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चीन रूसी राष्ट्रपति पुतिन के कमजोर पर होने पर पाकिस्तान के लिए चल सकता है चाल?

फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले पुतिन बहुत ताकतवर नजर आ रहे थे. ऐसा लग रहा था कि वो एक विशाल और एकजुट प्रशासन की अगुवाई कर रहे थे, लेकिन अब पुतिन के सामने कई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं.

रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग को एक साल से ज्यादा का समय बीत चुका है. युद्ध के बीच रूस की वैगनर सेना ने रूसी रक्षा मंत्रालय के खिलाफ बगावत का ऐलान कर दिया. वैगनर ग्रुप के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन की इस बगावत ने न सिर्फ सिपहसालारों और रूस के शीर्ष रक्षा नेतृत्व के बीच बढ़ते और बेकाबू होते झगड़े को उजागर किया, साथ ही सत्ता में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की कमजोर स्थिति को भी उजागर करके रख दिया. 

दरअसल वैगनर ग्रुप के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन ने रक्षा मंत्री को उखाड़ फेंकने की धमकी दी और रूसी सेना के मुख्‍यालय रोस्‍तोव ऑन डॉन पर कब्‍जे के बाद अपने लड़ाकों को मास्‍को की तरफ कूच की घोषणा कर दी. इस पर राष्‍ट्रपति व्‍लादिमीर पुतिन गुस्‍सा हुए. पुतिन ने प्रिगोझिन पर रूस को धोखा देने का आरोप भी लगाया. इस समूह को सजा देने का वादा भी किया. रूस के रक्षा मंत्रालय ने प्रिगोझिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. 

इस टकराव के महज 36 घंटे ही बीते थे कि प्राइवेट आर्मी चलाने वाले प्रिगोझिन ने एक समझौते पर सहमति जता दी. समझौते के तहत प्रिगोझिन रूस छोड़कर बेलारूस चले जाएंगे. सहमति के बाद ये कहा गया कि अब प्रिगोझिन पर कोई मुकदमा नहीं चलाया जाएगा. उनके भाड़े के सैनिकों पर भी कोई केस नहीं होगा. ये भी कहा गया कि कुछ लोग नियमित रूसी सशस्त्र बलों में शामिल होना चाहें तो अनुबंध पर हस्ताक्षर कर सकते हैं. 

प्रिगोझिन की वैगनर सेना ने जिस तरह रूस के दक्षिणी शहर रोस्तोव-ऑन-डॉन के महत्वपूर्ण सैन्य मुख्यालय पर कब्जा करने की धमकी दी और मॉस्को की तरफ एक “न्याय का मार्च” की शुरुआत की.  इस सब के बाद पुतिन को राजनीतिक और आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा. लेकिन पुतिन ने दावों के बावजूद वैगनर सेना की इस बगावत को कुचलने के बजाय वैगनर से समझौता कर लिया. प्रिगोझिन ने इससे पहले शनिवार को रूस के शीर्ष सैन्य नेतृत्व को बर्खास्त करने की मांग की थी. प्रिगोझिन ने रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु और चीफ ऑफ जनरल स्टाफ को “बूढ़ा जोकर” भी कहा. 

इस घटनाक्रम के बाद पुतिन ने एक युद्ध को टाल जरूर दिया है, लेकिन पुतिन इस सवाल से बच नहीं सकते हैं  कि अपने सुरक्षा दायरे में चल रहे झगड़े को किस तरह सार्वजनिक रूप से बदनाम होने में रोक नहीं पाए. 

बता दें कि रूस के रक्षा मंत्रालय और वैगनर के बीच प्रतिद्वंद्विता बहुत पुरानी है. फरवरी के बाद से प्रिगोझिन ने रक्षा मंत्रालय पर भ्रष्टाचार और अक्षमता का आरोप लगाते हुए लगातार हमला बोला है. इस मामले पर पुतिन ने कभी कोई जवाब नहीं दिया.

समझिए वैगनर ने बगावत क्यों की

वैगनर प्रमुख के लड़ाके अब तक यूक्रेन की लड़ाई में रूस का साथ दे रहे थे. अब उन्होंने अपने हथियारों से रूसी सैनिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है. वैगनर का ये मानना है कि रूसी सेना ने उनके ट्रेनिंग सेंटर पर मिसाइल से हमले किए हैं. प्रिगोझिन बखमुत में हुए अत्यधिक नुकसान के लिए भी रक्षा प्रतिष्ठान को दोषी ठहराया है. 

दरअसल वैगनर ने कुछ दिन पहले बखमुत पर कब्जा किया था. बखमूत यूक्रेन का एक शहर है. इस कब्जे के कुछ दिनों बाद रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने सभी अर्धसैनिक बलों को रक्षा मंत्रालय के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा. प्रिगोझिन ने इसे वैगनर को खत्म करने के एक प्रयास के रूप में देखा. यही उनके बगावत की वजह बनी. 

रूस में हुए बगावत से क्या भारत पर कोई असर पड़ेगा

फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले पुतिन बहुत ताकतवर नजर आ रहे थे. ऐसा लग रहा था कि वो एक विशाल और एकजुट प्रशासन की अगुवाई कर रहे थे और विदेशों में रूस के प्रभाव का विस्तार कर रहे थे. इस युद्ध के सोलह महीने बाद रूस ने यूक्रेन की कई जगहों पर कब्जा भी कर लिया लेकिन अब इन इलाकों में भी पुतिन के सामने कई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं. उन्होंने भले ही अपने सेनापतियों और सिपहसालारों के बीच अस्थायी शांति बहाल कर दी हो, लेकिन इस बगावत के पीछे की वजहों का अभी भी कोई स्थायी हल नहीं निकल पाया है.

अगर पुतिन स्थिरता चाहते हैं, तो उन्हें पहले युद्ध खत्म करना चाहिए और अपने घर को व्यवस्थित करना चाहिए. इस सब के बीच एक सवाल ये पैदा होता है कि पुतिन के कमजोर होने से भारत और रूस के रिश्तों पर क्या असर हो सकता है? यूक्रेन युद्ध के बाद रूस चीन पर निर्भर कर रहा था, अब क्या अपने ही देश में कमजोर होते पुतिन भारत के लिए फायदेमंद साबित होंगे?

द हिंदू में छपी एक खबर के मुताबिक इस नाटकीय घटनाक्रम के बाद रूस से भारत के लिए दो उच्च-स्तरीय फोन कॉल आए हैं. पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन से बात की. बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक बार फिर 'वार्ता और कूटनीति' का आह्वान किया. पीएम मोदी ने 4 जुलाई को होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) वर्चुअल शिखर सम्मेलन का भी जिक्र किया था. 

द हिंदू में छपी खबर की मानें तो वैगनर विद्रोह के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने अपने समकक्ष निकोलाई पत्रुशेव से बात की. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत और रूस के संबध को बेहतर बनाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि रूस में आपसी संघर्ष के बावजूद सबकुछ स्थिर रहा है.

न्यू यॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक भारत ने अपने भू-राजनीतिक लाभ के लिए रूस से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. भारत कभी भी अपने आर्थिक फायदे को नजरअंदाज नहीं करेगा. लेकिन कमजोर होने की स्थिति में रूस चीन पर और ज्यादा निर्भर होता है तो ये बहुत ही खतरनाक होगा. 

हाल ही में पीएम मोदी अमेरिकी दौरे से वापस आए थे. साफ है कि भारत अमेरिका के साथ बेहतर संबध बनाने के लिए आगे बढ़ रहा है. वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका रूस के खिलाफ वैश्विक दबाव को तेज करना चाहता है. अगर पुतिन कमजोर पड़ते हैं तो अमेरिका रूस पर और दबाव बनाना शुरू कर देगा. लेकिन भारत अभी से रूस के साथ संबध खराब नहीं कर सकता है. वहीं रूस को को अन्य मुद्दों, खासकर चीन को रोकने की अमेरिकी रणनीति पर भारत की जरूरत है.

क्या रूस चीन पर निर्भर हो जाएगा 

कई विशेषज्ञ इस बात को मान रहे हैं कि यूक्रेन युद्ध के बाद रूस चीन पर ज़्यादा निर्भर हो गया है और भारत के लिए स्थिति ज़्यादा जटिल हो गई है. अब जिस तरह से आंतरिक कलह के बीच पुतिन एक कमजोर नेता बन कर उभरे हैं उससे कहीं न कहीं रूस चीन पर और निर्भर हो सकता है जो भारत के लिए ठीक नहीं होगा. 

कई जानकार ये मान रहे थे कि रूस यूक्रेन से जंग जीते या हारे इसका असर ये जरूर होगा कि रूस कमजोर बन कर सामने आएगा. रूस एक  विशाल देश है, इस देश की कमान उस व्यक्ति के हाथ में है, जो बिल्कुल ही सच से मुँह मोड़कर बैठा है. यूक्रेन को पुतिन ने नाक का सवाल बना दिया है और अपने ही देश के अंदर जंग करा बैठे. 

बीबीसी में छपी एक खबर के मुताबिक मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट फोर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनलिसिस में यूरोप एंड यूरेशिया सेंटर की असोसिएट फेलो डॉ स्वास्ति राव कहती हैं, 'रूस हमेशा से चीन का जूनियर पार्टनर रहा है. और फिल्हाल वो मजबूरी में तेल चीन, भारत और तुर्की को सस्ते में बेच रहे हैं . पुतिन की यह मजबूरी आने वाले वक़्त में और बढ़ेगी. यूक्रेन युद्ध के बाद रूस अपना तेल खपाने के लिए चीन को औने-पौने दाम में देंगे.

स्वस्ति राव कहती हैं, ''यूक्रेन संकट के बाद जिस तरह से रूस  कमज़ोर हुआ है और चीन पर निर्भर हो रहा है वो भारत के लिए बेहद ही खतरनाक स्थिति ला सकती है. भारत की रणनीतिक स्वायत्तता में रूस का मज़बूत होना बेहद ज़रूरी है. इतिहास में जब भी भारत और चीन का आपसी संकट बढ़ा है तो रूस ने इसे मैनेज किया है. इस मामले में रूस से ज़्यादा भरोसेमंद भारत के लिए कोई नहीं था. रूस की निर्भरता चीन पर बढ़ेगी तो वह भारत के हितों का ख़्याल नहीं रख पाएगा. 

बीबीसी की खबर के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में मध्य-एशिया और रूसी अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ राजन कुमार कहते हैं, ''कमजोर और चीन पर ज़्यादा निर्भर रूस भारत के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है. इसका मतलब यह होगा कि चीन की हर बात मानने पर रूस मजबूर होगा और वह पाकिस्तान को भी साथ देने के लिए कह सकता है.

 

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