Rohingya Refugees Issue: भारत में रह रहे रोहिंग्या लोगों को घर उपलब्ध कराने के केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी (Hardeep Singh Puri) के एक ट्वीट पर आज विवाद मच गया. हालांकि, बाद में गृह मंत्रालय (Ministry Of Home Affairs) ने सफाई दी कि म्यांमार (Myanmar) से अवैध तरीके से भारत में घुसे इन लोगों को रखने के लिए डिटेंशन सेंटर बनाया जा रहा है. 


यह सफाई सामने आने से पहले कई लोगों ने यह भी कहना शुरू कर दिया था कि रोहिंग्याओं को मकान सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते दिया जा रहा है. यह स्पष्ट करना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी रोहिंग्या लोगों को मकान उपलब्ध करवाने का कोई आदेश नहीं दिया है. रोहिंग्या मामले में आखिर अब तक सुप्रीम कोर्ट में क्या-क्या हुआ है, हम उसकी चर्चा कर लेते हैं.


वापस भेजने की मांग पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या लोगों को लेकर कई याचिकाएं लंबित हैं. इनमें से एक याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की है. उपाध्याय ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मांग की थी कि भारत में अवैध तरीके से रह रहे बांग्लादेशियों और रोहिंग्या लोगों की पहचान की जाए और उन्हें 1 साल के भीतर वापस भेजा जाए. 


केंद्र और अधिकतर राज्य सरकारों ने अभी तक इस याचिका पर जवाब नहीं दिया है. कर्नाटक समेत कुछ राज्यों ने यह जवाब दिया है कि सुप्रीम कोर्ट मामले में जो भी आदेश देखा उसका पालन किया जाएगा.


शरणार्थी का दर्जा नहीं
दूसरी याचिका मोहम्मद सलीमउल्ला समेत कई रोहिंग्या लोगों की है, जिन्हें वकील प्रशांत भूषण के जरिए दाखिल किया गया है.इन याचिकाओं में रोहिंग्या लोगों को यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन के मुताबिक भारत में शरणार्थी का दर्जा देने की मांग की गई है.


सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी सरकार के विचार करने का विषय बताते हुए कोई आदेश नहीं दिया है. उल्टे कोर्ट ने 4 अक्टूबर 2018 को 7 रोहिंग्या लोगों को म्यांमार वापस भेजने का आदेश दिया था. यह सभी लोग 2012 में अवैध तरीके से भारत में घुसे थे.


जेल में रखने का आदेश
8 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी का दर्जा देने की मांग करने वालों को झटका देते हुए जम्मू की जेल में बंद 168 रोहिंग्या लोगों को रिहा करने से मना कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि सरकार इन लोगों को तब तक जेल में रखे, जब तक उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए इन्हें वापस भेजने की व्यवस्था नहीं हो जाती है.


बिजली, पानी, शौचालय पर सवाल
जहां तक रोहिंग्या लोगों को बुनियादी सुविधाएं देने का सवाल है, उस पर भी कोर्ट ने कभी कोई आदेश नहीं दिया है.9 अप्रैल 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने दिल्ली और हरियाणा के 3 कैंपों में रह रहे रोहिंग्या लोगों की स्थिति पर सरकार से सवाल जरूर पूछा था. 


कोर्ट ने तब यह कहा था कि मामले में हमारे किसी आदेश का अंतरराष्ट्रीय असर हो सकता है, इसलिए हम कोई आदेश नहीं दे रहे हैं.लेकिन मानवीय आधार पर सरकार से जानकारी मांग रहे हैं.सरकार 4 हफ्ते में इन कैंपों में बिजली, पानी, शौचालय जैसी बुनियादी जरूरत की चीजों की स्थिति पर हमें जानकारी दे.


मुफ्त अनाज पर कोई आदेश नहीं
सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या लोगों को बाकी गरीबों की तरह मुफ्त अनाज और दूसरी सुविधाएं देने की मांग करने वाली एक याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.इस याचिका को वकील फजल अब्दाली ने दाखिल किया है इसमें कहा गया है कि कोरोना का दूसरे लोगों की तरह रोहिंग्याओं पर भी असर पड़ा है.उन्हें भी मुफ्त अनाज और दूसरी सुविधाएं दी जानी चाहिए. कोर्ट ने मामले में पिछले साल केंद्र और 6 राज्यों को नोटिस जारी किया. लेकिन रोहिंग्या लोगों को मुफ्त अनाज या कोई और सुविधा देने का कोई आदेश नहीं दिया.


अंतर्राष्ट्रीय असर की चिंता
साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी का दर्जा देने या विशेष सुविधा देने का कोई आदेश नहीं दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कभी भी यह नहीं कहा है कि इन लोगों को मकान उपलब्ध करवाए जाएं. कोर्ट देश में रोहिंग्या लोगों की स्थिति और उन्हें वापस भेजने से जुड़ी कुछ याचिकाओं पर सुनवाई जरूर कर रहा है.लेकिन उसने मामले के अंतरराष्ट्रीय असर को देखते हुए अब तक आदेश देने से परहेज किया है.


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