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4 करोड़ उपभोक्ता और 8 राज्यों का रिकॉर्ड..., LPG सिलेंडर का दाम घटाकर 'रेवड़ी पॉलिटिक्स' में क्यों कूदी बीजेपी?

प्रधानमंत्री रेवड़ी पॉलिटिक्स को देश के लिए खतरनाक बता चुके हैं. लेकिन अब खुद बीजेपी मुफ्त घोषणाओं का पुलिंदा लेकर राजीनति मैदान में कूद गई है. सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर वजह क्या है?

लोकसभा और 4 राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले मुफ्त वादों की झड़ी लग गई है. सियासी रेवड़ी बांटने में राज्य के साथ-साथ केंद्र भी पीछे नहीं है. मोदी कैबिनेट ने एलपीजी गैस सिलेंडर की कीमतों में 200 रुपए की कटौती का ऐलान किया है. कहा जा रहा है कि केंद्र की ओर से मुफ्त राशन को लेकर भी जल्द ही बड़ा ऐलान किया जा सकता है.

चर्चा पेट्रोल-डीजल के दामों में कटौती होने की भी है. कर्नाटक चुनाव से पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 5-5 रुपए की कटौती की गई थी. चुनावी साल में केंद्र के ऐलान ने राजनीति सरगर्मी भी बढ़ा दी है. विपक्षी पार्टियों ने प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा है.

आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा- यह तय हो गया है कि कीमतें सिर्फ बाजार तय नहीं करती है. सरकार अपने हिसाब से दामों को बढ़ा और घटा सकती है. अधिकांश विपक्षी दलों का कहना है कि फैसला चुनाव को देखते हुए लिया गया है.

सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा तेज हो गई है कि फ्रीबीज का विरोध करने वाली बीजेपी चुनाव से पहले आखिर इस तरह का ऐलान क्यों कर रही है?

रेवड़ी पॉलिटिक्स में BJP की एंट्री
प्रधानमंत्री रेवड़ी पॉलिटिक्स को देश के लिए खतरनाक बता चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र ने हलफनामा दाखिल कर विरोध जताया था, लेकिन अब खुद बीजेपी मुफ्त घोषणाओं का पुलिंदा लेकर राजीनति मैदान में कूद गई है.

केंद्र और राज्य स्तर पर बीजेपी ने अभी तक निम्न फ्रीबीज की घोषणा की है.

- गैस सिलेंडर खरीदने पर 200 रुपए की कटौती का ऐलान. पेट्रोल-डीजल के दामों में भी कमी करने की तैयारी

- मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना योजना के तहत महिलाओं को हर महीने दे रहे हैं 1250 रुपए

- मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने 78 हजार छात्रों को लैपटॉप खरीदने के लिए मुफ्त राशि प्रदान की है.

- मध्य प्रदेश सरकार ने केंद्र की तर्ज पर किसानों को हर साल 2000 रुपए देने का ऐलान किया है.

- शिवराज सिंह चौहान ने शहरी क्षेत्र में भी जमीन का पट्टा बांटने की घोषणा की है. 15 अगस्त के मंच से शिवराज ने कहा- माफियाओं से जो जमीनें मुफ्त कराई गई है, वो सभी गरीबों को दिया जाएगा.

फ्रीबीज के मैदान में क्यों कूदी बीजेपी?

1. जिन राज्यों में चुनाव, वहां 4 करोड़ उपभोक्ता- एलपीजी सिलेंडर के दामों में कटौती को चुनावी कनेक्शन से जोड़ने के पीछे इसके उपभोक्ताओं की संख्या है. पेट्रोलियम मंत्रालय के मुताबिक राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गैस उपभोक्ताओं की संख्या करीब 4 करोड़ हैं.

मंत्रालय के मुताबिक मध्य प्रदेश में 1.66 करोड़, छत्तीसगढ़ में 59 लाख और राजस्थान में 1.75 करोड़ एलपीजी गैस के घरेलू उपभोक्ता हैं. बात तेलंगाना की करें तो यहां पर घरेलू गैस के 1.20 करोड़ उपभोक्ता हैं.

गैस सिलेंडर की कीमतों में कटौती का फायदा उज्जवला स्कीम के लाभार्थियों को भी मिलेगा. केंद्र के मुताबिक मध्य प्रदेश में 71 लाख, राजस्थान में 63 लाख, तेलंगाना में 10 लाख और छत्तीसगढ़ में 29 लाख उज्जवला लाभार्थी हैं. यानी यह संख्या भी 1.73 करोड़ है.

उज्जवला योजना के लाभार्थियों को एक सिलेंडर खरीदने पर पहले से 400 रुपए कम देने होंगे. 

2. 8 राज्यों में सफल रहा है रेवड़ी पॉलिटिक्स- फ्रीबीज जीत का अजमाया हुआ फॉर्मूला है. 2020 के बाद से अब तक 8 राज्यों के चुनाव में मुफ्त वादे गेमचेंजर साबित हुआ है. 2020 के दिल्ली चुनाव में आप ने फ्री बिजली और फ्री पानी देने का ऐलान किया था, जिसने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इसी तरह पंजाब के चुनाव में भी आप का फ्री बिजली का दांव काम कर गया. यूपी चुनाव 2022 में बीजेपी ने महिलाओं को साल में 2 मुफ्त गैस सिलेंडर देने का ऐलान किया था. बंगाल चुनाव में तृणमूल का घर-घर राशन स्कीम का जादू चल गया और तीसरी बार ममता सरकार बनाने में कामयाब रही.

हाल के कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस के 5 गारंटी स्कीम ने बीजेपी के सत्ता वापसी के अभियान पर पानी फेर दिया. कांग्रेस हिमाचल में भी मुफ्त वादों के सहारे सरकार में आ चुकी है.

3. जनता पर सीधा करता है असर, इसलिए घोषणा की होड़- अमेरिकी समाजशास्त्री और ड्यूक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डैन एरीली ने फ्रीबीज पर अखबार वाल स्ट्रीट जनरल में विस्तार से लिखा है. फ्रीबीज के फैसले को एरीली मनोविज्ञान से जोड़ते हैं.

एरीली के मुताबिक मुफ्त वादे कीमत से ज्यादा भावनाओं से जुड़ा हुआ होता है, इसलिए लोगों पर यह सीधा और तुरंत असर करता है. 

एरीली अपने लेख में लिखते हैं- चुनाव के दौरान मुफ्त वादे के बारे में सुनने के बाद लोगों के व्यवहार का पैटर्न बदल जाता है और उनका किसी एक पक्ष की ओर झुकाव बढ़ता है.

नोबेल अर्थशास्त्री अभिजीत भट्टाचार्य के मुताबिक फ्रीबीज गलत है, यह सब जानते हैं, लेकिन चुनाव के दौरान कोई इससे चूकना नहीं चाहते हैं. राजनीतिक दलों की कोशिश रहती है कि मुफ्त वादों के जरिए अधिक से अधिक लोगों को साधा जा सके. 

रेवड़ी कल्चर क्या है, चुनाव आयोग का स्टैंड जानिए

फ्रीबीज यानी मुफ्त चुनावी वादे का पहला प्रयोग अमेरिका में 1920 के दशक में हुआ था. फ्रीबीज को ही रेवड़ी कल्चर कहते हैं. फ्रीबीज का मतलब होता है- कोई ऐसी चीज जो आपको मुफ्त में दी जाती है. 

कई बार फ्रीबीज और वेलफेयर स्कीम्स से काफी अलग होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव से पहले होने वाले हर घोषणा को फ्री स्कीम्स की श्रेणी में रखा जा सकता है. क्योंकि इसका सीधा असर चुनाव पर पड़ता है. वेलफेयर स्कीम्स सरकार बनने के बाद लागू की जाती है.

भारत में फ्रीबीज की कोई आधिकारिक परिभाषा तय नहीं है. यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के पास है. सुप्रीम कोर्ट के समकक्ष अगस्त 2022 में चुनाव आयोग ने एक हलफनामा दाखिल किया था.

आयोग के मुताबिक फ्रीबीज की कोई स्पष्ट कानूनी परिभाषा नहीं है. आयोग ने कहा था कि समय और काल के हिसाब से फ्रीबीज की परिभाषा बदल जाती है.

आयोग ने उदाहरण देते हुए कहा था- प्राकृतिक आपदा या महामारी के दौरान जब जीवन रक्षक दवा, खाना या पैसा दिया जाता है, तो इसे लोगों के रक्षा का जरिया माना जाता है, लेकिन आम दिनों में अगर ये दिए जाएं तो इन्हें फ्रीबीज कहा जाता है.

हालांकि, कोर्ट ने फ्रीबीज को लेकर आयोग के ढील-ढाल रवैए की काफी आलोचना की थी.

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