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अमावस्या को चांद की पूजा के बाद करते हैं लूट, डंडे के वार से बहाते हैं खून, जानें बावरिया गैंग की पूरी कहानी

बावरिया गैंग चोरी, डकैती और लूटपाट जैसी वारदातों को अंजाम देने से पहले अमावस्या के चांद की पूजा करते हैं. इनके निशाने पर शहरों के बाहरी इलाकों में रहने वाले रईस होते हैं.

7 जून, 1995 को तमिलनाडु के वेलोर जिले के वलाजपेट में रहने वाले एम. मोहन कुमार के घर से बावरिया गैंग के लोग 50,000 रुपये की कीमत के जेवर, कैश और अन्य सामान लूटकर ले गए. उन्होंने घर के सदस्यों की मौजूदगी में इस वारदात को अंजाम दिया, जिसमें मोहन कुमार की हत्या कर दी और उनकी पत्नी और बच्चे बुरी तरह जख्मी हो गए. बावरिया गैंग इसी तरह वारदातों को अंजाम देता है. उत्तर प्रदेश, हरियाणा राजस्थान से लेकर तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश तक लोगों ने बावरिया गैंग का कहर देखा है. अजीब आवाजें निकालकर पहले दरवाजा खुलवाते हैं या सीधे ही दरवाजा तोड़कर घर में घुसते हैं और फिर घर का कीमती सामान लूटते हैं. ऐसे में जो भी उनके रास्ते में आता है उसकी अगर उन्हें जान भी लेनी पड़े तो पीछे नहीं हटते.

बावरिया गैंग का इन वारदातों को अंजाम देने का तरीका बड़ा दिलचस्प है. इलाके की रेकी करना, फिर रईस घरों को चुनकर रात के अंधेरे में निशाना बनाना. इस पूरी प्रक्रिया को वे कैसे अंजाम देते हैं, यह जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि इनकी उत्पत्ति कहां से हुई और कैसे ये इन आपराधिक गतिविधियों में शामिल हुए.

समुदाय की उत्पत्ति के समय से ही आपराधिक गतिविधियों में शामिल
द हिंदू की साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, जब से बावरिया समुदाय की उत्पत्ति हुई है, तभी से ये आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं. 1881 में भारत की जनगणना में बावरिया समुदाय को हंटिंग कम्युनिटी को तौर पर वर्णित किया गया. जंगली जानवरों का फंदे से शिकार करने के इनके कुख्यात तरीके को देखकर इन्हें इस श्रेणी में रखा गया. इसमें यह भी कहा गया कि बावरिया अपराध के आदी होते हैं. रिपोर्ट में बी दत्त की किताब 'लाइवलीहुड स्ट्रटेजीज ऑफ ए नोमेडिक हंटिंग कम्युनिटी ऑफ ईस्टर्न राजस्थान' के हवाले से लिखा गया कि ब्रिटिश काल में 1871 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट में 200 से ज्यादा समुदायों को अपराधी घोषित किया गया, जिनमें बावरिया समुदाय भी था. किताब में यह भी लिखा गया कि इन समुदायों के साथ यह कलंक तब से जुड़ा है, जब इनको अपराधी करार दिया गया. इसके बाद इन्हें अनुसूचित जाति की श्रेणी में डाल दिया गया. राजपूत वंश से निकली इस जनजाति की आबादी 2021 में 2.35 लाख थी. इनकी उत्पत्ति हरियाणा और राजस्थान से हुई है.

कैसे देते हैं आपराधिक वारदातों को अंजाम
बावरिया गैंग हमेशा 5 से 10 लोगों के ग्रुप में घटनाओं को अंजाम देता है. इनके ग्रुप में महिलाएं और कभी-कभी बच्चे भी शामिल होते हैं. हालांकि, महिलाएं और बच्चे सिर्फ रेकी का काम करते हैं. जिस इलाके में इन्हें वारदात करनी होती है वहां पर कुछ दिन पहले से इनकी महिलाएं कपड़े या बर्तन बेचने के बहाने रेकी करती हैं और फिर रईस घरों के बारे में जानकारी इकट्ठा करती हैं. इसके बाद अच्छा मौका देखकर ये लोग अपने टारगेट पर हमला बोल देते हैं. ये आमतौर पर हाइवे और रेलवे ट्रैक के आस-पास खाली मैदानों में बने मकानों को निशाना बनाते हैं. 15-20 दिन की रेकी के बाद गैंग मेंबर छोटे-छोटे ग्रुप्स में बंट जाते हैं और लक्षित घरों पर हमला करते हैं.

बावरिया गैंग के लोग घटना को अंजाम देने के लिए सबसे पहले सिर पर वार करते हैं ताकि सिर पर चोट लगने से या तो शख्स की मौत हो जाती है या बेहोश हो जाता है. ऐसे में उन्हें अपराध करने में आसानी हो जाती है. साथ ही वह अपने फोन और हथियार घटनास्थल पर ही छोड़ जाते हैं ताकि कोई उन्हें ट्रैक न कर सके. 

धर्म-आस्था में रखते हैं विश्वास
बावरिया गैंग का धर्म और आस्था में भी काफी विश्वास है. ऐसा कहा जाता है कि ये किसी वारदात को अंजाम देने से पहले पूजा करते हैं. हालांकि, इसे लेकर अलग कहानियां हैं. ये वारदात को अंजाम देने से पहले अपनी कुलदेवी की पूजा करते हैं और फिर एक बकरे के जरिए इसका फैसला करते हैं कि उस दिन वारदात को अंजाम देना है या नहीं. कुलदेवी के सामने एक बकरा खड़ा करते हैं अगर वह कुलदेवी की ओर आगे बढ़ता है तो वारदात के लिए निकलते हैं अगर वह ऐसा नहीं करता तो इसे अपशकुन मानकर वारदात को अंजाम नहीं देते. वहीं, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बावरिया गैंग हर वारदात को अंजाम देने से पहले अमावस्या के चांद की पूजा करता है.

दक्षिण भारत के कई इलाकों को बनाया निशाना
बावरिया समुदाय एक दशक तक दक्षिण भारत के कई इलाकों को निशाना बनाता रहा. तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा वारदातों को अंजाम दिया. द हिंदू की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, 10 सालों में इसने तमुलनाडु में 24 रॉबरी की वारदातें कीं, जिनमें 13 लोगों की जान गई और करीब 63 लोग गंभीर रूप से घायल हुए. इन वारदातों के तहत बावरिया समुदाय ने 2 करोड़ रुपये की कीमत तक के गहने और नगदी लूटी. इन घटनाओं के पीछे कौन है इसका पता लगाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री जयाललिता ने स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम गठित की, जिसमें उस वक्त के इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस एस. आर. जांगिड और 4 डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस को शामिल किया गया. उन्होंने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और दिल्ली का दौरा किया और पाया कि इन सभी राज्यों में रॉबरी की घटनाओं में जिस पैटर्न का इस्तेमाल किया गया, वही पैटर्न तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश की वारदातों में भी था. जांच में बड़ी बाधा यह थी कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में पुलिस ने गिरफ्तारी के समय आरोपियों की उंगलियों के निशान सुरक्षित नहीं रखे थे.

साल 1996 से 2000 के दौरान कोई वारदात नहीं हुई और यह माना गया कि उस दौरान अपराधी जेल में होंगे इसलिए टीम ने जेलों का दौरा शुरू किया. इसी दौरान, पुलिस निरीक्षक (फिंगरप्रिंट) धननचेलियान ने बताया कि क्राइम सीन से लिए गए चार फिंगर प्रिंट 1996 में सेंट्रल जेल, आगरा में दर्ज किए गए एक अंगूठे के निशान से मेल खाते हैं. ये फिंगर प्रिंट अशोक उर्फ लक्ष्मण के थे, जो बावरिया गैंग का हिस्सा था. तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में हुई रॉबरी की आपराधिक घटनाओं में वह भी शामिल था. गैंग के ऑर्गेनाइजर धर्म सिंह बावरिया और लक्ष्मण की गिरफ्तारी से इन खतरनाक आपराधिक घटनाओं का रहस्य खुला.

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