Farmers Protest: हरियाणा के करनाल में पिछले 4 दिन से धरने पर बैठे किसानों ने अब आर-पार की लड़ाई का मूड बना लिया है. किसानों ने प्रशासन को 11 सितंबर के बाद आंदोलन तेज करने की चेतावनी दी है. इस बीच किसानों ने सियासी दलों पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है. आज चंडीगढ़ में 32 किसान संगठनों ने राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई है, ताकि पंजाब चुनाव का एलान होने तक उन पर प्रचार ना करने का दबाव डाला जा सके.


किसानों पर लाठीचार्ज का आदेश देने वाले एसडीएम पर कार्रवाई हो- किसान


गुरुवार से मिनी सचिवालय के बाहर किसानों की तादाद बढ़ रही है. रात में भी किसानों की संख्या में कमी नहीं आ रही. उनकी सेवा में एसजीपीसी के सेवादार भी जुट गए हैं. किसानों ने साफ कर दिया है कि उनकी मांगें पूरी होने तक वो डटे रहेंगे. करनाल में जमे किसानों की मांग है कि 28 अगस्त को किसानों पर लाठीचार्ज का आदेश देने वाले एसडीएम पर कार्रवाई हो, लेकिन सरकार का कहना है कि जांच के बाद जो दोषी पाया जाएगा, उस पर कार्रवाई होगी और जांच किसानों की भूमिका की भी होगी.


किसान संगठनों ने राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने की नई रणनीति तैयार की


कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने दिल्ली और करनाल के बाद अब पंजाब की सियासी जमीन पर हलचल पैदा करने की तैयारी कर ली है. राजनीति से दूर रहने का दावा करने वाले किसान संगठनों ने राजनीतिक दलों पर दबाव बनाने की नई रणनीति तैयार की है और आज इसी मुद्दे पर चंडीगढ़ में किसान संगठनों ने एक अहम बैठक बुलाई गई है. 32 किसान संगठनों ने बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक दलों की बैठक बुलाई है. बैठक का मकसद पंजाब विधानसभा चुनाव की घोषणा होने तक चुनाव प्रचार ना करने का दबाव डालना है. राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से कहा जाएगा कि वे चुनाव की घोषणा होने तक राजनीतिक रैलियां न करें, क्योंकि इससे किसान संघर्ष को नुकसान पहुंच सकता है.


राजनीतिक दलों को किसानों की नाराजगी का खतरा


किसानों और राजनीतिक दलों की बैठक चंडीगढ़ के सेक्टर 36 में सुबह 11 बजे होगी. बैठक के बाद शाम 4 बजे किसानों की प्रेस कॉन्फ्रेंस होगी. हर राजनीतिक दल किसानों के साथ खड़े होने का दावा करता रहा है, लेकिन आज ये साफ हो जाएगा कि कौन सी पार्टी अपने दावे पर खरी उतरती है, क्योंकि अब दांव पर पंजाब का चुनाव है. पंजाब विधानसभा का चुनाव अगले साल की शुरुआत में है. अगर पार्टियां किसानों की बात मानती हैं तो चुनाव प्रचार में पीछे रह जाने का जोखिम है और अगर नहीं मानती हैं तो किसानों की नाराजगी का खतरा है.


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