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Anti-Drone System: राजनाथ सिंह ने सेना को सौंपे 'काउंटर ड्रोन सिस्टम', 4 से 6 किलोमीटर तक ड्रोन को कर सकता है ट्रैक

Counter Drone System: रक्षा मंत्रालय ने बताया कि इस ड्रोन सिस्टम का सबसे पहले इस्तेमाल इस वर्ष राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड में किया गया था और अब इसे सशस्त्र सेनाओं के बेड़े में शामिल किया गया है

Anti-Drone System: आसमान में उड़ती आफत यानी ड्रोन के खतरे से निपटने के लिए देश की सेना अब काउंटर ड्रोन सिस्टम ‌से लैस होने जा रही है. मंगलवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सेना के तीनों अंग यानि थलसेना, वायुसेना और नौसेना को इस स्वदेशी काउंटर ड्रोन सिस्टम को सौंपा. लेज़र बेस्ड डायरेक्टेड एनर्जी वैपन (Laser based directed-energy weapon) की तकनीक पर आधारित ये एंटी ड्रोन सिस्टम (Anti-drone System) डीआरडीओ (DRDO) ने तैयार किया है.

मंगलवार को रक्षा मंत्री ने इस काउंटर ड्रोन सिस्टम (Counter Drone System) को चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड स्टाफ कमेटी, एयर मार्शल बी एम कृष्णा को सौंपा. इस‌ दौरान डीआरडीओ के चैयरमैन, जी सथीश रेड़़्डी, थलसेना प्रमुख, जनरल एम एम नरवणे, वायुसेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल वी आर चौधरी और नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार मौजूद थे.

आपको बता दें कि इसी साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर पीएम मोदी की सुरक्षा के लिए इस काउंटर ड्रोन सिस्टम को तैनात किया गया था. इस सिस्टम का पहला इस्तेमाल इसी साल राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड में किया गया था. इसके बाद इसका इस्तेमाल गुजरात में मोदी-ट्रंप के रोड-शो के मौके पर भी किया गया था.

अब ये सि‌स्टम तीनों अंगों को दिया जाएगा ताकि ड्रोन के खतरों से निपटा जा सके. लेजर तकनीक पर आधारित ये सि‌स्टम ड्रोन को जाम कर मार गिरा सकता है. रक्षा मंत्रालय का दावा है कि ये पहला स्वदेशी एंटी-ड्रोन सिस्टम है जो सशस्त्र सेनाओं के बेड़े में शामिल किया गया है.

क्या है ड्रोन में सॉफ्ट और हार्ड किल सिस्टम

एंटी ड्रोन सिस्टम 'सॉफ्ट-किल' और 'हार्ड-किल' दोनों ही विकल्पों में उपलब्ध होगा. ये सिस्टम के मोबाइल और स्टेटिक वर्जन में शामिल है. मोबाइल वर्जन एक ट्रक पर लगाया गया है. ये सिस्टम किसी भी माइक्रो-ड्रोन को तुरंत पता लगाकर उसे जाम कर सकता है. इस‌ सिस्टम को देश के सभी सामरिक महत्व के बेस‌ पर तैनात किया जाएगा. काउंटर ड्रोन सिस्टम रडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल, इंफ्रारेड सेंसर और रेडियो फ्रीक्वंसी की मदद से ड्रोन को डिटेक्ट कर जाम कर सकता है. डीआरडीओ की आरएफ-ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) से ड्रोन को इस्तेमाल करने वाले कंट्रोलर की फ्रीक्वंसी का पता लगाकर सिग्नल को जाम तक कर सकता है. 
ये वेपन किसी भी छोटे से छोटे ड्रोन को लेजर बीम के जरिए गिरा सकता है. दरअसल लगातार लेजर बीम ड्रोन पर मारने से लेजर उसके इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को गर्म कर देता है और पूरा सिस्टम और सेंसर डैमेज हो जाता है और ड्रोन नीचे गिर जाता है. इसे हार्ड किल कहा जाता है.

माइक्रोवेव ड्रोन सिस्टम पर चल रहा है काम

इस एनर्जी बेस्ड वैपन में एक और सिस्टम है जो कि डीआरडीओ के लगातार ट्रायल पर है कि कैसे माइक्रोवेव के जरिए ड्रोन गिराया जा सके. जो किसी भी ड्रोन के कम्युनिकेशन सिस्टम को जैम कर सकता है, इसे जैमिंग सिस्टम भी कहा जाता है. दरअसल ड्रोन किसी न किसी कम्युनिकेशन सिस्टम के जरिए ही ऑपरेट होता है और उस कम्युनिकेशन को जैम करने पर ड्रोन अपने आप नीचे आ जाता है. इसे सॉफ़्ट किल कहा जाता है.

सेनाओं को सौंपे गए इस सिस्टम के रडार  4 से 6 किलोमीटर तक आसानी से किसी भी ड्रोन की मूवमेंट को देख सकते हैं और सॉफ़्ट किल करने के लिए ये सिस्टम से 3 किलोमीटर दूरी से डिटेक्ट कर लेता है और 2 किलोमीटर की रेंज में आसानी से किसी भी ड्रोन को जैम कर सकता है. हार्ड किल के लिए ये एक किलोमीटर की दूरी पर किसी भी ड्रोन को नष्ट कर कर सकता है.  इस स्वदेशी सिस्टम में काफ़ी हद तक भारतीय सेना दुश्मन के कम उंचाई और धीमी रफ़्तार वाले किसी भी ड्रोन से आसानी से निपट सकती है.

एलओसी पर उड़ती आफत हैं ड्रोन 

ड्रोन को आसमान मे उड़ती आफत के तौर पर देखा जाने लगा है.  पाकिस्तान इसका इस्तेमाल कर के हथियार  और नशीले पदार्थों को एलओसी के जरिए भारत में भेजने की साजिश करता रहता है. अब इसी तकनीक का इस्तेमाल कर पाकिस्तान भारत में  ड्रोन हमले कर रहा है. जम्मू के एयरफ़ोर्स स्टेशन पर पाकिस्तान ने इसी तकनीक के जरिए ही हुए आतंकी हमलों किया था.

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