. यह पौष्टिक भी होता है और स्वादिष्ट भी. बोरे और बासी को खाने के वक्त उसमें लोग स्वादानुसार नमक का उपयोग करते हैं.
प्याज, अचार और भाजी बढ़ा देते हैं स्वाद
बासी के साथ आमतौर पर प्याज खाने की परंपरा सी रही है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में प्याज को गोंदली के नाम से जाना जाता है. वहीं बोरे या बासी के साथ आम के अचार, भाजी बोरे बासी के स्वाद को बढ़ा देते हैं. दरअसल गर्मी के दिनों में छत्तीसगढ़ में भाजी की बहुतायत होती है. इन भाजियों में प्रमुख रूप से चेंच भाजी, कांदा भाजी, पटवा भाजी, बोहार भाजी, लाखड़ी भाजी बहुतायत में उपजती है. इन भाजियों के साथ बासी का स्वाद दोगुना हो जाता है.
बोरे-बासी खाने के लाभ
बोरे-बासी के सेवन से नुकसान तो नहीं लाभ कई हैं. इसमें पानी की भरपूर मात्रा होती है. इस वजह से गर्मी के दिनों में शरीर को शीतलता मिलती है. इससे उच्च रक्तचाप नियंत्रण करने में मदद मिलती है. बासी पाचन क्रिया को सुधारने के साथ पाचन को नियंत्रित भी रखता है. गैस या कब्ज की समस्या वाले लोगों के लिए यह रामबाण खाना है.
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