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धीरूभाई अंबानी की कहानी: मेले में भजिया बेचने वाला बना देश का सबसे रईस इंसान

Dhirubhai Ambani: धीरूभाई अंबानी को घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उन्होंने यमन में एक पेट्रोल पंप पर भी नौकरी की थी.

Dhirubhai Ambani Story: मुंबई में सोमवार (28 अगस्त) को रिलायंस इंडस्ट्रीज की 46वीं एनुअल जनरल मीटिंग (एजीएम) हुई. इस मीटिंग की चर्चा पूरे देश में रहती है. एजीएम (AGM) में कंपनी के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने बताया कि ईशा अंबानी, आकाश अंबानी और अनंत अंबानी को रिलायंस इंडस्ट्रीज के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल किया गया. साथ ही नीता अंबानी ने बोर्ड से इस्तीफा दे दिया है. वह रिलायंस फाउंडेशन की अध्यक्ष बनी रहेंगी.

मुकेश अंबानी अगले पांच वर्षों तक आरआईएल (RIL) के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बने रहेंगे. मुकेश अंबानी धीरूभाई अंबानी के बड़े बेटे हैं. धीरूभाई अंबानी ने ही रिलायंस की शुरूआत की थी. आज आपको धीरूभाई अंबानी के सफर के बारे में बताते हैं कि कैसे मेले में भजिया बेचने वाला लड़का देश का सबसे रईस इंसान बना. 

कहानी धीरूभाई अंबानी की... 

28 दिसंबर 1932 को गुजरात के चोरवाड़ में जन्मे धीरूभाई अंबानी का पूरा नाम धीरजलाल हीरालाल अंबानी था. धीरूभाई के पिता एक शिक्षक थे. चार संतानों में धीरूभाई तीसरे नंबर पर थे. परिवार बड़ा था लेकिन आय उतनी नहीं थी, इसलिए आर्थिक तंगी हमेशा सताती थी. 

आर्थिक तंगी ने छुड़वाई पढ़ाई 

धीरूभाई पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए थे. मैट्रिक की परीक्षा के बाद ही उनका व्यवसायिक जीवन शुरू हो गया. शुरू में उन्होंने फेरी लगाकर सामान बेचने का भी काम किया. परिवार की आर्थिक मदद के लिए कभी तेल तो कभी मेलों में वो भजिया भी बेचा करते थे. पिता के कहने पर पैसे कमाने के लिए उन्हें अपने बड़े भाई रमणीकलाल के पास 1950 में अदन (यमन) जाना पड़ा.

अदन में की पहली नौकरी 

रमणीकलाल ने ‘ए. बैसी एंड कंपनी’ के पेट्रोल पंप पर धीरूभाई की 300 रुपये प्रतिमाह की नौकरी लगवा दी. धीरूभाई ने बहुत जल्दी काम सीख लिया. बाद में इसी कम्पनी के फिलिंग स्टेशन में उन्हें मैनेजर बना दिया गया. 

मुंबई से की बिजनेस की शुरुआत 

धीरूभाई ने मुंबई में किराए के मकान से बिजनेस शुरू किया. उन्होंने थोड़ी सी पूंजी के साथ 1958 में रिलायंस कमर्शियल कॉर्पोरेशन की स्थापना की. उनकी कंपनी अदरक, हल्दी, इलायची, कपड़ों के अलावा कई चीजों का एक्सपोर्ट करती थी. धीरूभाई की कारोबारी बुद्धि काम आई और उनका व्यापार चल पड़ा.

धीरूभाई ने खड़ा किया रिलायंस का साम्राज्य 

1958 से 1965 के बीच रिलायंस ने बड़ी तेजी से विकास किया. वो मुंबई के यार्न बाजार व देश के हैंडलूम और पावरलूम केंद्रों में पहचान बना चुके थे. जब साठ के दशक की शुरुआत में उन्होंने विस्कोस आधारित धागा चमकी बनाया तो शोहरत के शिखर पर जा पहुंचे, लेकिन वो यहीं रुकने वाले नहीं थे. उन्होंने गुजरात के नरोदा में 15000 की पूंजी से एक मिल लगाई. यहां पॉलिएस्टर के धागों से कपड़ा बनाया जाता था.  

धीरूभाई ने कपड़ों के इस ब्रांड का नाम विमल रखा जो कि उनके बड़े भाई रमणीकलाल के बेटे विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था. विमल ने ही धीरूभाई अंबानी को बिजनेस टाइकून बना दिया. बिजनेस को और बढ़ाने के लिए उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज को सार्वजनिक क्षेत्र में शामिल करा लिया और 58000 निवेशकों से इक्विटी जुटाई. 

1980 में धीरूभाई ने महाराष्ट्र के पतलगंगा में पॉलिएस्टर फाइबर धागे का कारखाना खोला. धीरूभाई ने 1991-92 में हजीरा पेट्रोकेमिकल प्लांट की शुरुआत की. 1992 में ग्‍लोबल मार्केट से फंड जुटाने वाली रिलायंस देश की पहली कंपनी बनी. साल 1995-96 में कंपनी ने टेलिकॉम इंडस्ट्री ‘रिलायंस टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड’ NYNEX USA के साथ मिलकर भारत में शुरुआत की. 1998-2000 में धीरूभाई ने दुनिया के सबसे बड़े रिफाइनरी पेट्रोकेमिकल्स की गुजरात के जामनगर में शुरुआत की.

राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों से कैसे रिश्ते रहे? 

धीरूभाई के सभी राजनेताओं और राजनीतिक दलों से अच्‍छे संबंध रहे, जिसका फायदा उन्हें अपना व्यापार बढ़ाने में लगातार मिलता रहा. जब इंदिरा सरकार ने पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न की मैन्युफैक्चरिंग को प्राइवेट सेक्टर के लिए भी खोलने का फैसला लिया तो उस दौर की दिग्गज कंपनियों टाटा और बिड़ला को पछाड़ते हुए धीरूभाई अंबानी ने बाजी मार ली. 

रिलायंस को मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने का लाइसेंस मिल गया. कहा जाता है कि प्रणव मुखर्जी और धीरूभाई अंबानी के संबंध भी बहुत अच्छे थे. जब वीपी सिंह वित्त मंत्री बने तो धीरूभाई से उनके संबंध अच्छे नहीं थे.  

विवादों में भी घिरे रहे धीरूभाई अंबानी 

धीरूभाई सफलता की सीढ़ियां लगातार चढ़ते गए, लेकिन ऐसा नहीं था कि उनके रास्ते में रुकावटें नहीं आईं. धीरूभाई के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी थे बॉम्बे डाइंग के नुसली वाडिया. वाडिया की हत्या की साजिश को लेकर धीरूभाई के कुछ कर्मचारियों के खिलाफ आरोप भी लगाए गए. 

इंडियन एक्सप्रेस समूह के संस्थापक रामनाथ गोयनका उस वक्त धीरूभाई और नुसली दोनों के करीबी थे, लेकिन जब किसी एक को चुनने की बारी आई तो उन्होंने नुसली वाडिया को चुना. रामनाथ गोयनका ने एक तरह से धीरूभाई अंबानी के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया था. 

परिवार के लिए कितनी दौलत छोड़ी 

24 जून 2002 को दिल का दौरा पड़ने से धीरूभाई को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. यह उनका दूसरा दिल का दौरा था. 6 जुलाई 2002 को 69 साल की उम्र में धीरूभाई अंबानी का निधन हो गया. जब उन्होंने 2002 में अंतिम सांस ली- तब फोर्ब्स की लिस्ट में वे दुनिया के 138वें सबसे अमीर व्यक्ति थे जिसकी कुल अनुमानित संपत्ति 2.9 बिलियन डॉलर थी. 

आज रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) दुनिया की दिग्गज कंपनियों में शुमार है. उनकी मृत्यु के समय रिलायंस ग्रुप की सकल संपत्ति 60,000 करोड़ पर पहुंच चुकी थी. अब रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड 12 लाख करोड़ रुपये की कंपनी हो गई है. उनका पूरा बिजनेस उनके दोनों बेटों मुकेश और अनिल अंबानी ने संभाल लिया था. हालांकि, बाद में दोनों भाइयों के बीच विवाद की वजह से संपत्ति का बंटवारा करना पड़ा. 

धीरूभाई अंबानी का परिवार 

1955 में धीरूभाई ने कोकिलाबेन से शादी की थी. धीरूभाई अंबानी की चांर संतानें हुईं- मुकेश (1957), अनिल (1959), दीप्ति (1961) और नीना (1962). जब धीरूभाई अंबानी का कारोबार शुरुआती दौर में था, तो उन्हें दिन-रात काम करना पड़ता था, लेकिन जितना भी वक्त मिलता था वो परिवार के साथ बिताते थे. उन्हें न तो पार्टी करना पसंद था और न ही घूमना-फिरना. काम के बाद का सारा वक्त वो परिवार को देते थे. 

धीरूभाई अंबानी व्यापार की दुनिया में आज सफलता के पर्याय हैं. कोई व्यापार करने की शुरुआत करता है तो आदर्श हमेशा धीरूभाई अंबानी को ही मानता है. कैसे एक भजिया बेचने वाला लड़का इतना महान बिजनेसमैन बन गया, ये कहानी सबको प्रेरित करती है.

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