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Liz Truss Resigns: महज 45 दिनों में आउट हुईं ब्रिटिश पीएम लिज ट्रस, एक बार फिर रेस में आए ऋषि सुनक और बोरिस जॉनसन

Britain Political Crisis:: ब्रिटेन की प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने डॉलर के मुकाबले गिरते पाउंड और बढ़ती महंगाई के बीच इस्तीफा दे दिया. इसके बाद चर्चा शुरू हो गई कि अगला पीएम कौन होगा?

Liz Truss Resigns: महज 45 दिन, चूक भरे आर्थिक फैसले और अहम सिपहसालारों के इस्तीफों ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री की कुर्सी पर लिज ट्रस की पारी को समेट दिया. ट्रस नए प्रधानमंत्री के पद संभालने तक फिलहाल कार्यवाहक पीएम बनी रहेंगी, लेकिन उनके इस ऐलान ने तेजी से बढ़ती सर्दियों और आसमान छूती गैस की कीमतों से जूझते ब्रिटेन के लिए सियासी संकट गहरा दिया है.

अपने इस्तीफे का ऐलान करते हुए लिज ट्रस ने माना कि वो अपने जनादेश को निभाने में सक्षम नहीं हैं और इसीलिए वह इस्तीफा दे रहीं हैं. साथ ही उन्होंने यह भी घोषणा की कि, अगले एक हफ्ते में कंजरवेटिव पार्टी नए नेता का चुनाव कर लेगी. हालांकि इस बीच विपक्षी लेबर पार्टी ने इसे शर्मनाक स्थिति बताते हुए फौरन चुनाव कराए जाने की मांग की है.

बोरिस जॉनसन की हैं करीबी
कंजरवेटिव पार्टी में लिज ट्रस के मुकाबले दूसरे स्थान पर रहे ऋषि सुनक की मजबूत दावेदारी से लेकर पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की एक बार फिर पीएम पद पर वापसी तक हर संभावना पर बात हो रही है. वैसे भी ट्रस पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की करीबी मानी जाती हैं. अक्टूबर 28 तक आंतरिक चुनाव की कवायद से नेता के चुनाव पर तस्वीर साफ हो जाएगी, लेकिन इतना तय है कि ब्रिटेन की सरकार और उसका खजाना दो महीने के बाद और कमजोर स्थिति में खड़ा नजर आ रहा है.

क्यों कहा था योद्धा हूं?
ब्रिटेन की सबसे कम समय तक पीएम की जिम्मेदारी निभाकर इस्तीफा देने का तमगा लेकर लौट रही ट्रस ने महज एक दिन पहले ही संसद में कहा था कि वो योद्धा हैं और इस्तीफा नहीं देंगी, लेकिन केवल 24 घंटे में तस्वीर बदल गई. उन्हें 10 डाउनिंग स्ट्रीट के आधिकारिक आवास के बाहर लगे मीडिया कैमरों के आगे आकर अपने इस्तीफे का ऐलान करना पड़ा.

लिज ट्रस ने क्यों दिया इस्तीफा?
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि ट्रस को इस्तीफा देना पड़ा? इसकी जड़ में कुछ पुराने तो कुछ नए कारण हैं. उन्हें यह कुर्सी बोरिस जॉनसन के इस्तीफे का साथ मिली, जो जून से जुलाई 2022 के बीच पार्टीगेट और क्रिस पिंचर विवाद जैसे मामलों से घिरे थे. साथ ही ब्रिटेन में चढ़ती महंगाई और आर्थिक नीतियों को लेकर बढ़ती नाराजगी ने जॉनसन के कार्यकाल का रास्ता रोक दिया. ऐसे में एक लंबी आंतरिक चुनावी कवायद के बाद सितंबर 5 को लिज ट्रस ने भारतीय मूल के ऋषि सुनक को हराकर कंजरवेटिव पार्टी का मुखिया पद जीता और पीएम बनीं.

लिज़ ट्रस के पीएम बनने के महज दो दिनों के भीतर ही ब्रिटेन को बड़ा आघात लगा और उन्हें नियुक्त करने वाली महारानी एलिजाबेथ का निधन हो गया. ऐसे में बतौर पीएम ट्रस की पहली बड़ी जिम्मेदारी तो महारानी एलिजाबेथ के अंतिम संस्कार की ही थी, जिसके लिए दुनिया के कई देश के प्रमुख ब्रिटेन पहुंचे थे.

मिनी बजट में क्या था?
शोक काल से उबरने के बाद लिज ट्रस सरकार ने 23 सितंबर को अपना पहला मिनी बजट पेश किया. मगर इसके सामने आते ही इसे राहत के मलहम की बजाय महंगाई का बम करार दे दिया गया. इसमें ऊर्जा संकट से निपटने के लिए अगले 6 महीने के दौरान 60 अरब पाउंड की एनर्जी स्कीम का ऐलान किया, लेकिन यह साफ नहीं किया कि वो इसके लिए धन कहां से जुटाएंगी.

उनकी सरकार ने टैक्स में कटौती की घोषणा कर अर्थव्यवस्था को राहत देने का वादा तो किया, लेकिन इसके लिए बड़े पैमाने पर कर्ज का सहारा लेने का भी ऐलान किया. ऐसे में जाहिर तौर पर टैक्स कटौती का अधिक फायदा धनिक वर्ग के लिए ही था. इसके चलते जहां बाजार में डॉलर के मुकाबले पाउंड कमजोर होता गया वहीं लोगों की नाराजगी भी बढ़ती गई.

इस दबाव का ही नतीजा था कि 3 अक्टूबर को पीएम लिज ट्रस और उनके वित्त मंत्री क्वासी क्वारटेंग को मिनी बजट में धनिकों के लिए पेश टैक्स कटौती दरों को वापस लेना पड़ा. हालात को संभालने के लिए उन्होंने 5 अक्टूबर को अपने भाषण में "विकास..विकास..और विकास" के एजेंडा को बढ़ाने की बात भले ही की, लेकिन लोगों का भरोसा जीतने में नाकाम ही रहीं.

इस बीच 14 अक्टूबर को ट्रस ने अपने वित्तमंत्री क्वासी की छुट्टी कर दी. उनके बदले जैरेमी हंट को खजाने की चाबी सौंपी गई, लेकिन इस झटके से ट्रस सरकार संभल पाती उसके पहले ही 19 अक्टूबर को उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया. भारतीय मूल की सुएला ने यूं तो माइग्रेशन मामले पर एक मंत्री वक्तव्य को निजी ईमेल से संसदीय सहयोगी को भेजे जाने को चूक मानते हुए अपना इस्तीफा दिया, लेकिन इसके पीछे सुएला के भारत के साथ एफटीए वार्ताओं को लेकर दिए विवादास्पद बयानों और कंजरवेटिव पार्टी के भीतर बढ़ती नाराजगी के साथ जोड़कर भी देखा जा रहा था. ब्रिटिश इतिहास में यह संभवतया पहली स्थिति है, जिसमें राजशाही और सरकार दोनों के शीर्ष पदों पर इतने कम समय में बदलाव हुआ है.

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