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बिहार: भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत...,कांग्रेस की नई रणनीति क्या है?

जिलाध्यक्षों की लिस्ट से साफ है कि बिहार में इस बार कांग्रेस सवर्णों की राजनीति पर मुख्य फोकस करना चाहती है. कांग्रेस इस बार बीजेपी की वोटबैंक के सेंधमारी के प्रयास में जुट गई है.

कांग्रेस ने बिहार में 39 नए जिलाध्यक्षों की लिस्ट जारी की है. इस लिस्ट में सबसे ज्यादा चेहरे, यानी 67% सवर्ण जाति के हैं, जिनमें 12 भूमिहार, 8 ब्राह्मण और 6 राजपूत बिरादरी के हैं. पार्टी ने 39 में से लगभग 25 जिलों की कमान अगड़ी जातियों को सौंपी है. इनमें पांच मुस्लिम  और सिर्फ दो महिलाएं हैं. 

लिस्ट से साफ है कि बिहार में इस बार कांग्रेस सवर्णों की राजनीति पर मुख्य फोकस करना चाहती है. कांग्रेस इस बार बीजेपी की वोटबैंक के सेंधमारी के प्रयास में जुट गई है.  

कांग्रेस के नए जिलाध्यक्षों की सूची को देखकर कहा जा सकता है कि इस बार जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में भूमिहारों और ब्राह्मणों को तरजीह दी गई है. सबसे ज्यादा 11 जिलों में भूमिहार को जिलाध्यक्ष बनाया गया है.

ऐसे में सवाल उठता है कि 6 फीसदी की आबादी वाले भूमिहार समाज पर कांग्रेस की नजर क्यों है? क्या कांग्रेस नया दांव खेलकर अगड़ी जातियों के अपने पुराने वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही है?

बिहार में कितना ताकतवर है भूमिहार समुदाय

बिहार में अगड़ी जाति की आबादी कुल आबादी का लगभग 18 प्रतिशत है, जिसमें से सबसे ज्यादा भूमिहार हैं. जिसका मतलब है कि राज्य में किसी भी पार्टी को अगर सवर्ण वोटरों को साधना है तो उन्हें भूमिहारों को अपने पाले में करना होगा. 

बिहार में 6 फीसदी भूमिहार समुदाय के वोटर हैं, 5.5  फीसदा ब्राह्मण और 5.5 फीसदी के करीब राजपूत हैं. इसके अलावा राज्य में सियासी तौर पर भूमिहार समाज काफी प्रभावी रहा है. बिहार में ज्यादातर जमीन जायदाद इसी समुदाय के पास होते हैं, जिसके कारण दूसरी जाति के वोटरों पर भी इनका प्रभाव है. भूमिहार समुदाय आजादी के बाद कांग्रेस का परंपरागत वोटर रहा, लेकिन जैसे ही बीजेपी का उदय हुआ, ये वोटर्स भारतीय जनता पार्टी के कोर वोट बैंक बन गए. 

बिहार में हुए पिछले कुछ लोकसभा और विधानसभा के चुनाव परिणाम को देखें तो पाएंगे की भूमिहार बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है. भूमिहार जाति के वोटर पटना, वैशाली, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, जहानाबाद, बेगूसराय, नवादा, सीतामढ़ी, आरा में जीत-हार की ताकत रखते हैं.

इन सीटों पर पहले भूमिहार जाति के उम्मीदवार लड़ते और जीतते रहे हैं. ऐसे में साल 2024 के चुनाव में बीजेपी हो या कांग्रेस, जेडीयू या आरजेडी इन सीटों पर भूमिहार वोटरों को साधने में लगी है. वर्तमान में बिहार विधानसभा के 243 में से 64 विधायक सवर्ण हैं, जिनमें से 21 भूमिहार हैं. 

कांग्रेस, बीजेपी समेत सभी पार्टियां भूमिहार समुदाय को दे रही भाव

सत्तारूढ़ गठबंधन में हुए बदलाव के बाद बिहार में भूमिहार समुदाय की राजनीतिक अहमियत बढ़ गई है. बीजेपी से लेकर कांग्रेस, जेडीयू, आरजेडी तक सभी पार्टियां अब भूमिहारों पर मेहरबान नजर आ रही हैं. दलित-अति पिछड़ा वोट बिखरने के बाद सभी राजनीतिक पार्टियों को ये साफ समझ आ गया है कि बिहार में सत्ता की कुर्सी बिना सवर्ण वोटों के संभव नहीं है. 

आरजेडी: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी के नेता लालू प्रसाद यादव ने इसी राज्य में कभी 'भू-रा-बा-ल साफ करो' का नारा दिया था, लेकिन उन्हीं लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव ने कई मौके पर भूमिहार समाज को गले लगाने की बात कही है. 

साल 2022 में तेजस्वी यादव ने कहा था कि भूमिहार समाज और यादव एकजुट हो जाएं तो कोई माई का लाल हरा नहीं सकता है. तेजस्वी यादव का ए टू जेड का फार्मूला बोचहां विधानसभा उपचुनाव में हिट भी रहा था और वह आने वाले लोकसभा चुनाव में इसी फॉर्मूला के साथ मैदान में उतरने की बात भी कर रहे थे.

जेडीयू: दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने भी भूमिहार समुदाय से आने वाले नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया था. 

कांग्रेस: कांग्रेस ने पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण की जगह भूमिहार समाज से आने वाले अखिलेश प्रसाद सिंह को बनाया है.

बीजेपी: नीतीश कुमार के साथ गठबंधन टूटने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने भी भूमिहार समुदाय के विजय कुमार सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी सौंपी थी. 

एलजेपी: इसके अलावा रामविलास की पार्टी एलजेपी के प्रमुख चिराग पासवान ने भी भूमिहार से संबंध रखने वाले डॉ अरुण कुमार को अपनी पार्टी में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया है. 

कांग्रेस को क्यों याद सवर्ण

बिहार में कांग्रेस का नेतृत्व शुरू से ही सवर्ण जातियों के हाथ में रहा है. बिहार के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों को पर नजर डालें तो जगन्नाथ मिश्र, एसएन सिन्हा, भागवत झा आजाद और बिंदेश्वरी दुबे सभी सवर्ण जातियों के थे.

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहते हैं कि साल 1950-1960 के दशक में सवर्ण जातियों के खिलाफ राजनीति में पिछड़ी जातियां कांग्रेस से दूर चली गई थीं. बिहार में कांग्रेस अगड़ी जातियों, दलितों और मुस्लिमों के बीच सिमटी हुई थी. अब कांग्रेस एक बार फिर अपने पुराने वोट बैंक को हासिल करना चाहती है. 

बिहार में कांग्रेस के वोट प्रतिशत का गिरता ग्राफ 

साल 2019 के हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बिहार में लगभग 8 प्रतिशत वोट और एक सीट पर जीत मिली थी. यह एक सीट थी सीमांचल की किशनगंज. यहां मुस्लिम वोटरों की आबादी सबसे ज्यादा है.

इससे पहले साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को बिहार की सिर्फ दो सीटों पर जीत मिल पाई थी और राज्य में लगभग 9 प्रतिशत वोट ही मिले थे.

इस राज्य में कांग्रेस ने आखिरी बार साल 1985 में अपनी सरकार बनाई थी, उस वक्त हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को 196 सीटों पर जीत मिली थी. इसके बाद बिहार में साल 1989 में हुए भागलपुर दंगे और 1990 में शुरू हुई 'मंडल' राजनीति ने कांग्रेस की जड़ें हिला दीं. मंडल की राजनीति के बाद राज्य में दलितों का वोट कई अन्य पार्टियों में बंट गया. जबकि कांग्रेस को मिलने वाले मुस्लिम वोट आरजेडी के पाले में चला गया और सवर्ण जातियों के वोट को बीजेपी ने अपने पाले में कर लिया. 

इन घटनाओं के बाद राज्य में साल 1990 में विधानसभा चुनाव हुए और उस वक्त कांग्रेस सिर्फ 71 सीटें जीतने में कामयाब हो  पाई और उसके बाद से बिहार में कांग्रेस का वोट प्रतिशत गिरता चला गया.

कांग्रेस का याद करना कितना फायदेमंद 

बीबीसी की एक रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार नवीन उपाध्याय का कहना है कि प्रदेश की अगड़ी जातियों के बीच आरजेडी को लेकर हमेशा एक संशय रहा है, ऐसे में अगर कांग्रेस सवर्ण जातियों को जगह देती है और उस समुदाय के बीच अपनी पकड़ बनाने में कामयाब होती है तो इसका फायदा महागठबंधन को भी हो सकता है.

बिहार में लगभग 13 प्रतिशत सवर्ण जातियों के वोटर हैं. वर्तमान में इन सभी का वोट बिखरा हुआ नहीं, ऐसे में यह वोट कई इलाकों में हार जीत का फैसला कर सकता है.

उत्तर बिहार की कई सीटों पर ब्राह्मण वोटर हार-जीत तय करते हैं. औरंगाबाद को चित्तौड़गढ़ में राजपूत वोटरों का दबदबा है, मुजफ्फरपुर और बेगूसराय में भूमिहार वोटर्स हार जीत का फैसला कर सकते हैं, जबकि पटना में कायस्थों का वोट निर्णायक होता है. 

वर्तमान में आरजेडी को यादव और मुस्लिमों दोनों ही समुदाय के ज्यादातर वोटर्स वोट बैंक देते हैं. जो लगभग 30 प्रतिशत वोट है, ऐसे में अगर नीतीश कुमार के साथ अगड़ी जातियों के कुछ वोट महागठबंधन की तरफ आ जाएं तो इसे हरा पाना असंभव हो जाएगा.

कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की सूची को लेकर बीजेपी ने क्या कहा? 

कांग्रेस के जिलाध्यक्षों की सूची को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पार्टी पर जमकर हमला बोला है. बीजेपी के वरिष्ठ नेता और नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि कांग्रेस बिहार जेडीयू और आरजेडी के एजेंडा पर चल रहे हैं और इन दोनों पार्टियों से जो कांग्रेस को डायरेक्शन मिलता है, पार्टी उसी हिसाब से चलती है. 

उन्होंने कहा कि कांग्रेस का बिहार में वोट कटवा के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. विजय सिन्हा आगे कहते हैं कि कांग्रेस को किसी भी जाति से सहानुभूति नहीं है. यह पार्टी सत्ता में रहने के लिए किसी से भी समझौता  कर सकती है और किसी को बाहर कर सकती है.

बीजेपी ने भी बदले थे बिहार, राजस्थान, ओडिशा और दिल्ली में अध्यक्ष

आने वाले लोकसभा चुनाव और इस साल कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने भी 23 मार्च को चार राज्यों में महत्वपूर्ण संगठनात्मक बदलाव किए थे. इस बदलाव के तहत पार्टी ने बिहार विधान परिषद में पार्टी के नेता सम्राट चौधरी को बिहार इकाई का अध्यक्ष बनाया है. 

अन्य पिछड़ा वर्ग यानी कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी बिहार के दिग्गज नेता रहे शकुनी चौधरी के पुत्र हैं. शकुनी चौधरी सात बार विधायक रहे हैं. सम्राट चौधरी बिहार बीजेपी अध्यक्ष के रूप में संजय जायसवाल की जगह लेंगे. जायसवाल ने नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष को बधाई दी और विश्वास व्यक्त किया कि उनके नेतृत्व में निश्चित ही संगठन नई बुलंदियों को प्राप्त करेगा.

कांग्रेस के नवनियुक्ति 39 जिलाध्यक्षों की लिस्ट

लखीसराय - अमरीश कुमार अनीस
शेखपुरा - सर्यजीत सिंह
जमुई - राजेंद्र सिंह
बेगूसराय - अभय कुमार सरजंत
नालंदा - लवि ज्योति
भोजपुर - अशोक राम
बक्सर - मनोज कुमार पांडेय
रोहतास - कन्हैया सिंह
कैमूर - सुनील कुशवाहा
गया - गगन कुमार मिश्रा
जहानाबाद - गोपाल शर्मा
अरवल- धनंजय शर्मा
औरंगाबाद - राकेश कुमार सिंह
नवादा - सतीश कुमार
सारण - अजय कुमार सिंह
वैशाली - मनोज शुक्ला
सिवान - बिदु भूषण पांडेय
शिवहर - नूरी बेगम

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