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ब्रिटेन का पीएम बनने के बाद भी ऋषि सुनक की राहें नहीं होंगी आसान

ब्रिटेन मंदी और बढ़ती ब्याज दरों से जूझ रहा है. ऐसे वक्त में ऋषि सुनक प्रधानमंत्री पद संभालने जा रहे हैं. वह 28 अक्टूबर को शपथ ले सकते हैं. उनके सामने चुनौतियां का पहाड़ है. जिसे उन्हें पार करना है.

कंजर्वेटिव पार्टी का नेतृत्व करने की दौड़ जीतने के बाद ऋषि सुनक ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बने हैं. उनकी प्रतिद्वंद्वी पेनी मॉरडॉन्ट को कंजर्वेटिव पार्टी के सांसदों का पर्याप्त समर्थन न मिलने की वजह से उन्होंने अपनी दावेदारी वापस ले ली. पीएम पद पर पहुंचे ऋषि सुनक के लिए आगे की राह आसान होने की कम ही संभावनाएंं हैं. अभी भी ब्रिटेन के राजनीतिक और आर्थिक संकट से घिरे रहने के आसार हैं और यही चुनौतियां ब्रिटेन के नए पीएम का इंतजार कर रही हैं. नए ब्रितानी सबसे युवा प्रधानमंत्री के सामने सबसे मुश्किल चुनौती ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की है. सुनक ने भी माना है कि आर्थिक मोर्चे पर तुरंत एक्शन लेने की जरूरत है.

कैसे शुरू हुआ सब

यह सब तब शुरू हुआ जब लिज़ ट्रस सरकार ने अपना "मिनी-बजट" पेश किया. इसमें, वह और उनकी चांसलर यानी वित्त मंत्री चांसलर क्वाज़ी क्वार्टेंग ने 'मिनी बजट' का एलान किया. ये बजट केवल इन दोनों के बीच में ही रहा. बाद में ट्रस ने ये स्वीकारा था कि उन्होंने कैबिनेट के बाकी सदस्यों को इसमें कभी शामिल नहीं किया था.

ट्रस के इस बजट में  सरकारी खर्चें बढ़ाने और सरकारी करों को कम करने की उग्र योजना थी. इसका मकसद लोगों को महंगाई से राहत देने और  देश की रुके हुए आर्थिक विकास में गति लेना था. हालांकि ये योजना उल्टी पड़ गई. इसमें  45 अरब की टैक्स कटौती के बारे बात की गई थी.

इससे बाज़ार अस्थिर हो गया और इसने ब्रिटेन में लगभग वित्तीय मंदी के हालात पैदा हो गए.बजट की ये असफलता पहले से तय ही थी और अचानक नहीं आई थी. ऋषि सुनक को हराकर प्रधानमंत्री के तौर पर बोरिस जॉनसन की जगह लेने वाली लिज ट्रस को सुनक ने बार-बार अपव्ययी  कर कटौती और खर्च में बढ़ोतरी के  खिलाफ चेताया था.

एक बहस के दौरान सुनक ने कहा, “महंगाई से निकलने के लिए उधार का रास्ता अपनाना कोई योजना नहीं है; यह एक परीकथा जैसी कल्पना है." सुनक ने सही कहा था और ये परीककथा नहीं बल्कि बुरा सपना साबित हुआ और  इतना डरावना कि इससे न केवल क्वाज़ी क्वार्टेंग की नौकरी चली गई, बल्कि ट्रस को भी पीएम पद से हाथ धोना पड़ा. अब वह ब्रिटेन के इतिहास में तीन शताब्दियों में सबसे कम वक्त तक पीएम रहने वाली प्रधानमंत्री के तौर पर याद की जाएंगी.

ये हैं राजनीतिक चुनौतियां

बोरिस जॉनसन ब्रिटेन के बदनाम पूर्व पीएम के तौर पर मशहूर हैं. उन्हें जुलाई में 2020 में कोविड लॉकडाउन के दौरान एक पार्टी में भाग लेने और बाद में इस बारे में झूठ बोलने की वजह से  बर्खास्त कर दिया गया था. भारतीय  के समय के अनुसार सोमवार की सुबह जॉनसन ने पीएम पद की दौड़ से से बाहर रहने का फैसला लिया था.

मुकाबला पेनी मॉरडॉन्ट और ऋषि सुनक के बीच रहा था, लेकिन इसमें भी सुनक बाजी मार ले गए. सुनक को सीधे और ईमानदार तरीके से बात रखने वाले एक  सक्षम आर्थिक नीति निर्माता के तौर पर  देखा जाता है. इस वक्त यूके को ठीक इसी तरह के लीडर की जरूरत भी है. वह इस देश के अश्वेत पीएम है.

ब्रिटेन के पहले गैर-श्वेत प्रधानमंत्री के तौर पर पद संभालने की वजह से देश की आम जनता के बीच कुछ संदेह या दुराग्रह हो सकता है. सुनक 2019 के चुनावी जनादेश को बनाए रखने के लिए टोरीज़ के चुने गए पीएम पद का दूसरा रिप्लेसमेंट हैं. इसे यूके में कई लोग इसे  लोकतंत्र के तमाशे के तौर पर देखते हैं.

ट्रस का देश की अर्थव्यवस्था को लेकर किया गया प्रयोग साफ तौर पर त्रासदी है. दूसरे शब्दों में सुनक की जीत के बावजूद, कंजर्वेटिव पार्टी का भाग्य अभी भी खतरे में है. ये केवल ट्रस की पॉलिसी से आए आर्थिक संकट की वजह से नहीं है बल्कि विश्वसनीयता के राजनीतिक संकट (या इसकी कमी) की वजह से है, जिसका सामना टोरीज़ कर रहे हैं. 

ऋषि सुनक की राजनीति में पहली चुनौती कंजर्वेटिव पार्टी को काबू करने की है. भले ही ब्रितानी संसद में इस पार्टी का बहुमत सबसे अधिक हैं, लेकिन इसमें एकजुटता नहीं है. सांसद ब्रेग्जिट जैसे मुद्दों पर अलग-अलग सोच रखते हैं. ऋषि सुनक ने ब्रेग्जिट के समर्थन में थे, लेकिन पार्टी के कुछ लोगों यूरोपीय संघ के प्रति नरम हैं. सुनक को उत्तरी आयरलैंड संग कारोबार के अहम मुद्दे पर ब्रुसेल्स के साथ चल रही बातचीत पर भी दबाव झेलना पड़ सकता है. 

आर्थिक परेशानियां भी कम नहीं

1- निकट भविष्य में यूके की अर्थव्यवस्था के सामने अहम चुनौती व्यापार की शर्तें हैं. यहां निर्यात की तुलना में आयात की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है. इसका असर है कि यहां महंगाई बढ़ रही है और घरेलू आय में कमी आ रही है. आशंका है कि इसका असर आने वाले वर्षों में घरेलू और कॉर्पोरेट दोनों क्षेत्रों में देखने को मिलेगा. अहम सवाल ये है कि इस नुकसान की भरपाई कैसे की जाएगी.

2. सामानों की बढ़ती लागत का ये झटका उन परिवारों पर असर करेगा जो इसे सहन करने के सबसे कम काबिल हैं.मध्यम अवधि में गिरवी लागत (Mortgage Costs) में तेज बढ़ोतरी किसी भी उपभोक्ता वसूली को 2024 तक ले जा सकती है. यानी उसी साल वसूली करना असंभव होगा. 

3. ब्रिटेन मंदी और बढ़ती ब्याज दरों से त्रस्त है. बैंक ऑफ इंग्लैंड महंगाई पर काबू पाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. ब्रितानी चीजों की बढ़ती लागत और कम होती आमदनी की परेशानी झेल रहे हैं. सुनक के सामने सबसे बड़ी चुनौती बजट को संतुलन में लाने और खर्चों में कटौती करने की है. 

4. ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था के आपूर्ति पक्ष में कमजोरी अब एक तत्काल चिंता का विषय है. जबकि उत्पादन कोविड महामारी से पहले के ट्रेंड से भी 2.6 फीसदी कम है. 

5. मांग गिरने से निकट भविष्य में बेरोजगारी बढ़ने की आशंका है. 

7. महंगाई  बढ़ने की उम्मीद है. भले ही इसके अपने चरम (12 फीसदी) से गिरने की उम्मीद हो, लेकिन इसके 2023 के दौरान अधिकतम स्तर पर रहने की आशंका है. 

परेशानी बढ़ाने वाले हैं हालात

आईएफएस रिपोर्ट आखिर  में यही कहती है जो किसी भी ब्रिटिश नीति निर्माता के लिए सबसे अधिक चिंताजनक है.आईएफएस के मुताबिक," ब्रिटेन की आर्थिक नीति एक ओर खुद फैलाई गई मंदी के खतरे और दूसरी ओर महंगाई को डी-एंकरिंग करने के जोखिम के बीच एक मुश्किल लेन-देन के नुकसान पहुंचाने वाले रास्ते पर चल रही है." डी-एंकरिंग का मतलब है कि कम वक्त में कीमतों के बढ़ने के झटके लंबी अवधि की उम्मीदों को बदल सकते हैं.

सीधे शब्दों में कहें, तो एक तरफ खुदरा महंगाई दर दोहरे अंकों में होने से जीवन यापन का संकट है. दूसरी ओर रुकी हुए आर्थिक विकास की समस्या है, जो बदले में कम राजस्व और उच्च ऋण की तरफ ले जाती है. परेशानी  यह है कि सरकार महंगाई को काबू करने के लिए खर्च पर अंकुश लगाती है. यह कदम आर्थिक विकास की गति को और कम करता है.

ब्याज दरों को कम रखने और सरकारी खर्च को बढ़ा कर विकास को बढ़ावा देने की किसी भी कोशिश से महंगाई वाले हालात और बिगड़ते हैं. इससे लोगों की खरीदने की ताकत कम होती है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ऋषि सनक इस तरह के हालातों में किस नीतिगत प्रतिक्रिया का चुनाव करते हैं.

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