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President Droupadi Murmu: देश की महामहिम द्रौपदी मुर्मू के वंश ने की थी ब्रिटिश हुकूमत की पहली खिलाफत, जानिए संथाल समुदाय के बारे में

President Droupadi Murmu:भारत की आजादी के संग्राम 1857 से पहले ही अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़े होने वाले संथाल (Santhal) समुदाय से देश की 15 वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu)आती हैं.

President Droupadi Murmu Aa A Santhali: भारत के 15वें राष्ट्रपति के पद पर शपथ लेकर सोमवार को द्रौपदी मुर्मू (Droupadi  Murmu) देश की महामहिम बन गईं हैं. वह इस पद पहुंचने वाली देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बनीं हैं. देश की सबसे युवा राष्ट्रपति मुर्मू  जिस संथाल आदिवासी (Santhal Tribe) समुदाय से आती हैं, वह कोई मामूली आदिवासी समुदाय नहीं है. उनका समुदाय देश की आजादी के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खड़े होने वाला समुदाय है. आदिवासियों में सबसे पढ़े-लिखे समुदायों के साथ ही ये समुदाय अपनी भाषा और संस्कृति को लेकर देश और दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा है. तो आज हम इसी संथाल समुदाय के इतिहास और संस्कृति से आपको रूबरू करा रहे हैं.

जब होने लगा संथालों का शोषण

हम सभी जानते हैं कि भारत की आजादी का पहला संग्राम 1857 का था. इसे अंग्रेजों ने 1857 गदर का नाम दिया, लेकिन शायद कम ही लोग जानते होंगे कि इससे पहले भी ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ एक जंग हुई थी. आजादी की इस जंग का श्रेय संथाल समुदाय को जाता है. 1857 से दो साल पहले ही ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ संथाल आदिवासी समुदाय ने विद्रोह का बिगुल बजा डाला था. संथालों ने 1855 की लड़ाई में धनुष-बाण और भाले जैसे परंपरागत हथियारों से अंग्रेजों और उनके हिमायती जमींदारों के नवीनतम हथियारों का सामना किया था. यह दुख की बात है कि झारखंड और पश्चिम बंगाल के जंगलों में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी गई संथालों की इस गौरव गाथा को स्कूली किताबों में केवल एक लाइन में समेट दिया गया है. 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल का कंट्रोल ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथ में आया. इससे संथालों का एक बड़ा इलाका भी ब्रितानी हुकूमत के पास चला गया. इसी के साथ ब्रितानियों ने संथाल आदिवासी के इन जंगलों को जूट, नील और अफीम की खेती करने के लिए काटना शुरू किया.

द्रौपदी मुर्मू के वंश ने की थी ब्रिटिश हुकूमत की पहली खिलाफत

इसी के लिए 1793 में लार्ड कॉर्नवालिस ने जमींदारी सिस्टम लागू कर दिया. इससे ब्रिटिश सरकार को एक निश्चित राजस्व देने वाले जमींदारों को जमींन पर हमेशा के लिए एक पैत्रिक हक देने की व्यवस्था की गई. इसके लिए ब्रितानी हुकूमत ने संथालों की जमीनों की नीलामी करनी शुरू कर दी. देश के अमीरों ने इन सुदूर जंगलों में जमीन खरीद कर संथाल आदिवासियों का शोषण शुरू कर दिया और संथालों का उनकी जमीन से हक खत्म हो गया. संथाल अब जमींदारों के खेतों में काम करने लगे. इससे उनकी पुरानी आदिवासी परंपरा और उनकी राजनीतिक व्यवस्था को भी तोड़ डाला जो पीढ़ियों से उनमें चली आ रही थी.  संथाल आदिवासियों के सामानों के बदले सामान लेने की अर्थव्यवस्था को भी जमींदारों की नकदी में खरीद-फरोख्त का शिकार होना पड़ा. ब्रिटिश हुकूमत और जमींदारों की मिलीभगत से अपनी संस्कृति और पहचान खोने का गुस्सा संथालों ने बगावत से निकाला. संथालों ने इसके लिए हूल शुरू किया. संथाली में इस लफ्ज का मतलब बगावत होता है. इस बगावत की कमान मुर्मू वंश के चार भाईयों सिदो (Sido Murmu), कान्हू (Kanhu), चंद और भैरव और उनकी दो बहनों फूलो और झानों ने संभाली. ये भाई-बहिन एक संथाली पुरोहित के घर झारखंड के साहिबगंज (Sahibganj) जिले के भोग्नादि (Bhognadih) गांव में जन्में थे. साल 1885 में बड़े भाई सिदो ने दावा किया कि एक दैवीय शक्ति ने उन्हें शोषण के खिलाफ आवाज उठाने की प्रेरणा दी है. इसके बाद साल पेड़ की टहनियों से संथालों के इलाकों में युद्ध के लिए गुप्त संदेश भिजवाया. 7 जुलाई 1855 को सभी संथाल भोग्नादि गांव के एक मैदान में इकट्ठा हुए और सिदो के लीडरशिप में सभी संथालों ने आखिरी सांस तक ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ जंग छेडने की शपथ ली. देश की 15 वीं राष्ट्रपति द्रौपदी इसी मुर्मू वंश से आती हैं. संथालों ने गुरिल्ला युद्ध के जरिए अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया. उनके रेल और पोस्टल नेटवर्क को तहस-नहस कर डाला. अंग्रेजों की इस बगावत को कुचलने की कोशिश में 20 हजार संथाली मारे गए.  इन्हीं लोगों की याद में 30 जून को हूल क्रांति दिवस मनाया जाता है.

कौन हैं संथाल

संथाली भाषा में संथ का मतलब होता है शांत और आला शख्स को कहते हैं. इन दो शब्दों से मिलकर संथाल (Santhal) शब्द हैं. इसे संताल भी कहते हैं. इस शब्द के हिसाब से देखा जाए तो संथाल एक शांत समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है. यह शब्द पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर क्षेत्र में साओंत के निवासियों के बारे में बताता है. संस्कृत शब्द सामंत का अर्थ है मैदानी भूमि है. भाषाविद् पॉल सिडवेल के अनुसार, ऑस्ट्रो-एशियाटिक भाषा बोलने वाले संथाल संभवतः लगभग 4000-3500 साल पहले इंडोचीन यानि नॉर्थ कंबोडिया के चंपा साम्राज्य से ओडिशा के तट पर पहुंचे थे. यही ऑस्ट्रोएशियाटिक बोलने वाले दक्षिण पूर्व एशिया से फैल गए और 8वीं सदी की समाप्ति पर स्थानीय भारतीय आबादी के साथ मिल गए. हालांकि महत्वपूर्ण पुरातात्विक अभिलेखों की कमी की वजह से संथालों की मूल मातृभूमि का पता नहीं चलता है. संथालों के लोककथाओं का दावा है कि वे हिहिरी से आए थे, जिसे विद्वानों ने हजारीबाग जिले के अहुरी के रूप में पहचाना है. वहां से उनके छोटा नागपुर पठार पर चले जाने और फिर  झलदा, पटकुम और अंत में मेदिनीपुर के सैंट (Saont) इलाके में बस गए.  यह किंवदंती जिसकी कई विद्वानों ने भी पुष्टि की है कि हजारीबाग में संथालों की मौजूदगी रही है. औपनिवेशिक विद्वान कर्नल डाल्टन (Colonel Dalton) ने दावा किया कि चाई में एक किला था जिस पर पूर्व में एक संथाल राजा का कब्जा था, लेकिन जब दिल्ली सल्तनत ने इस इलाके पर आक्रमण तो वह राजा भागने के लिए मजबूर हो गया. कुछ रिसर्च संथालों को मुंडा जनजाति का ही मानते हैं. यह जनजाति संथाल भाषा बोलती है, इसे संथाल भाषा के विद्वान पंडित रघुनाथ मुर्मू ने ओल चिकी लिपि में लिखा है. इस लिपि में संथाली संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल है. स्थानीय लोगों के प्रभाव से संथाली जनजाति के आदिवासी  बंगाली, उड़िया और हिंदी भाषा भी बोलते हैं.

संथालों का धर्म

अगर हम ये कहें कि संथाल किसी एक धर्म को मानते हैं तो यह सही नहीं होगा. यह आदिवासी समुदाय हिंदू सहित सरना धर्म को मानते हैं. साल 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और बिहार के 65 फीसदी संथाल हिंदू धर्म को मानते हैं. वहीं 31 फीसदी सरना धर्म के अनुयायी हैं. पांच फीसदी संथाल इसाई तो एक फीसद किसी और धर्म को मानने वाली है. 

सबसे अधिक साक्षरता वाला आदिवासी समुदाय

यह एक ऐसा आदिवासी समुदाय है जहां शिक्षा को लेकर काफी जागरूकता है. इसका एक बहुत बड़ा और बेहतरीन सबूत देश की 15 वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू है. इस समुदाय में साल 1960 से ही काफी जागरूकता रही है. इसी का नतीजा है कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड(Jharkhand) की दूसरी जनजातियों के मुकाबले ये काफी पढ़े-लिखे होते हैं. इन तीन राज्यों की अन्य आदिवासी जनजातियों की तुलना में संथालों की साक्षरता दर सबसे अधिक है. संथालों में साक्षरता की दर 55.5 फीसदी है. इसी का नतीजा है कि संथाल समुदाय से देश और राज्यों के बड़े संवैधानिक पदों पर लोग काबिज हुए हैं. इन नामों में झारखंड से झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के साथ ही उनके बेटे हेमंत सोरेन,जो अभी राज्य के मुख्यमंत्री है. इनके अलावा देश के 14वें सीएजी (CAG) और जम्मू कश्मीर के पहले राज्यपाल रहे गिरीश चंद्र मुर्मू (Girish Chandra Murmu) के साथ ही झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और मल्दाहा उत्तर लोकसभा सीट से सांसद खगेन मुर्मू, केंद्र सरकार में आदिवासी मामले और जलशक्ति राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू शामिल हैं. 

भारत और विदेश में संथाल

संथाल समुदाय पहले से ही एक  घुमंतू आदिवासी रहे हैं. भारत में इस आदिवासी समुदाय की बसावट बिहार (Bihar), ओडिशा (Odisha), पश्चिम बंगाल (West Bengal) और झारखंड और असम (Assam) में है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक सबसे अधिक 27.52 लाख संथाल आबादी झारखंड राज्य में है. इसके बाद दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल हैं. यहां 25.12 लाख संथाल हैं तो ओडिशा में 8.94 लाख, बिहार में 4.06 लाख और असम में 2.13 लाख संथाली रहते हैं. इसके अलावा साल 2001 में संथालों की आबादी बांग्लादेश में लगभग तीन लाख और नेपाल में 50 हजार से अधिक है.    

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