Veer Savarkar Death Anniversary: आज 26 फरवरी को वीर सावरकर की 57वीं पुण्यतिथि है. भारत के इतिहास में सबसे विवादास्पद शख्सियतों में से एक वीर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में हुआ था. वीर सावरकर का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था. उनका निधन 26 फरवरी 1966 को मुंबई में हुआ था. हालांकि उनके निधन का कारण आजतक नहीं पता चली है, लेकिन जानकारी के मुताबिक उनकी मृत्यु के पीछे मुख्य वजह उपवास थी, जो उन्होंने खुद चुना था.


युवावस्था में वीर सावरकर ने मित्र मेला के नाम से एक युवा संगठन बनाया था. सावरकर को कम उम्र से ही उनके साहस के लिए 'वीर' उपनाम दिया गया था और वे अपने बड़े भाई गणेश सावरकर से काफी प्रभावित थे. गणेश सावरकर ने 1909 में ब्रिटिश सरकार के मॉर्ले-मिंटो सुधारों का विरोध किया था, जिसमें वीर सावरकर ने भी आंदोलन के लिए समर्थन किया था. जिसके बाद उन्हें 50 साल की सजा सुनाई गई थी. 


26 फरवरी को हुई थी मृत्यु 
वीर सावरकर ने अपने जेल के समय में 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857' किताब लिखी थी. इस किताब से कई भारतीयों में ब्रिटिश विरोधी भावनाओं को हवा दी थी. सावरकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कट्टर आलोचक थे और उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का भी विरोध किया था. उन्होंने दो-राष्ट्र नीति को स्वीकार करने के लिए कांग्रेस पार्टी की कड़ी आलोचना की थी. अपने मृत्यु से दो साल पहले यानि 1964 में सावरकर ने ‘आत्महत्या या आत्मसमर्पण’ नाम का एक लेख लिखा था. जिसमें उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु की बात कही थी. वह फरवरी 1966 से व्रत करने लगे थे. इस दौरान सावरकर ने दवाइयां खाना भी बंद कर दिया था. वह न ही खाना खा रहे थे ना ही पानी पी रहे थे. ऐसे ही 26 फरवरी तक वे उपवास करते रहे जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई. अपनी मृत्यु से दो साल पहले यानि 1964 में सावरकर ने ‘आत्महत्या या आत्मसमर्पण’ नाम का एक लेख लिखा था. जिसमें उन्होंने अपनी इच्छा मृत्यु की बात कही थी. वह फरवरी 1966 से व्रत करने लगे थे. इस दौरान सावरकर ने दवाइयां खाना भी बंद कर दिया था. वह न ही खाना खा रहे थे ना ही पानी पी रहे थे. ऐसे ही 26 फरवरी तक वे उपवास करते रहे जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई.


वीर सावरकर के कुछ अनमोल विचार



  • महान लक्ष्य के लिए गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता है.

  • एक देश एक ईश्वर, एक जाति, एक विचार.

  • उन्हें शिवाजी को मानने का अधिकारी है जो शिवाजी की तरह अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए लड़ने के लिए तैयार हैं.

  • देश हित के लिए अन्य त्यागों के साथ जन-प्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊंचा आदर्श है.

  • तैयारी में शांति लेकिन क्रियान्वयन में साहस, संकट के क्षणों में यही नारा होना चाहिए. 


यह भी पढ़ें


ममता के लिए 2019 से भी मुश्किल होने वाला है 2024, 6 महीने में NDA के पक्ष में बदली पिक्चर, बता रहा सर्वे