पटना: विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने अब तक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर कोई फैसला नहीं किया है. इसे लेकर कांग्रेस कई बड़े दलों के साथ कल मैराथन मीटिंग कर रही है, लेकिन उससे पहले उसे बड़ा झटका लगा है. विपक्ष की एक बड़ी धूरी नीतीश कुमार ने एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के समर्थन का एलान किया है. अब तक ये कयास लगाए जा रहे थे कि नीतीश कांग्रेस के फैसले के साथ जा सकती है, लेकिन ये अनुमान पूरी तरह ग़लत साबित हुए.


हालांकि, नीतीश कुमार के लिए दुविधा ये थी कि आखिर वो अपने प्रदेश के पूर्व राज्यपाल का विरोध करें तो कैसे करें, दूसरी तरफ वो दलित चेहरा भी हैं.


पटना में आज  जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) की अहम बैठक हुई, जिसमें रामानाथ कोविंद के समर्थन का फैसला किया गया.


नीतीश के समर्थन के एलान के कई मायने हैं और कई पेंच भी हैं. अब नीतीश ने अपना फैसला सुनाकर बिहार में गठबंधन सरकार के दूसरे साझीदार लालू प्रसाद को मुश्किल में डाल दिया है और एक तरह का संदेश भी दे दिया है. अब लालू प्रसाद के सामने मुश्किल ये होगी कि आखिर वो अपने सरकार के पार्टनर के फैसले के विरोध में क्यों जाएं और अगर जाते हैं तो इस सुगबुगाहट को कौन रोकेगा कि लालू-नीतीश में सब कुछ सामान्य नहीं है और क्या नीतीश मोदी के करीब जा रहे हैं. लालू के लिए संदेश ये है कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी के फैसले में स्वतंत्र हैं और वो लालू प्रसाद से किसी तरह बंधे हुए हैं.


नीतीश के फैसले का दूसरा बड़ा असर मोदी विरोधी धूरी के बनने से पहले पंक्चर हो जाने का है. नीतीश को मोदी विरोधी समूह का सबसे ताकतवर और साफ छवि वाला नेता माना जाता है, लेकिन उनकी इस बेरुखी के बाद ऐसा लगता है कि कांग्रेस के ग्रैंड अलायंस के भ्रूण की हत्या हो गई है. हालांकि, नीतीश के मौजूदा फैसला से किसी आखिरी नतीजे पर पहुंचना सही नहीं है, लेकिन इसे राजनीति में नए समीकरण के उभरने की आहट के तौर पर जरूर देखा जा सकता है.