Veer Savarkar Jayanti: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार (28 मई) को नए संसद भवन को देश को समर्पित किया. जब से पीएम नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम की जानकारी सामने आई थी, विपक्षी दलों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था. विपक्ष ने कार्यक्रम का बहिष्कार करने के कई कारण बताए. इनमें से एक था विनायक दामोदर सावरकर की जयंती यानी 28 मई को नई संसद का उद्घाटन.
विपक्षी दलों का कहना है कि मोदी सरकार ने जान-बूझकर नई संसद के उद्घाटन के लिए 28 मई को सावरकर जयंती का दिन चुना. बीते कुछ सालों में भारतीय राजनीति में विनायक दामोदर सावरकर को विलेन और हीरो दोनों तरह से पेश किया गया है. कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल सावरकर को माफीवीर कहते हैं. वहीं, बीजेपी की ओर से विनायक सावरकर को स्वातंत्र्यवीर बताया जाता है.
कहना गलत नहीं होगा कि वीर सावरकर भारतीय इतिहास की सबसे विवादित शख्सियत है. ये वही सावरकर हैं, जिन्हें कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने देश का महान सपूत बताया था. ये अलग बात है कि आज कांग्रेस नेता उन्हें अंग्रेजों का पिट्ठू समेत कई विशेषणों से नवाजते हैं. आइए जानते हैं क्या है वो किस्सा...
इंदिरा गांधी ने सावरकर को कहा था देश का महान सपूत
20 मई 1980 को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की ओर से लिखा गया वो पत्र आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. इंदिरा गांधी ने ये पत्र स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक को लिखा था. पूर्व पीएम इंदिरा ने सावरकर स्मारक के सचिव पंडित बाखले को लिखी चिट्ठी में वीर सावरकर के देश की आजादी में दिए गए योगदान को जाहिर किया था.
इस पत्र में उन्होंने लिखा था, 'मुझे आपका 8 मई 1980 को भेजा पत्र मिला. वीर सावरकर का ब्रिटिश सरकार का खुलेआम विरोध करना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक अलग और अहम स्थान रखता है. मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें और भारत माता के इस महान सपूत ( Remarkable Son of India) की 100वीं जयंती के उत्सव के आयोजन की बधाई देती हूं.'
इंदिरा ने जारी किया था डाक टिकट
दावा किया जाता है कि इंदिरा गांधी ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर ट्रस्ट को अपने पास से 11 हजार रुपये भी दिए थे. इतना ही नहीं, पूर्व पीएम ने अपने शासनकाल में वीर सावरकर के सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था. इसके साथ ही तत्कालीन इंदिरा सरकार ने 1983 में फिल्म डिवीजन को वीर सावरकर पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाने का आदेश भी दिया था.
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