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Chhattisgarh: बस्तार संभाग के कई इलाकों में आज भी परिवहन सुविधा नहीं, नक्सलियों का खौफ

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों में आज तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं पहुंची है. यहां के लोग अपनी जरूरत के सामान के लिए हर रोज 15-20 किलोमीटर पैदल चलने पर मजबूर हैं.

Chhattisgarh Public Transport: देश की आजादी को 76 साल बीत चुके हैं. वहीं छत्तीसगढ़ राज्य गठन को 23 साल  बीत गए है लेकिन आज भी इस राज्य के ऐसे कई इलाके हैं,  जहां आज तक पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं पहुंची है. छत्तीसगढ़ में नक्सलगढ़ (Naxalgarh) कहे जाने वाले बस्तर (Bastar) में भी यात्री बस की सुविधा का ग्रामीण सालों से इंतजार कर रहे हैं. संभाग के सातों जिलों में ऐसे कई इलाके हैं, जहां आज भी परिवहन की सुविधा इस क्षेत्र के ग्रामीणों तक नहीं पहुंच पाई है. लिहाजा यहां के ग्रामीण अपनी जरूरत चीजों को लेने के लिए हर रोज 15 से 20 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं. लंबे समय से यहां के ग्रामीण यात्री बस की सुविधा की मांग कर रहे हैं लेकिन इस इलाके में नक्सलियों की हुकूमत चलने की वजह से आज तक यहां न ही सड़क बन पाये हैं और न ही ग्रामीणों को परिवहन की सुविधा मिल पाई है. यहां के ग्रामीण लंबे समय से मूलभूत सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं.

छत्तीसगढ़ के इन इलाकों में नहीं है परिवहन की सुविधा

दरअसल छत्तीसगढ़ का बस्तर पिछले 4 दशको से नक्सलवाद का दंश झेल रहा है. सुकमा, कांकेर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बीजापुर के अंदरूनी इलाकों में आज भी नक्सलियों की हुकूमत चलती है. यही वजह है कि यहां हमेशा से ही दहशत का माहौल बना रहता है. दहशत का माहौल इस कदर है कि दिन हो या रात यहां परिवहन की सुविधा आज तक नहीं पहुंच पाई है. ऐसे कई गांव है जहां तक न ही सड़क बने हैं और न ही इन गांवों तक परिवहन की सुविधा पहुंच सकी है. लिहाजा यहां के ग्रामीण अपने रोजमर्रा के लिए जरूरी सामानों को लेने के लिए हर रोज 15 से 20 किलोमीटर पैदल चलते हैं. बीजापुर जिले के लिंगनपल्ली, पामगढ़, पामेड़, सारकेगुड़ा कंकनपल्ली, एडसमेंटा और सुकमा जिले के गोलापल्ली, मीनपा.

इसके अलावा बस्तर जिले के कलेपाल, कोलेंग और चांदामेटा और कांकेर जिला और नारायणपुर जिले के ऐसे दर्जनो गांव है, जहां आज भी परिवहन की सुविधा नहीं पहुंची है.ग्रामीणों का कहना है कि आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी उनके गांव में यात्री बस की सेवा शुरू नहीं हो पाई है,  यहां के ग्रामीण सालों से इंतजार कर रहे हैं कि कब उन्हें इस सुविधा का लाभ मिल सकेगा, उन्हें अपने मुख्यालय जाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलकर जहां तक बसें चलती है वहां तक पहुंच कर फिर मुख्यालय आना पड़ता है खासकर आपातकालीन की स्थिति में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव तक सड़क का निर्माण नहीं होने पानी की वजह से यहां तक वाहन ने भी नहीं चलती है कुछ ग्रामीणों के पास मोटरसाइकिल तो है लेकिन कई ग्रामीण ऐसे हैं जो हर रोज पैदल चलने को मजबूर होते हैं.

सड़क बनाने को लेकर प्रशासन की कोशिश जारी 

इधर नक्सलियों के खौफ के चलते अंदरूनी इलाकों में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के 23 साल बाद भी सड़के नहीं बन पाई है. हालांकि पिछले 3 से 4 सालों से प्रशासन जरूर कोशिश कर रही है कि अंदरूनी इलाकों में सड़क बनाया जाए. ताकि यहां तक परिवहन सुविधा पहुंच सके. बीते साल ही बीजापुर से सिलगेर गांव तक यात्री बस सेवा की शुरुआत की गई है. जिसे अच्छा रिस्पांस भी मिल रहा है. वहीं दंतेवाड़ा से जगरगुंडा तक भी सड़क का निर्माण कार्य कराया जा रहा है. हालांकि यहां नक्सलियों की दहशत की वजह से इस सड़क को बनाने में काफी लंबा समय लग रहा है. इसके अलावा अंदरूनी इलाकों में ऐसे कई गांव हैं, जहां पर सड़क का काम शुरू ही नहीं हो पाया है. हालांकि पुलिस अधिकारी और जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि प्रशासन की टीम पूरी तरह से कोशिश कर रही है की अंदरूनी गांव तक सड़के बनाई जाए. ताकि इस क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को यात्री बस की सुविधा का लाभ मिल सके लेकिन इसके लिए ग्रामीणों को और इंतजार करना पड़ सकता है.

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