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जयंती विशेष: प्रखर वक्ता, राजनेता और ओजस्वी कवि अटल बिहारी वाजपेयी, जिन्होंने सिखाया जिंदगी जीने का अलग अंदाज
आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है. उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को गुलाम भारत के ग्वालियर स्टेट में हुआ था. साल 1996 में वे पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने थे. इस पद पर वे तीन बार बैठे. 16 अगस्त 2018 को उनका निधन हो गया.
![जयंती विशेष: प्रखर वक्ता, राजनेता और ओजस्वी कवि अटल बिहारी वाजपेयी, जिन्होंने सिखाया जिंदगी जीने का अलग अंदाज Birthday Special: Eloquent speaker, politician and energetic poet Atal Bihari Vajpayee, who taught different way of living life जयंती विशेष: प्रखर वक्ता, राजनेता और ओजस्वी कवि अटल बिहारी वाजपेयी, जिन्होंने सिखाया जिंदगी जीने का अलग अंदाज](https://static.abplive.com/wp-content/uploads/sites/2/2019/01/31105148/atal-bihari-vajpayee.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
नई दिल्ली: भारत रत्न व देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का आज 96वां जन्मदिन है. उनके व्यक्तित्व को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता. एक ऐसा राजनेता जिसका सभी राजनीतिक दल सम्मान करते थे. यही नहीं अटल जी कुशल वक्ता थे. संसद में जब भी वह किसी विषय पर बोलते तो पक्ष क्या, विपक्ष क्या पूरा सदन शांत होकर उनकी बात सुनता.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता से लेकर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक अटल जी ने राजनीति को एक नयी परिभाषा दी. उनकी विनम्रता की मिसाल देते हुये उनके विरोध कहते थे कि अटल जी तो अच्छे हैं लेकिन सही पार्टी में नहीं है.
सबसे बड़ी विशेषता जो अटल जी को औरों से अलग करती थी वह था उनका कविता प्रेम. उन्होंने जीवन और देश प्रेम पर आधारित कालजयी रचनाओं को गढ़ा. इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी ने जिस विषय पर सबसे ज्यादा लिखा वह 'मौत' था. उनके निधन के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में एक कविता रही है 'मौत से ठन गई'.
आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती है. साल 1924 में आज ही के दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ था. वे न सिर्फ एक आजस्वी थे बल्कि एक कवि भी थे. अटल बिहारी वाजयेपी का जन्म 25 दिसबंर, 1924 को गुलाम भारत के ग्वालियर स्टेट में हुआ, जो आज के मध्यप्रदेश का हिस्सा है. दिलचस्प बात ये है कि अटल बिहारी वाजयेपी का जन्म ठीक उसी दिन हुआ, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कांग्रेस पार्टी के पहली और आखिरी बार अध्यक्ष बने. 16 अगस्त 2018 को अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया को अलविदा कह दिया.
वाजपेयी पहली बार 1957 के लोकसभा चुनाव में जीतकर संसद पहुंचे थे एक कवि पत्रकार, संघ के कार्यकर्ता के तौर पर लगातार विजय पथ पर बढ़ रहे वाजपेयी पहली बार 1957 के लोकसभा चुनाव में जीतकर संसद पहुंचे. वे 10 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे. वह उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्य प्रदेश और गुजरात से सांसद रहे. उन्होंने साल 1991 से अपने आखिरी चुनाव तक यानि 2004 तक लखनऊ लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया.
वाजयेपी ऐसे अकेले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने पूरा 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया अटल बिहारी वाजपेयी देश में एक अच्छे कवि के रूप में जाने जाते हैं. एक बार उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक राजनेता के रूप में नहीं बल्कि एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं. वाजयेपी ऐसे अकेले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने पूरा 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा किया. साल 1996 चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. राष्ट्रपति ने सबसे बड़ी पार्टी के नेता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने का न्योता दिया.
कब-कब प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार साल 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने और फिर साल 1998 से 1999 तक यानि 13 महीने के लिए दूसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने. फिर आखिरी और तीसरी बार साल 1999 से 2004 तक देश के प्रधानमंत्री रहें. उन्होंने साल 2009 में राजनीति से संन्यास लिया. वहीं 25 दिसंबर, 2014 को वाजपेयी को उनके जन्मदिन पर देश का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत रत्न देने का ऐलान किया गया.
अटल बिहारी वाजपेयी की मशहूर कविता...
गीत नया गाता हूं टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर, पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर, झरे सब पीले पात, कोयल की कूक रात, प्राची में अरुणिमा की रेख देख पाता हूं गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी? अंतर को चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं.
मौत से ठन गई ठन गई! मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था, मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ, सामने वार कर फिर मुझे आज़मा
मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र, शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायों से मुझको मिला, न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।
आज झकझोरता तेज तूफान है, नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है
पार पाने का कायम मगर हौसला, देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई
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