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शरद पवार ने राज्यों से पत्र लिखकर की थी मॉडल APMC कानून अपनाने की अपील, जानें- उसमें क्या प्रवाधान थे

मॉडल क़ानून का एक अहम हिस्सा कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग से जुड़ा है. मॉडल क़ानून के सेक्शन 38 में इसका प्रावधान ही नहीं किया गया है, बल्कि इसकी पूरी रूपरेखा और प्रक्रिया के साथ-साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एक मसौदा भी दिया गया है.

नई दिल्ली: पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने कृषि मंत्री रहते हुए अगस्त 2010 और नवंबर 2011 में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर 2003 में बनाए गए मॉडल एपीएमसी क़ानून को अपने-अपने राज्यों में लागू करने का आग्रह किया था.

चूंकि एपीएमसी क़ानून राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है, इसलिए इसपर क़ानून बनाने का अधिकार राज्यों को है. लिहाज़ा 2003 में तब की वाजपेयी सरकार ने एपीएमसी क़ानून का एक मसौदा मॉडल के तौर पर तैयार करके राज्यों को भेजा. मक़सद ये था कि सभी राज्य इसी मसौदे का अनुसरण करते हुए अपने यहां एपीएमसी क़ानून बनाएं या पहले से लागू क़ानून में बदलाव करें.

आइए समझते हैं कि आख़िर इस मॉडल क़ानून में क्या कहा गया था ? इस मॉडल क़ानून में एपीएमसी के तहत राज्यों में गठित और काम करने वाली सरकारी मंडियों में आमूलचूल बदलाव की बात कही गई थी. इसके सेक्शन 60 में राज्य की सभी सरकारी मंडियों के कामकाज और उसकी निगरानी के लिए राज्य कृषि विपणन बोर्ड के गठन का प्रावधान किया गया है.

बोर्ड के पास राज्य में अलग अलग इलाकों के लिए कृषि उत्पादन बाज़ार समिति ( एपीएमसी ) के गठन का अधिकार रहेगा. मॉडल क़ानून के सेक्शन 10 के तहत ऐसी सभी मंडियों के लिए अलग अलग एक बाज़ार समिति के गठन का प्रावधान किया गया जो इन मंडियों के कामकाज पर नज़र रखेगा. बाजार समिति हर दो साल पर पुनर्गठित होगी और इसमें एक चेयरमैन के अलावा 15 सदस्यों का प्रावधान है. सदस्यों में 10 कृषक समुदाय से रहना अनिवार्य होगा और कृषकों में एक एक सदस्य अनुसूचित जाति/जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और महिला होना भी अनिवार्य होगा.

मॉडल क़ानून में भी किसानों पर अपनी उपज को एपीएमसी ( कृषि उत्पादन बाज़ार समिति ) की मंडियों में ही बेचने की बाध्यता समाप्त कर दी गई है. हालांकि ऐसा नहीं करने वाले कृषक एपीएमसी के चुनाव में हिस्सा नहीं लेने की योग्यता नहीं रख सकेंगे.

मॉडल क़ानून का एक अहम हिस्सा कॉन्ट्रैक्ट फॉर्मिंग से जुड़ा है. मॉडल क़ानून के सेक्शन 38 में इसका प्रावधान ही नहीं किया गया है, बल्कि इसकी पूरी रूपरेखा और प्रक्रिया के साथ-साथ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एक मसौदा भी दिया गया है. इसके तहत किसानों के साथ अनुबंध करने वाले व्यापारियों और कम्पनियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य बनाने के साथ-साथ लिखित समझौते का प्रावधान किया गया है.

साथ ही, विवाद होने की हालत में उसके निपटारे के लिए एक प्राधिकरण बनाने का प्रावधान है. प्राधिकरण के फ़ैसले को 30 दिनों के भीतर एक अपील अथॉरिटी में चुनौती दी जा सकती है. इस अपील अथॉरिटी का दर्जा और अधिकार सिविल कोर्ट का बनाया गया है. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत पैदा होने वाली उपज को मार्केट चार्ज से भी बाहर रखा गया है. एक बड़ा प्रावधान ये भी है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत पैदा हुई फसल को एपीएमसी की मंडियों से बाहर या खेत से ही बेचा जा सकता है.

मॉडल कानून में साफ-साफ लिखा है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसानों की जमीन पर अधिकार का समझौता नहीं हो सकता.

इसके अलावा कुछ अन्य प्रावधान इस प्रकार हैं:- किसानों को किसी भी प्रकार की कमीशन फीस से छूट. ( सेक्शन 44 ( 6 ) )

कृषि उपज को प्राइवेट मार्केट या सीधे कृषक से ख़रीदने का प्रावधान. ( सेक्शन 45 )

कृषि उपज को सीधे उपभोक्ताओं को बेचने की व्यवस्था के तहत उपभोक्ता/कृषक बाज़ार गठित करने का प्रावधान. ( सेक्शन 46 )

राज्य सरकारों को बाज़ार में बिक्री के लिए लाए गए किसी भी फ़सल को मार्केट फीस से छूट देने का अधिकार. ( सेक्शन 56 )

किसी ख़ास फ़सल के लिए 'विशेष बाज़ार' बनाए जाने की व्यवस्था.

किसानों को उसी दिन उनकी बेची गई फ़सल की पेमेंट की जिम्मेवारी कृषि उत्पादन बाज़ार समिति ( एपीएमसी ) की होगी.

ये भी पढ़ें: Farmers Protest: रविशंकर प्रसाद बोले- विपक्ष का दिखा दोहरा रवैया, कांग्रेस ने किया था APMC एक्ट खत्म करने का वादा  ममता बनर्जी का केंद्र पर निशाना, बोलीं- ...तो जेल में रहना पसंद करूंगी 
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