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मंज़ूर पदों के हिसाब से मुंबई में 18 फीसदी पुलिसबल कम, रेप और छेड़छाड़ के मामले बढ़े: प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट

मुंबई की सत्र न्यायालय में 2013 से 2017 तक केवल 24 फीसदी मामलों में दोषियों को सजा दी गई. एफआईआर से निर्णय देने तक, सबसे ज्यादा समय डकैती (5.8 साल) के मामलों में लिया गया.

मुंबई: प्रजा फाउंडेशन ने साल 2019-2020 में राज्य की कानून व्यवस्था की स्तिथि को लेकर रिपोर्ट जारी की है, जिसमें मानव संसाधन, निगरानी और जवाबदेही, संवेदीकरण और पुलिस-नागरिक संबंधों में सुधार जैसे विभिन्न पहलुओं में सुधार की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि रेप और छेड़छाड़ के मामलों की रिपोर्टिंग में, 2015-16 से 2019-20 के बीच, क्रमशः 24 फीसदी (728 से 904 तक) और 25 फीसदी (2,145 से 2,677) की वृद्धि हुई है. साल 2013 से साल 2017 के बीच रेप के मामलों में दोषसिद्धि दर महज 18 फीसदी थी, जबकि निर्णय तक पहुंचने में औसतन 42 सुनवाई और 3.2 साल का समय लगा. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2019-20 में मुंबई में स्वीकृत पदों के हिसाब से पुलिसकर्मियों की संख्या में 18 फीसदी की कमी थी, जबकि 2019 के अंत तक आईपीसी के 64 फीसदी मामले जांच के लिए लंबित थे. इसके अलावा मार्च 2020 तक, मुंबई में केवल 38 फीसदी पुलिस बल को पुलिस आवास आवंटित किया गया था.

2019 में मुंबई की अदालतों में कुल 2 लाख 49 हज़ार 922 आईपीसी मुकदमे लंबित थे, जिनमें से केवल 6 फीसदी मामलों पर साल के अंत तक निर्णय दिया गया. पिछले 10 वर्षों में आईपीसी अपराधों की दोषसिद्धि दर में सुधार नहीं हुआ है. 2013 से 2017 तक केवल 24 फीसदी मामलों में और 2008 से 2012 तक 23 फीसदी मामलों में, मुंबई की सत्र न्यायालय में, दोषसिद्धि की गई.

आईपीसी सत्र न्यायालय के मुकदमे के मामलों को हल करने में कई महीने लग गए. एफआईआर से निर्णय तिथि तक का समय, 2008 से 2012 के बीच 25.8 महीने से लगभग दो- गुना होकर 2013 से 2017 में 40.4 महीने हो गया.

मुंबई पुलिस, महामारी और लॉकडाउन के दौरान कानून व्यवस्था के आंकड़े प्रजा फाउंडेशन के संस्थापक और प्रबंधक ट्रस्टी निताई मेहता ने कहा, "2019-20 में स्वीकृत पदों की तुलना में मुंबई में पुलिस कर्मियों की 18 फीसदी कमी थी, जिससे मौजूदा कार्यबल पर प्रभाव पड़ता है. जैसे काम के विस्तारित घंटे और काम करने की परिस्थितियां, जो पुलिस के समग्र व्यवस्था को प्रभावित करती हैं, जिससे उनके कर्तव्यों के प्रभावी प्रदर्शन की क्षमता में कमी आती है.” अप्रैल 2017 से अक्टूबर 2020 में पुलिस कर्मियों की मौत का सबसे बड़ा कारण दिल का दौरा (113 मौतें) था. इसी अवधि में आत्महत्या से 16 मौतें भी दर्ज हुईं. निताई मेहता ने कहा, "पिछले कुछ वर्षों में पुलिस कर्मियों की बड़ी संख्या जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के कारण सीधे तौर पर काम और काम की परिस्थितियों में जोखिम से जुड़ा हुआ है." प्रजा फाउंडेशन के निदेशक मिलिंद म्हस्के का कहना है कि मार्च 2020 तक केवल 38 फीसदी पुलिस बल को पुलिस आवास आवंटित किया गया था, लेकिन अब तक रहन-सहन के संदर्भ में भी पुलिस बल के लिए पर्याप्त आवास उपलब्ध कराने में असमर्थ रहे हैं.

मिलिंद म्हस्के के मुताबिक, "स्वीकृत पदों में रिक्ति का न्यायपालिका के प्रदर्शन पर सीधा प्रभाव पड़ता है. 2019 में मुंबई में आईपीसी के अंतर्गत अदालतों में 2 49,922 मामलों की सुनवाई होनी थी, जिनमें से सिर्फ 6 फीसदी मामलों में फैसला आया." वहीं साल 2013 से 2017 तक सत्र न्यायालय में जिन मामलों की चार्जशीट 90 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए थी, उसे एफआईआर से चार्जशीट दर्ज होने में औसतन 11.1 महीने लगे. इसके अलावा पहली सुनवाई से फैसले तक, औसतन 2.4 साल लग गए." मुंबई की सत्र न्यायालय में 2013 से 2017 तक केवल 24 फीसदी मामलों में दोषियों को सजा दी गई. एफआईआर से निर्णय देने तक, सबसे ज्यादा समय डकैती (5.8 साल) के मामलों में लिया गया. जांच और परीक्षण के लिए अधिक समय लगने के बावजूद, इससे दोषसिद्धि दरों में सुधार नहीं हुआ है. POCSO संबंधित रिपोर्ट निताई मेहता ने बताया, "2019 में पॉक्सो के 1,319 मामले दर्ज किए गए थे. अदालतों में सिर्फ 448 मामलों की सुनवाई हुई है, जिनमें से केवल आधे (222) विशेष पॉक्सो अदालत में पेश किये गए. इसके अलावा, केवल 20 फीसदी फैसले पॉक्सो अदालतों में (अधिनियम के अनुसार) 1 वर्ष के अंदर सुनाए गए.”

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