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Union Home Ministry: 31 जिलों के जिलाधिकारियों को नागरिकता देने का मिला अधिकार, असम और बंगाल को नहीं किया शामिल
असम और पश्चिम बंगाल में जहां विदेशियों को नागरिकता देने का मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, वहां किसी भी जिलाधिकारी को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार नहीं दिया गया.
![Union Home Ministry: 31 जिलों के जिलाधिकारियों को नागरिकता देने का मिला अधिकार, असम और बंगाल को नहीं किया शामिल 31 District Magistrates able to give citizenship to Non-Muslims of Pakistan Bangladesh Afghanistan Union Home Ministry: 31 जिलों के जिलाधिकारियों को नागरिकता देने का मिला अधिकार, असम और बंगाल को नहीं किया शामिल](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2022/11/09/1b82671d58e8a1098236694bf057eccf1667979664576398_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
Indian citizenship Law: अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर-मुस्लिम जो हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म से ताल्लुक रखते है, उन्हें नागरिकता कानून, 1955 के तहत भारतीय नागरिकता प्रदान करने का अधिकार नौ राज्यों के गृह सचिवों और 31 जिलाधिकारियों को भी दिया गया है.
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की वर्ष 2021-22 (एक अप्रैल से 31 दिसंबर, 2021 तक) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के इन माइनॉरिटी समुदायों के 1,414 विदेशियों को नागरिकता कानून, 1955 के तहत भारत की नागरिकता दी गई है.
नागरिकता देने के अलग मायने
अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों को विवादित नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 के स्थान पर नागरिकता कानून, 1955 के तहत भारत की नागरिकता देने के अलग मायने हैं. नागरिकता (संशोधन) कानून, 2019 (CAA) में भी अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर-मुसलमानों को भारत की नागरिकता देने का नियम है. लेकिन, सीएए के तहत अभी तक सरकार के तरफ से नियम नहीं बनाए गए हैं, इसलिए अभी तक इस कानून के तहत किसी विदेशी को भारत की नागरिकता नहीं दी गई है.
नागरिकता देने का अधिकार सौंपा
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार 2021-22 में और 13 जिला कलेक्टरों और दो राज्यों के गृह सचिवों को सौंप दिया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "इसके साथ ही 29 जिलों के कलेक्टरों और नौ राज्यों के गृह सचिव को उपरोक्त श्रेणी के इमीग्रेंट (अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिन्दुओं, सिखों, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों) को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार दिया गया है".गुजरात के आणंद और मेहसाणा जिलों के जिला कलेक्टरों को यह अधिकार पिछले महीने दिया गया.
दो जिलों के डीएम को अधिकार नही
अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले गैर-मुसलमानों (हिन्दुओं, सिखों, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों) को नागरिकता कानून, 1955 के तहत जिन नौ राज्यों में पंजीकरण या देशीकरण के मदद से नागरिकता प्रदान की जा सकती है, जिसमें गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र शामिल है.
असम और पश्चिम बंगाल राज्यों में जहां विदेशियों को नागरिकता देने का मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, वहां किसी भी जिलाधिकारी को नागरिकता प्रदान करने का अधिकार नहीं दिया गया।
1,414 प्रमाणपत्र दिए जा चुके है
गृह मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है, "एक अप्रैल, 2021 से 31 दिसंबर, 2021 तक गृह मंत्रालय सहित तमाम प्रशासन के तरफ से नागरिकता के कुल 1,414 प्रमाणपत्र दिए गए हैं. इनमें से 1,120 प्रमाणपत्र नागरिकता कानून, 1955 के नियम 5 के तहत पंजीकरण के तरफ से जबकि 294 प्रमाणपत्र कानून के नियम 6 के तरफ से दिए गए हैं. सीएए के तहत, केंद्र की नरेंद्र मोदी नीत सरकार 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के गैर मुसलमान इमीग्रेंट यथा हिन्दुओं, सिखों, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाईयों को भारतीय नागरिकता देना चाहती है.
CAA दिसंबर 2019 को संसद में पारित हुआ और उसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद देश के कुछ हिस्सों में भीषण विरोध हुआ था. इन प्रदर्शनों, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई और इसी से जुड़े फरवरी, 2020 के दिल्ली दंगों में कई लोगों की मौत हुई.हालांकि, इस कानून को अभी तक लागू नहीं किया गया है क्योंकि CAA के तहत नियमों को अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है. किसी कानून को लागू करने के लिए इसके तहत नियम बनाया जाना अनिवार्य है.
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