सुप्रीम कोर्ट इलेक्टोरल बॉन्ड या चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहा है. 8 साल से यह मामला कोर्ट में लंबित है. योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं में चंदा देने वाले की पहचान गुप्त रखने को लेकर सवाल उठाए गए हैं. याचिकाकर्ताओं की चिंता है कि इस तरह काले धन को बढ़ावा मिल सकता है. योजना को लेकर यह भी आरोप लगाया गया कि इसे बड़े कारोबारियों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए बनाया गया था.


सोमवार (1 नवंबर, 2023) को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पांच सदस्य बेंच ने सुनवाई की. इस दौरान, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने सवाल किया कि ऐसा क्यों है कि जो पार्टी सत्ता में है, उसे ज्यादा चंदा मिलता है? इस पर सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि चंदा देने वाला हमेशा किसी पार्टी की मौजूदा हैसियत से चंदा देता है. आइए जानते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए पांच सालों में किस पार्टी को कितना चंदा मिला-


57 फीसदी इलेक्टोरल बॉन्ड बीजेपी को मिले
चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, पांच सालों में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतक दलों को करीब 10 हजार करोड़ रुपये का फंड दिया गया, इसमें से आधे से ज्यादा राशि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भारतीय जनता पार्टी (BJP) को मिली है, जबकि कांग्रेस को सिर्फ 952.29 करोड़ मिले. यह डेटा 2017-2018 और 2021-2022 तक का है. 


द इंडियन एक्स्प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-2018 और 2021-2022 के दौरान भारतीय स्टेट बैंक के कुल 9,208.23 करोड़ की कीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री हुई है. बीजेपी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कुल 5,271.97 करोड़ रुपये की फंडिंग हुई है. वहीं, कांग्रेस को 952.9 करोड़ चंदा मिला है.


स्थानीय पार्टियों को भी हुई अच्छी फंडिंग
टीएमसी, बीजेडी और डीएमके जैसे राजनीतिक दल, जो लंबे समय से राज्यों की सत्ता में काबिज हैं, उन्हें भी चुनावी बॉन्ड के जरिए अच्छी-खासी राशि मिली है. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) को 767.88, ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल (BJD) को 622 करोड़ और तमिनलाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की द्रविड मुनेत्र काषगम (DMK) को 431.50 करोड़ की फंडिंग हुई. वहीं, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) को 48.83 करोड़ मिले और नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) को 24.40 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिले हैं. इसके अलावा, शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) को 51.5 करोड़ रुपये की फंडिंग हुई है.


क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड योजना?
साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को कानूनी रूप से लागू किया गया था. योजना को लागू करते वक्त सरकार ने तर्क दिया था कि इससे राजनीतिक दलों को होने वाली फंडिंग में ट्रांसपरेंसी आएगी. इलेक्टोरल बॉन्ड पॉलिटिकल पार्टियों को फंड देने का वित्तीय जरिया है. हर साल जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में 10 दिनों की अवधि के लिए भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं पर चुनावी बॉन्ड की बिक्री होती है. कोई भी नागरिक बॉन्ड खरीदकर अपनी मर्जी से किसी भी पार्टी को दे सकता है. हालांकि, उस नागरिक की पहचान को गुप्त रखा जाता है. बॉन्ड खरीदने के 15 दिन के अंदर इसका इस्तेमाल करना होता है. अलग-अलग कीमत के इलेक्टोरल बॉन्ड उपलब्ध हैं. उनकी कीमत 1000 रुपये, 10,000 रुपये, एक लाख रुपये, दस लाख रुपये और एक करोड़ रुपये है.


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