क्या है ताजिया, जानें कहां से हुई थी इसकी शुरुआत?
मोहर्रम के महीने का खास दिन अशुरा होता है, जो कि 10वें दिन पड़ता है. इस बार अशुरा 6 जुलाई को है. इस दिन लोग पैगंबर मोहम्मद साहब के नाती इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.
इमाम हुसैन 680 ई. में कर्बला की जंग में परिवार समेत शहीद हो गए थे. ताजिया को इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में बनाया जाता है.
प्रतीक के रूप में जो बड़ी-बड़ी कलाकृतियां बनाई जाती हैं, उसको ही ताजिया कहा जाता है. इसको बनाने में सोने, चांदी, लकड़ी, बांस, स्टील और पेपर का इस्तेमाल होता है.
मुहर्रम की दसवीं तारिख को ही इमाम हुसैन की याद में ताजिया निकाला जाता है. ताजिए की पहली परंपरा हिंदुस्तान में ही शुरू हुई थी.
14वीं शताब्दी में बादशाह तैमूरलंग के शासनकाल में 801 वीं हिजरी में भारत में पहला ताजिया बनाया गया था. तैमूर शिया संप्रदाय से ताल्लुक रखता था.
हर साल वो जियारत के लिए इराक के शहर कर्बला में जाता था. वो दिल का मरीज था तो हकीमों ने उसे लंबा सफर करने से मना कर दिया था.
तब उसके दरबारियों ने बादशाह को खुश करने के लिए बांस की किमचियों और रंगीन सामान से इमाम हुसैन का रोजा-ए-मुबारक तैयार किया था. उसी ने हर साल ताजिए बनाने शुरू किए और फिर यह परंपरा बन गई.